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लेखक : देवाशिष बसु

आज का अखबार, लेख

अतार्किक विकल्प: बैंक एफडी सही है! ऐसे अभियान की जरूरत

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने हाल ही में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों से साथ मिलकर विशेष अभियान चलाने को कहा ताकि जमा राशि जुटाई जा सके। इसकी वजह यह है कि जमा में वृद्धि की रफ्तार ऋण वृद्धि की तुलना में पीछे है। जुलाई के अंत में जमा राशि पिछले वर्ष जुलाई के मुकाबले […]

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अतार्किक विकल्प: परियोजनाओं में देरी से बढ़ती लागत

पिछले दिनों सोशल मीडिया पुलों के ढहने, हवाईअड़्डों की छतों के गिरने, नए-नए बने एक्सप्रेसवे के बह जाने या उनमें बड़ी दरारें बनने, नवनिर्मित हवाईअड्डों या ट्रेन स्टेशनों की छतों से बारिश का पानी गिरने के संदेशों से भर गया। देशवासी निर्माणाधीन बुनियादी ढांचे की गुणवत्ता को लेकर चिंतित हैं, खासतौर पर जब से सरकार […]

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अतार्किक विकल्प: वायदा एवं विकल्प में कैसे लगे कयास पर अंकुश

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) की प्रमुख माधवी पुरी बुच ने पिछले दिनों एक संवाददाता सम्मेलन में डेरिवेटिव खंड में कयास आधारित कारोबार में बेतहाशा बढ़ोतरी पर चिंता जताई थी। पिछले कुछ वर्षों के दौरान डेरिवेटिव खंड में कारोबार में भारी इजाफा हुआ है। इससे कयास आधारित कारोबार और बढ़ने की चिंता सिर उठाने […]

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अतार्किक विकल्प: भारत में फिर ‘राजनीतिक’ अर्थव्यवस्था हावी

ठीक 30 वर्ष पहले मैंने कहा था कि रिलायंस इंडस्ट्रीज एक कंपनी नहीं बल्कि यह दो कंपनियों का समूह है। एक कंपनी ने विनिर्माण संयंत्र एवं उत्पाद बेचने पर ध्यान केंद्रित किया तो दूसरी ने पूंजी जुटाने एवं अपने आंतरिक संसाधनों से ‘समूह’ के प्रबंधन पर ध्यान दिया। ये दोनों ही इकाइयां एक दूसरे का […]

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अतार्किक विकल्प: ट्रिकल डाउन सिद्धांत और ‘विकसित भारत’

उद्यमियों और शेयर बाजार में सक्रिय कारोबारियों को लग रहा है कि नरेंद्र मोदी अपने तीसरे कार्यकाल में देश को ‘विकसित भारत’ बना देंगे। परंतु, प्रश्न यह है कि हम इस बदलाव को किस दृष्टिकोण के साथ देख रहे हैं। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी), कर राजस्व, शेयर बाजार सूचकांक, कंपनियों का मुनाफा बढ़ना, निवेश में […]

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अतार्किक विकल्प: संरचनात्मक सुधारों से अर्थव्यवस्था को धार, अभी ‘मोदी 1.5’ में भारत

आम चुनाव अब अपने अंतिम चरणों की तरफ बढ़ रहा है और इसी बीच यह कहा जाने लगा है कि मोदी 3.0 (मोदी सरकार का तीसरा कार्यकाल) के लिए कार्य योजनाएं भी तैयार हो गई हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) एवं उसके समर्थकों को लग रहा है कि नरेंद्र मोदी अपने तीसरे कार्यकाल में देश […]

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अतार्किक विकल्प: भारत से क्यों गईं विदेशी वित्तीय कंपनियां?

सन 1992 के प्रतिभूति घोटाले के बाद कई विदेशी बैंकों ने जो अहंकार से भरी चुटकियां लीं और उत्तर दिए उनमें से एक यह भी था, ‘अगर आप घर का मुख्य द्वार खुला रखेंगे तो आपके घर में चोरी होने की आशंका है।’ यह टिप्पणी सिटी बैंक के एक काउबॉय बैंकर ने की थी। वह […]

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अतार्किक विकल्प: म्युचुअल फंड की जोखिम जांच कितनी उपयोगी?

इस वर्ष के शुरू में बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) ने म्युचुअल फंडों को उनकी योजनाओं में रकम का अंधाधुंध प्रवाह नियंत्रित करने एवं पोर्टफोलियो में बदलाव करने के निर्देश दिए थे। नियामक ने यह निर्देश इसलिए दिया था कि बेरोक-टोक निवेश आने से बाजार में अनिश्चितता बढ़ जाती है। एक साल […]

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अतार्किक विकल्प: क्यों बरकरार है रोजगार निर्माण की समस्या?

मार्च के अंतिम सप्ताह में मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने कहा कि सरकार सभी सामाजिक और आर्थिक समस्याओं को हल नहीं कर सकती है। उन्होंने इसके लिए बेरोजगारी का उदाहरण दिया। उन्होंने चकित करते हुए कहा कि सरकार बेरोजगारी के मोर्चे पर और लोगों को काम पर रखने के अलावा कर ही क्या […]

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चुनावी बॉन्ड से चंदे पर शेयरधारक क्यों अंधेरे में?

भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) ने पिछले दिनों चुनावी बॉन्ड पर दो दस्तावेज में जानकारियां सौंपी। चुनावी बॉन्ड खरीदना पूरी तरह कंपनियों एवं उद्यमियों की इच्छा पर निर्भर था मगर प्रश्न यह है कि कोई कंपनी या इकाई अपनी मेहनत की कमाई स्वार्थ सिद्धि करने वाले राजनीतिज्ञों को क्यों दे? कंपनियां तभी ऐसा करती हैं जब […]

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