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अतार्किक विकल्प: दरों में कटौती और शेयरों के भाव

अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में जल्द ही कटौती के संकेत दिए हैं, जिनसे उनके भीतर उत्साह भर गया है।

Last Updated- September 16, 2024 | 9:26 PM IST
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दुनिया भर के निवेशक शेयर बाजारों में उछाल का इंतजार कर रहे हैं। अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने ब्याज दरों में जल्द ही कटौती के संकेत दिए हैं, जिनसे उनके भीतर उत्साह भर गया है। पारंपरिक मान्यता तो यही है कि फेड दरों में कटौती करता है तो शेयरों के भाव चढ़ने लगते हैं। इस बात की उम्मीद बढ़ रही है कि इस सप्ताह फेड की बैठक में दरों में 50 आधार अंक तक की कटौती हो जाएगी।

ऐसा इसलिए क्योंकि मुद्रास्फीति में काफी कमी आई है और अब वह फेड के 2 फीसदी के लक्ष्य के आसपास है। क्या दरों में कटौती से शेयरों के भाव चढ़ेंगे? यह निराश करने वाली बात है कि आंकड़ों के मुताबिक ब्याज दरों में चाहे इजाफा हो या कटौती, शेयर बाजार का प्रदर्शन उससे बहुत अधिक नहीं जुड़ा होता। एसऐंडपी 500 जैसे व्यापक सूचकांकों को देखकर तो यही लगता है। दरों में इजाफे के ताजा उदाहरण से इसकी शुरुआत करते हैं:

वर्ष 2022 में फरवरी के मध्य में मैंने इस स्तंभ में अटकल लगाई थी कि अगर फेड मुद्रास्फीति से मुकाबला करने के लिए दरों में इजाफा करता है तो क्या वास्तव में बाजार में तेजी आएगी? यह परिकल्पना उस पारंपरिक मान्यता के विपरीत थी, जिसमें माना जाता था कि दरों में इजाफे के दौरान बाजार गिरते हैं और दरों में कटौती के दौरान उनमें इजाफा होता है। मेरा नजरिया सार्वजनिक रूप से उपलब्ध आंकड़ों पर आधारित था।

उदाहरण के लिए 2004 के मध्य से 2006 के मध्य तक फेड ने 17 बार दरों में इजाफा किया मगर एसऐंडपी 500 में 46 फीसदी तेजी आई। इसी प्रकार दिसंबर 2015 से दिसंबर 2020 के बीच फेड ने दरों में नौ बार इजाफा किया जो 0.25 फीसदी से लेकर 2.5 फीसदी तक था। इस दौरान एसऐंडपी 1,900 से 2,800 पर पहुंच गया। दिलचस्प है कि 2018 में जब सूचकांक डगमगाया तब दरों में इजाफे का तीन साल का चक्र खत्म हो रहा था, शुरू नहीं।

वर्ष 2022 में क्या हुआ? फेड द्वारा दरों में इजाफे और यूक्रेन युद्ध के बीच बाजार में कुछ महीने के लिए गिरावट अवश्य आई। इसके बावजूद पारंपरिक समझ को धता बताते हुए बाजारों ने तेजी से वापसी की और फेड के इच्छित ब्याज दर इजाफे के एक तिहाई तक पहुंचते-पहुंचते इनमें इजाफा हो गया। एसऐंडपी 500 अक्टूबर 2022 में 3,500 तक गिर गया। उसके बाद इसने वापसी की और जुलाई 2023 तक यह 4,600 पर पहुंच गया। इस दौरान फेड ने दरों में छह बार इजाफा किया और यह नवंबर 2022 के 3.25 फीसदी से बढ़कर जुलाई 2023 में 5.5 फीसदी हो गई।

दिलचस्प है कि फेड ने जुलाई में दरें बढ़ाना रोका और अक्टूबर तक एसऐंडपी 500 में गिरावट आई। अक्टूबर के बाद से सूचकांक चढ़ता गया और पिछले सप्ताह की गिरावट के पहले वह बढ़कर 5,650 तक पहुंच गया। इस पूरी अवधि में अर्थव्यवस्था 5.5 फीसदी पर ही रुकी रही। एक पूरे चक्र में दरों में 0.25 फीसदी से 5.5 फीसदी इजाफा हुआ और एक वर्ष तक यह स्तर बरकरार रहा। इसके बावजूद बाजार में लगातार तेजी बनी रही। यह फेड के रुख से अलग था।

यह पहला मौका नहीं है जब फेड द्वारा दरों में बदलाव तथा शेयर बाजार की हलचल के बीच का संबंध अलग निकला हो। इसके विपरीत परिदृश्य पर विचार करें तो क्या फेड द्वारा दरों में कटौती के समय बाजार में तेजी आती है? यहां भी रिश्ता कमजोर नजर आता है। सबसे चकित करने वाला उदाहरण 2008 का है। जनवरी 2008 में बाजार में गिरावट के बाद फेड ने दरों में कटौती की और उन्हें 3.5 फीसदी से घटाकर 3 फीसदी कर दिया। मार्च में बियर स्टर्न के पतन के बाद 0.75 फीसदी कटौती हुई और यह 2.25 फीसदी रह गई। अप्रैल में दरों में और कमी करके इन्हें दो फीसदी कर दिया गया और जून से सितंबर के बीच बाजार और गिरे। सितंबर में ही लीमन ब्रदर्स का भी पतन हुआ।

अक्टूबर तक दरें घटकर 1.5 फीसदी रह गईं और फिर 1 फीसदी। दिसंबर तक यह घटकर शून्य से 0.25 फीसदी रह गई। इस भारी कटौती के बावजूद 2008 के बाजार संकट को आधुनिक इतिहास के सबसे गंभीर संकटों में गिना जाता है। उस समय जनवरी से मार्च के बीच एसऐंडपी 500 में 50 फीसदी गिरावट आ गई थी, जबकि दरें 3.5 फीसदी से कम होकर शून्य पर आ गई थीं। बाजार को तेजी मिलना तो छोड़ दीजिए, कटौती उनमें गिरावट को भी नहीं रोक पाई। 2001 में भी यही हुआ था। फेड ने दरों में कटौती की और पांच फीसदी से घटते हुए नवंबर 2022 तक यह 1.25 फीसदी रह गई। इसके बावजूद एसऐंडपी 500 अगस्त 2000 के 1,530 से घटकर सितंबर 2002 तक 794 रह गया और मार्च 2002 के बाद इसमें उठान आया।

इसके बावजूद कई लोग यह क्यों मानते हैं कि ब्याज दरों की घट-बढ़ का बाजार के प्रदर्शन के साथ रिश्ता है? शायद इसके पीछे धारणा यह है कि नकदी महंगी होती है तो बाजार में गिरावट आती है। परंतु अन्य कारक भी काम कर रहे होते हैं। आमतौर पर फेड दरों में इजाफा तब करता है जब आर्थिक वृद्धि मजबूत होती है। मजबूत अर्थव्यवस्था में कारोबारी मुनाफा बढ़ता है और शेयर के भाव चढ़ते हैं। शेयरों के भाव पारंपरिक समझ के बजाय कारोबारी मुनाफे और मूल्यांकन पर ज्यादा चलते हैं।

अर्थव्यवस्था के विस्तार के साथ फेड धीरे-धीरे दरों में इजाफा करता है। अगर वृद्धि मजबूत बनी रहती है तो कारोबारी मुनाफा बढ़ता है और शेयर कीमतों में तेजी आती है। मजबूत आर्थिक वृद्धि दर से दरों में इजाफा हो सकता है। बढ़ती दरों और बढ़ते शेयर भाव का यह चक्र भी दर्शाता है कि फेड अक्सर आर्थिक चक्र के हिसाब से चलता है, आर्थिक चक्र उसके हिसाब से नहीं चलता।

क्या ऐसा हो सकता है कि दरों में गिरावट के साथ बाजार भी गिरें? यह संभव है। सही हालात में यानी धीमी वृद्धि के बीच ऐसा हो सकता है। जब फेड दरों में इजाफा बंद कर देता हैतो यह संकेत जा सकता है कि आर्थिक वृद्धि में धीमापन आ रहा है। इससे कारोबारी मुनाफा प्रभावित हो सकता है और शेयर के भावों पर भी असर हो सकता है।

कई बार दरों में तेज इजाफा किया गया हो तो बाद में उनमें कटौती भी मंदी को टाल नहीं सकती। जब वृद्धि धीमी होती है तो बाजार नकारात्मक प्रतिक्रिया देता है। शेयर भाव को तय करने वाले कई कारकों में आर्थिक वृद्धि, कारोबारी मुनाफा और मूल्यांकन प्रमुख हैं। ब्याज दरों की तुलना में इन पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।

First Published - September 16, 2024 | 9:26 PM IST

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