अदाणी समूह पर अमेरिका की शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट आने के बाद प्रतिक्रियाओं का तांता लग गया है। इस रिपोर्ट के आने के बाद 25 जनवरी से अदाणी समूह की कंपनियों के शेयरों में धड़ाधड़ बिकवाली शुरू हो गई थी। क्रोधित ‘राष्ट्रवादियों’ ने इस रिपोर्ट को भारत पर हमला तक करार दे दिया। इसके बाद मुख्यधारा के संपादकों और संवाददाताओं की तरफ से अदाणी के कारोबार के बचाव में तर्क आने का सिलसिला शुरू हो गया। देश के सर्वोच्च न्यायालय में कई मुकदमे भी दायर हो गए।
मगर इन सब बातों से परे अदाणी प्रकरण में मूल प्रश्न यह है कि आखिर किसी जांच या नियामकीय हस्तक्षेप के बिना समूह की कंपनियों की शेयर कीमतें इतने असामान्य ऊंचे स्तरों पर कैसे पहुंच गईं। अदाणी टोटाल गैस लिमिटेड (एटीजीएल) एवं अदाणी के अन्य शेयरों में निचला सर्किट लग चुका है, खरीदार खोजे नहीं मिल रहे हैं। यह हिंडनबर्ग रिपोर्ट में निहित प्रमुख बिंदु की पुष्टि करता है कि रिपोर्ट जारी होने के दिन तक अदाणी समूह के सभी शेयर असामान्य ऊंचे स्तरों पर थे। कीमतों में धांधली के विषय पर कोई बहस करने के लिए तैयार नहीं है।
मुझे नहीं लगता कि अधिकांश लोग इस बात के प्रभावों को समझ पा रहे हैं कि अदाणी के शेयर किस तरह इतने असामान्य ऊंचे स्तरों पर पहुंच गए थे। अदाणी और अंबानी भारतीय उद्योग जगत के दो बड़े नाम हैं और राजनीतिज्ञ अक्सर इनके नामों का इस्तेमाल कर एक दूसरे पर टीका-टिप्पणी करते हैं। आइए, उनके शेयरों की कुछ सरल विधियों से तुलना करते हैं।जब अदाणी एंटरप्राइजेज अपने कारोबारी शिखर पर थी तो इसके शेयर का प्राइस-टू-अर्निंग (पीई) अनुपात 427 था। मान लें कि रिलायंस इंडस्ट्रीज के शेयर का पीई अनुपात 400 आंका गया होता आज इसका बाजार मूल्यांकन 16 गुना अधिक होगा और 1.3 लाख करोड़ डॉलर के साथ मुकेश अंबानी दुनिया के पहले खरबपति बन जाएंगे।
अगर टीसीएस और इन्फोसिस शेयरों के मूल्यांकन भी इसी तर्ज पर तय किए गए होतो तो बीएसई सेंसेक्स 60,000 के बजाय 8-10 गुना बढ़ोतरी के साथ 4,80,000 से 6,00,000 के दायरे में होता! दूसरी तरफ, अगर अदाणी शेयरों का मूल्यांकन टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेस (टीसीएस) या रिलायंस इंडस्ट्रीज के शेयरों की तरह ही होता तो गौतम अदाणी की शुद्ध हैसियत 150 अरब डॉलर के बजाय महज कुछ ही अरब डॉलर होती। यही असामान्य मूल्यांकन अब धीरे-धीरे सामने आ रहा है।
मंगलवार 24 जनवरी को एटीजीएल का भाव 3,892 रुपये था, जो अपने सर्वकालिक ऊंचे स्तर से बहुत दूर नहीं था। पिछले शुक्रवार को यह 752 रुपये के स्तर पर आ गया था। पिछले एक महीने में यह शेयर 81 प्रतिशत तक लुढ़क चुका है। लगभग हरेक दिन अदाणी समूह की कई कंपनियों के शेयर 5 प्रतिशत के निचले सर्किट को छू रहे हैं। ज्यादातर कारोबारी इससे सकते में आ गए हैं। लगातार 21 कारोबारी सत्रों से शेयर का कोई शुद्ध खरीदार नहीं रहा है और केवल बिकवाली हो रही है।
शुक्रवार को करीब 1,41,000 शेयरों का कारोबार हुआ था मगर सभी निचले सर्किट पर थे। खरीदार बड़ी संख्या में चिंतित और जागरूक निवेशकों को देखकर सहम गए थे। यह डर कुछ इस हद तक कारोबारियों के मन में बैठ गया था कि शेयर का मूल्य कारोबार शुरू होने के समय, कारोबार के दौरान एवं कारोबार बंद होने के समय समान था।
कई लोग यह प्रश्न कर रहे हैं कि कौन बेतहाशा बिक्री कर रहा है? अदाणी के पास 74.8 प्रतिशत शेयर हैं और शेष 17.8 प्रतिशत हिस्सेदारी विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआईआई) के पास है जो कथित तौर पर अदाणी के साथ हैं। इसके बाद बचे 6.09 प्रतिशत शेयर घरेलू संस्थागत निवेशकों (डीआईआई) के पास हैं और केवल 1.85 प्रतिशत आम निवेशकों के पास हैं। आखिर, शेयर बेच कौन रहा है?
इस प्रश्न का उत्तर सरल है, मगर यह प्रश्न ही सटीक नहीं है। एटीजीएल के 110 करोड़ शेयर हैं। अगर आम निवेशकों के पास 1.85 प्रतिशत शेयर हैं तो इसका मतलब हुआ कि उनके पास 2 करोड़ शेयर हैं। शुक्रवार को 1.41 लाख शेयरों में कारोबार हुआ और यह निचले सर्किट पर रहा। अगर इतनी कम बिकवाली के बाद शेयर निचले सर्किट पर बना रहता है तो यह लंबे समय तक के लिए नीचे फिसल सकता है क्योंकि सहमे लोग लगातार बिकवाली करते जा रहे हैं।
बड़ी हिस्सेदारी रखने वाले विदेशी संस्थागत निवेशक भी बिकवाली कर सकते हैं। लिहाजा, प्रश्न यह नहीं है कि बिकवाली कौन कर रहा है बल्कि यह पूछा जाना चाहिए कि लोग उस शेयर को खरीदने आगे क्यों नहीं आ रहे हैं जो केवल एक महीने में 81 प्रतिशत तक सस्ता हो चुका है। एक उत्तर यह हो सकता है कि एटीजीएल शेयर अब भी जरूरत से ज्यादा महंगा समझा जा रहा है और यही पूरे अदाणी विवाद की जड़ है।
हिंडनबर्ग के अनुसार एटीजीएल का उचित मूल्य (बाजार के पीई अनुपात के नियमों के अनुसार) रिपोर्ट जारी होने समय के भाव से 97.6 प्रतिशत कम होना चाहिए था! इससे एटीजीएल शेयर का उचित भाव 100 रुपये आएगा मगर 3,892 रुपये के स्तर से 81 प्रतिशत फिसलने के बाद भी यह 752 रुपये पर है। शेयरों के मूल्यांकन पर कई बातों का असर होता है।
लिहाजा, अदाणी समूह के शेयरों के मूल्य में गिरावट जरूर तौर पर जारी नहीं रहनी चाहिए और यह हिंडनबर्ग के उचित मूल्य के अनुमान के निकट नहीं पहुंचना चाहिए। दूसरी तरफ, अदाणी पावर का शेयर लगभग 50 प्रतिशत फिसल चुका है। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट में कहा गया था कि इस शेयर का मूल्यांकन केवल 18 प्रतिशत अधिक था।
अगर अदाणी शेयरों को हरेक गिरावट पर खरीदार मिल जाते तो किसी तरह का शोर-शराबा नहीं होता और लोगों को केवल अचरज होता। मगर आज अदाणी प्रकरण केवल कुछ खास बिंदुओं-किस तरह शेयरों का मूल्यांकन अनुचित स्तरों तक पहुंचाया गया, असामान्य मूल्यांकन पर हिंडनबर्ग रिपोर्ट और अदाणी शेयरों में तेज गिरावट- के इर्द-गिर्द तक सीमित रह गया है।
सवाल यह नहीं है कि अदाणी के कारोबार कितने मजबूत हैं या उन्हें सरकार से मदद मिली है या नहीं। यह बात भी मायने नहीं रखती है कि एक सामान्य पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति के लिए दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा अमीर व्यक्ति बनना कितना कठिन होता है। ये सभी बरगलाने वाली बातें हैं जो मुख्य विषय से ध्यान भटकाती हैं। सवाल तो यह पूछा जाना चाहिए कि कीमतों में धांधली क्यों होने दी गई जिससे शेयर इतने ऊंचे असामान्य स्तर पर पहुंच गए। कोई भी अन्य चर्चा, सवाल एवं बहस बाद की बातें हैं।
(लेखक डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू डॉट मनीलाइफ डॉट इन के संपादक हैं)