लगभग छह वर्षों में अपनी पहली चीन यात्रा पर गए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सोमवार को चीन के विदेश मंत्री वांग यी से कहा कि भारत-चीन सीमा पर टकराव का समाधान निकालने से तनाव कम हुआ है। अब दोनों देशों को अपने संबंधों को सकारात्मक रुख देने के लिए सीमा प्रबंधन और विवाद निपटाने सहित अन्य पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
जयशंकर ने यह भी कहा कि दोनों पड़ोसियों को अपने नागरिकों के बीच संपर्क को सामान्य बनाना चाहिए और प्रतिबंधात्मक व्यापार उपायों और बाधाओं से बचना चाहिए। उन्होंने एक-दूसरे की सीमा से बहने वाली नदियों पर सहयोग की आवश्यकता पर जोर दिया और चीनी पक्ष से जल विज्ञान संबंधी डेटा दोबारा प्रदान करने का आग्रह किया।
पेइचिंग में वांग के साथ बैठक में अपने शुरुआती भाषण में जयशंकर ने कहा कि दोनों देशों के बीच संबंध इस आधार पर सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ सकते हैं कि मतभेद विवाद का रूप न लें और आपसी प्रतिस्पर्धा संघर्ष में तब्दील न हो।
चीन द्वारा महत्त्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति को प्रतिबंधित करने और लोगों के बीच पारस्परिक सहयोग को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर बल देते हुए जयशंकर ने कहा, ‘इस संदर्भ में यह भी आवश्यक है कि प्रतिबंधात्मक व्यापार उपायों और बाधाओं से बचा जाए।’ जयशंकर ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि वह वांग के साथ इन मुद्दों पर और विस्तार से चर्चा करेंगे।
जयशंकर रविवार को सिंगापुर की एक दिवसीय यात्रा के बाद थ्यानचिन में होने वाली शांघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के विदेश मंत्रियों की परिषद की बैठक में भाग लेने के लिए पेइचिंग पहुंचे हैं। चीन एससीओ का वर्तमान अध्यक्ष है और वह इस साल के अंत में थ्यानचिन में एससीओ शिखर सम्मेलन की मेजबानी करेगा, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाग लेने की संभावना है। जयशंकर ने आखिरी बार 11 से 13 अगस्त, 2019 तक चीन का दौरा किया था। उस वर्ष जून में भारत के विदेश मंत्री के रूप में पदभार ग्रहण करने के बाद यह उनकी पहली यात्रा थी।
जैसा कि जयशंकर ने अपनी टिप्पणियों में उल्लेख किया, मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग की अक्टूबर 2024 में रूस के कजान में मुलाकात के बाद भारत-चीन संबंध धीरे-धीरे सकारात्मक दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। जयशंकर ने कहा, ‘हमारी जिम्मेदारी है कि हम उस गति को बनाए रखें।’ उन्होंने कहा कि भारत-चीन द्विपक्षीय संबंधों के लिए आवश्यक है कि हम अपने संबंधों के लिए दूरदर्शी दृष्टिकोण अपनाएं।
भारत के विदेश मंत्री ने कहा कि वांग और वह हाल के महीनों में कई अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों में मिल चुके हैं। दोनों ने रणनीतिक संवाद किया है। जयशंकर ने कहा, ‘हमारी अपेक्षा है कि यह अब नियमित होगा और एक-दूसरे के देशों में होगा।’ मालूम हो कि 2020 के जून-जुलाई में गलवान संघर्ष के बाद भारत-चीन विदेश मंत्रियों के स्तर की वार्ता बंद कर दी गई थी।
जयशंकर ने दोनों पड़ोसियों के बीच स्थिर और रचनात्मक संबंधों का आह्वान किया, जो आपसी सम्मान, आपसी हित और आपसी संवेदनशीलता के आधार पर बेहतर तरीके से किया जा सकता है। उन्होंने कहा, ‘हमने पहले भी सहमति व्यक्त की है कि मतभेद विवाद नहीं बनने चाहिए और न ही प्रतिस्पर्धा को कभी संघर्ष का रूप लेना चाहिए। इस नींव पर हम अब अपने संबंधों को सकारात्मक दिशा में विकसित करना जारी रख सकते हैं।’ जयशंकर और वांग वैश्विक और क्षेत्रीय मुद्दों पर भी विचारों का आदान-प्रदान करेंगे।
एससीओ की बैठक के बारे में जयशंकर ने कहा कि भारत को उम्मीद है कि समूह आतंकवाद के प्रति शून्य सहनशीलता के अपने दृष्टिकोण को दृढ़ता से बरकरार रखेगा। जून में चीन के छिंगताओ में एससीओ के रक्षा मंत्रियों की बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संयुक्त विज्ञप्ति पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था, क्योंकि इसमें पहलगाम आतंकी हमले का जिक्र नहीं किया गया था और न ही इसमें पाकिस्तान समर्थित सीमा पार आतंकवाद पर भारत की चिंताओं को स्पष्ट रूप से संबोधित नहीं किया गया था। पेइचिंग में विदेश मंत्री ने चीनी उपराष्ट्रपति हान झेंग से भी मुलाकात की, जहां उन्होंने पिछले साल अक्टूबर में कजान में मोदी-शी की बैठक के बाद से लगातार सामान्य हो रहे द्विपक्षीय संबंधों पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि पड़ोसी देशों और प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के रूप में भारत और चीन के लिए जटिल अंतरराष्ट्रीय स्थिति के संदर्भ में विचारों और दृष्टिकोणों का खुला आदान-प्रदान करना बेहद महत्त्वपूर्ण है। जयशंकर ने शनिवार को सिंगापुर के राष्ट्रपति थरमन शनमुगरत्नम और तेओ ची हेन समेत अन्य मंत्रियों से मुलाकात की थी।