भारतीय दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता बोर्ड (आईबीबीआई) ने दिवाला व ऋण शोधन संहिता (आईबीसी) को अधिक पारदर्शी बनाने के लिए संशोधन प्रस्तावित किए हैं। इसके तहत सभी साझेदारों को उचित मूल्य का खुलासा करने का प्रस्ताव दिया गया है। यह जानकारी ऋणदाताओं की समिति (सीओसी) ने समाधान प्रक्रिया की अनिवार्य मासिक पुनर्समीक्षा में दी है।
आईबीबीआई ने प्रस्ताव दिया है कि आईबीसी के तहत समाधान योजना पर असहमति जताने वाले लेनदारों को समाधान राशि या परिसमापन (लिक्विडेशन) मूल्य में से जो भी कम हो, उस पर दावा करने का हक होना चाहिए।
दिवालिया नियामक ने 1 नवंबर को जारी चर्चा पत्र में कहा कि आमतौर पर परिसमापन राशि से कम मंजूर समाधान मूल्य कम होने पर असमहत लेनदारों को अधिक पात्रता मिलती है। मौजूदा नियमों के तहत ऐसे लेनदारों को उनके दावे परिसमापन मूल्य के हिस्से के रूप में मिलते हैं।
आईबीबीआई ने बताया, ‘ऐसे फैसलों में मुख्य मुद्दा यह होता है कि यदि ज्यादातर वित्तीय लेनदार समाधान योजना के प्रति असहमति जताते हैं और अधिक राशि की चाहत जताते हैं। इससे वे कॉर्पोरेट ऋणदाताओं को अधिक परिसमापन की ओर धकेल देते हैं। इससे संहिता का ध्येय विफल हो जाता है। ऐसे में यह कई असहमत ऋणदाताओं के खिलाफ भी हो सकता है।’
विशेषज्ञों के अनुसार यह कदम सीओसी के सदस्यगणों को समय पर फैसला लेने के लिए प्रेरित करेगा । बीडीओ इंडिया के बिज़नेस रीस्ट्रक्चरिंग सर्विसेज के पार्टनर भृगेश अमीन ने कहा, ‘इस बदलवा की लंबे समय से प्रतीक्षा रही है। यदि वित्तीय ऋणदाताओं के वरिष्ठ सदस्यों की भागीदारी को अनिवार्य कर प्रस्तावित संशोधन से जोड़ दिया जाए तो यह प्रक्रिया को और मजबूत कर सकती है।’
आईबीबीआई ने सात संशोधन प्रस्तावित किए हैं और लोगों से इन पर 22 नवंबर, 2023 तक राय मांगी है। इसमें समाधान योजना को दो हिस्सों में बांटने का प्रस्ताव दिया गया है। इसके पहले भाग (पार्ट ए) में समाधान योजन के तहत भुगतान और योजना की संभावना व व्यावहारिकता से संबंधित होगा। दूसरा भाग (पार्ट बी) विभिन्न साझेदारों में वितरण से संबंधित होगा।
