कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने बीते रविवार को बेगूसराय में अचानक एक तालाब में छलांग लगा दी और दूर तक तैरते चले गए। उनके साथ पार्टी के युवा नेता कन्हैया कुमार और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के मुकेश सहनी भी थे। राहुल ने पानी के अंदर ही न केवल मछुआरों से बात की, उनके साथ फोटो खिंचवाई बल्कि जाल खींचने में भी उनकी मदद की।
दूसरी ओर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह लगातार अपनी सभाओं में बिहार में दोबारा राजग सरकार बनने पर मत्स्य पालन के लिए अतिरिक्त 4,500 रुपये देने का वादा कर रहे हैं, ताकि केंद्र से मिलने वाली उनकी सालाना वित्तीय सहायता राशि 9,000 रुपये हो जाए।
बिहार में 2023 में संपन्न हुए जाति सर्वेक्षण के अनुसार मल्लाह जाति समूह की कुल आबादी में हिस्सेदारी 2.6 प्रतिशत है। यह समुदाय मुख्यत: नाव चलाने और मछली पकड़ने के काम से ही अपनी आजीविका चलाता है। निषाद, बिंद, मांझी, केवट और तुरहा आदि भी अपनी रोजी-रोटी के लिए जलाशयों पर ही निर्भर हैं। ये सभी समुदाय मिलकर राज्य की आबादी में 9.6 प्रतिशत हैं और इन्हें अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) में वर्गीकृत किया गया है।
मछली पकड़ने के अलावा ये समुदाय मखाने की खेती भी करते हैं। कम से कम पिछले एक साल से न केवल राहुल गांधी बल्कि केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान तथा अन्य कई नेता बिहार की अपनी यात्राओं के दौरान मखाने के बीज बोने या मछली पकड़ने के लिए कीचड़ भरे पानी में उतरे हैं। चाहे सत्ताधारी राजग हो या विपक्षी महागठबंधन, दोनों ने ही चुनावी साल में इन समुदायों को लुभाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी। किसी ने भी पहले कभी इनके साथ इतना प्रेम नहीं दिखाया।
स्वयं को मल्लाह का बेटा कहने वाले 44 वर्षीय वीआईपी नेता सहनी को इंडिया गठबंधन ने अपना घोषणा पत्र जारी करते समय ही उपमुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया है। कुछ सप्ताह पहले ही जब सहनी ने महागठबंधन से अलग होने का इरादा बनाया तो माकपा प्रमुख दीपंकर भट्टाचार्य ने राजद नेतृत्व को सतर्क किया और उन्हें रोकने के लिए राहुल गांधी से बात करने के लिए कहा। इस घटना के बाद वीआईपी को 15 सीटें मिलीं, जो राजग द्वारा उन्हें दी जा रही सीटों से दोगुनी है।
राजग और महागठबंधन का अत्यंत पिछड़े वर्ग को अपने पाले में करने की कोशिशों के पीछे का कारण स्पष्ट है। मुजफ्फरपुर की औराई विधान सभा सीट पर महागठबंधन ने वीआईपी के भोगेंद्र सहानी को मैदान में उतारा है। इस सीट से पिछले कई दशक से राजग लड़ती आ रही थी। जबकि राजग ने अपने मौजूदा विधायक भाजपा के राम सूरत राय को हटाकर मुजफ्फरपुर से दो बार सांसद रहे भाजपा के ही अजय निषाद की पत्नी रमा निषाद को मैदान में उतारा है। यह पहली बार है जब 1967 में सीट बनने के बाद से प्रमुख दलों ने इस निर्वाचन क्षेत्र में यादव उम्मीदवार नहीं दिया है।
बिहार चुनाव में चाहे राजग हो या इंडिया गठबंधन, दोनों का ही जातीय और समुदायों में अपना-अपना मजबूत आधार है। राजग नेतृत्व वाले महागठबंधन को हवा का रुख मोड़ने के लिए कम से कम दो से तीन प्रतिशत वोटों में बदलाव की जरूरत है ताकि चुनावी मुकाबला 2020 की तरह ही कड़ा हो सके। इसमें न केवल युवा, बल्कि मल्लाह और अत्यंत पिछड़े वर्ग की अन्य जातियां महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
मुजफ्फरपुर के बैकुंठपुर गांव के रहने वाले 40 वर्षीय लक्ष्मण सहनी दिल्ली में ऑटो रिक्शा चलाते हैं। वह वोट डालने के लिए गांव आए हैं।
वह कहते हैं कि इस बार राजद को वोट दे सकते हैं, क्योंकि यदि महागठबंधन जीता तो मुकेश के उपमुख्यमंत्री बनने की संभावना बन सकती है। लेकिन, उनके घर की महिलाएं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की समर्थक हैं। विशेषकर राज्य सरकार द्वारा महिलाओं के खाते में 10,000 रुपये डालने और अपनी रैलियों में गृहमंत्री अमित शाह द्वारा अगले ढाई वर्ष में दो लाख रुपये और देने के ऐलान का महिलाओं पर खासा असर हुआ है।
हालांकि इस समुदाय से ताल्लुक रखने वाले लक्ष्मण जैसे युवा तेजस्वी यादव से प्रभावित दिखते हैं, जो राज्य से पलायन रोकने और नौकरी देने का वादा जोर-शोर से कर रहे हैं। पटना, मुजफ्फरपुर, वैशाली और उत्तरी बिहार की शेष मल्लाह बेल्ट में 6 नवंबर को होने वाला मतदान यह तय कर देगा कि तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाला महागठबंधन राजद के मुस्लिम-यादव आधार से अलग और भी वोट जुटाने में कामयाब है और क्या मुकेश सहानी अपने समुदाय का रुख महागठबंधन की ओर मोड़ने में सक्षम हैं।