महामारी के बाद के समय में सरकार का पूंजीगत व्यय वृद्धि का अहम कारक रहा है। यही वजह है कि उद्योग जगत से ऐसे सुझाव प्राप्त हुए हैं कि केंद्र सरकार को चालू वर्ष के आने वाले पूर्ण बजट में आवंटन और अधिक बढ़ाना चाहिए।
बहरहाल, सरकार द्वारा पूंजीगत व्यय की मदद से वृद्धि को गति देने की अपनी सीमाएं हैं। मुख्य तौर पर इसकी दो वजह हैं। पहली वजह, सरकार को धीरे-धीरे राजकोषीय घाटे को कम करके प्रबंधनयोग्य स्तर पर लाना होगा।
दूसरी बात, खपत के मामले में भी व्यवस्थित क्षमता की अपनी सीमा है। अधिक व्यापक तौर पर देखें तो बढ़ता पूंजीगत व्यय अपने आप में एक लक्ष्य नहीं होना चाहिए।
पूंजीगत व्यय उत्पादन में इजाफा करेगा लेकिन लाभ उस स्थिति में अधिक होंगे जबकि परियोजनाओं का चयन गुणवत्ता और क्षमताओं के आधार पर किया जाए। ऐसे में संतुलन कायम करना जरूरी है। केंद्र सरकार जहां आवंटित राशि खर्च करती रही है, वहीं राज्य इसमें पीछे हैं। इससे खपत क्षमता की सीमाएं उजागर होती हैं।
हाल ही में इसी समाचार पत्र में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक द्वारा 25 राज्यों के प्रारंभिक आंकड़ों ने यह दिखाया कि 2023-24 में उन्होंने बजट में आवंटित कुल पूंजीगत व्यय में से 84 फीसदी खर्च किया। केवल चार राज्य ही लक्ष्य को पार कर सके। विशेषज्ञों का कहना है कि कमी की एक वजह व्यवहार्य परियोजनाओं की अनुपलब्धता भी हो सकती है।
दूसरा कारण यह है कि राज्य वित्त वर्ष के अंत तक राशि जारी करने की प्रतीक्षा करते हैं जिससे परिणाम प्रभावित होते हैं। ऐक्सिस बैंक के अर्थशास्त्रियों के एक हालिया नोट में इस बात को रेखांकित किया गया कि क्रियान्वयन के स्तर पर जोखिम हो सकता है।
राज्यों का वास्तविक पूंजीगत व्यय बीते दो वित्त वर्षों के संशोधित अनुमानों की तुलना में लगभग 10-15 प्रतिशत कम था। कमी की एक वजह पूंजीगत व्यय आवंटन में अच्छा खासा इजाफा भी हो सकती है। ऐसे में जरूरत है कि राजकोषीय हस्तक्षेप और अपेक्षाओं में संतुलन कायम किया जा सके।
समस्त राजकोषीय नतीजों के संदर्भ में उपरोक्त शोध नोट जिसमें सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी में 95 फीसदी का योगदान देने वाले 20 बड़े राज्यों की वित्तीय स्थिति पर गौर किया गया है, उससे पता चलता है कि इन राज्यों ने चालू वर्ष में जीडीपी के 3.2 फीसदी तक के राजकोषीय घाटे का लक्ष्य रखा है।
बहरहाल, अतीत में वास्तविक घाटे के संशोधित आंकड़े से कम रहने के रुझान को देखते हुए अंतिम आंकड़ा जीडीपी के 2.8 फीसदी के करीब रह सकता है। इसके अलावा चूंकि राज्यों के घाटे में केंद्र सरकार द्वारा दिया गया ऋण भी शामिल होता है इसलिए सामान्य सरकारी घाटे में जीडीपी के 2.5 फीसदी तक का इजाफा होगा। पंजाब और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों के लिए राजकोषीय प्रबंधन चुनौतीपूर्ण बना रहेगा। इन राज्यों की बकाया देनदारी जीडीपी के 40 फीसदी से अधिक है।
इस बीच केंद्र सरकार को आने वाले वर्षों में राजकोषीय सुधार करने होंगे ताकि सामान्य सरकारी घाटे और ऋण को समुचित स्तर पर स्थिर किया जा सके। व्यय की सावधानीपूर्वक समीक्षा करनी भी आवश्यक होगी।
चालू वर्ष में राजकोषीय घाटे के जीडीपी (GDP) के 5.1 फीसदी रहने का अनुमान जताया गया है। ऐसे में निजी निवेश को बढ़ाना होगा ताकि आर्थिक वृद्धि की गति बरकरार रखी जा सके।
बहरहाल, शीर्ष पर स्थित करीब 1,000 कंपनियों (वित्तीय सेवा कंपनियों को छोड़कर) के इस अखबार द्वारा किए गए डेटा विश्लेषण से पता चलता है कि 2023-24 में निवेश वृद्धि घटकर 7.6 फीसदी रह गई जबकि इससे पिछले वर्ष यह 12.2 फीसदी थी। निवेश वृद्धि में कमी को सही तरीके से समझने की जरूरत है।
आगामी बजट के संदर्भ में बात करें तो चूंकि सरकार पहले ही निजी निवेश को आकर्षित करने के लिए जीडीपी के तीन फीसदी के बराबर पूंजीगत व्यय पर खर्च कर रही है, तो शायद हमें सक्षम कारोबारी हालात तैयार करने और निजी निवेश को प्रोत्साहित करने पर ध्यान देना चाहिए।