केंद्र सरकार ने विभिन्न विशेषज्ञों और हितधारकों के समूहों के साथ अपनी बजट पूर्व औपचारिक बैठकों की शुरुआत कर दी है। वैसे तो वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को फरवरी 2026 में बजट पेश करना है और कई वजहों से इस बजट से काफी उम्मीदें भी हैं। लेकिन एक शुबहा यह भी है कि कहीं वह जनवरी 2026 में ही तो बजट नहीं पेश कर देंगी? इस कयास की वजह है।
वर्ष 2017 में जब आम बजट पेश करने की तारीख को एक फरवरी किया गया था, तब से यह पहला मौका होगा जब एक फरवरी को रविवार होगा। जब केंद्रीय बजट फरवरी के अंतिम दिन पेश किया जाता था उस समय परंपरा यह थी कि अगर 28 या 29 फरवरी को रविवार हो तो उसके एक दिन पहले यानी शनिवार को बजट पेश किया जाता था। वर्ष 1947 के बाद प्रस्तुत 79 आम बजट में इसके केवल दो ही अपवाद हैं जब फरवरी का अंतिम दिन रविवार होने के चलते संबंधित वित्त मंत्री ने बजट को दो दिन पहले यानी शुक्रवार को पेश किया था। दूसरे सभी मौकों पर जब फरवरी का आखिरी दिन रविवार को था तब बजट एक दिन पहले यानी शनिवार को पेश किया गया।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को यह तय करना है कि वह पुरानी परंपरा से चलेंगी या आजाद भारत का 80वां बजट पेश करते हुए नई परंपरा शुरू करेंगी। अगर वह पुरानी परंपरा से चलती हैं तो वे वित्त वर्ष 2026-27 का बजट 31 जनवरी को पेश करेंगी यानी शनिवार को। वरना वे 2 फरवरी 2026 को बजट पेश कर सकती हैं।
बजट प्रस्तुति की तारीख से जुड़ी दुविधा को अलग कर दें तो भी एक और वजह है जिसके चलते सीतारमण के आगामी बजट को ऐतिहासिक महत्त्व का माना जाएगा। सीतारमण लगातार आठवीं बार लोक सभा में केंद्र सरकार का पूर्ण बजट पेश करेंगी। ऐसा करते हुए वह मोरारजी देसाई के बराबर पहुंच जाएंगी जिन्हें 8 पूर्ण बजट पेश करने का रुतबा हासिल है। हालांकि मोरारजी ने ऐसा दो पारियों में किया। उनका एक बजट प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के साथ आया तो अन्य 7 उनकी बेटी इंदिरा गांधी के प्रधानमंत्री रहते। सीतारमण का यह रिकॉर्ड एक ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो सरकारों में बनेगा।
देसाई का आठवां बजट कई कारणों से याद किया जाता है। इसमें कई वस्तुओं पर एड वेलोरम (मूल्यानुसार) उत्पाद शुल्क दरों की शुरुआत, वेल्थ टैक्स के दायरे का विस्तार, और लगभग तीन वर्षों की योजना अवकाश के बाद चौथी पंचवर्षीय योजना के शुभारंभ के लिए वित्तीय आवंटन शामिल था। लेकिन उनके आठवें बजट के लगभग साढ़े चार महीने बाद एक बड़ा राजनीतिक घटनाक्रम सामने आया। इंदिरा गांधी ने देसाई को वित्त मंत्रालय से हटाने का निर्णय लिया, जिससे अंततः उनकी सरकार से विदाई हुई। उसी समय इंदिरा गांधी ने 14 बैंकों के राष्ट्रीयकरण की अपनी लंबे समय से संजोई योजना को साकार किया।
सीतारमण के साथ ऐसी कोई चिंता नहीं जुड़ी है। वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी व्यवस्था को युक्तिसंगत बनाए जाने के अलावा मध्य वर्ग को आय कर में बड़ी राहत प्रदान की गई है। वित्त मंत्री के रूप में साढ़े छह वर्षों से अधिक का कार्यकाल पूरा करने के बाद, वह आज ऐसी ऊंचाई पर हैं जहां बहुत कम वित्त मंत्री पहुंचे हैं। राजकोषीय मजबूती के मोर्चे पर उनका प्रदर्शन सराहनीय रहा है। उन्होंने राजकोषीय घाटे को 2020-21 के कोविड वर्ष में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 9.2 फीसदी के उच्चतम स्तर से 2024-25 में घटाकर 4.7 फीसदी तक ला दिया है।
बजट के बाहर की उधारी को समाप्त कर उन्होंने राजकोषीय पारदर्शिता के लिए एक नया मानक स्थापित किया है। साथ ही, उन्होंने पिछले वर्ष पूंजीगत व्यय को बढ़ाकर सकल घरेलू उत्पाद के 3.2 फीसदी तक कर दिया जिससे सरकारी व्यय की गुणवत्ता में उल्लेखनीय सुधार हुआ है, जबकि राजस्व घाटा घटाकर सकल घरेलू उत्पाद के 1.7 फीसदी तक सीमित कर दिया गया है।
सवाल यह है कि चालू वर्ष में उनके समक्ष क्या चुनौतियां हैं और 2026-27 के लिए उनको क्या लक्ष्य तय करने चाहिए? वर्ष 2025-26 के पहले छह महीनों में शुद्ध कर राजस्व का प्रदर्शन कमजोर रहा। इसमें 2024-25 की तुलना में 13 फीसदी सालाना वृद्धि के लक्ष्य की तुलना में 3 फीसदी गिरावट आई। इस कमी को पूरा करने के लिए शुद्ध कर राजस्व में 2025-26 की दूसरी छमाही में करीब 30 फीसदी वृद्धि की आवश्यकता होगी। गैर कर राजस्व और परिसंपत्ति मुद्रीकरण से होने वाली प्राप्तियां अच्छी रहीं लेकिन ये लाभ शुद्ध कर राजस्व में कमी की भरपाई के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
अप्रैल से सितंबर 2025 के बीच राजस्व व्यय की धीमी गति कुछ राहत देने वाली है, जो कि सालाना अनुमानित वृद्धि दर लगभग 9 फीसदी के मुकाबले सिर्फ 1.5 फीसदी बढ़ी। इसके विपरीत, वित्त वर्ष की पहली छमाही में पूंजीगत व्यय को अग्रिम रूप से काफी बढ़ाया गया, जिससे इसमें 40 फीसदी से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई, और अब सरकार दूसरी छमाही में इसे धीमा करने की गुंजाइश रखती है। यहां तक कि अगर अक्टूबर से मार्च 2025-26 के बीच पूंजीगत व्यय में 15 फीसदी की गिरावट आती है, तब भी इस मद के तहत कुल लक्ष्य हासिल कर लिया जाएगा।
अपने पहले दो बजटों को छोड़कर, सीतारमण ने हर वर्ष या तो अनुमानित से कम राजकोषीय घाटे के साथ वर्ष का समापन किया है, या फिर लक्ष्य के अनुरूप घाटे को बनाए रखा है। यही ट्रैक रिकॉर्ड, अन्य बातों के साथ मिलकर, अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों द्वारा भारत की समग्र रेटिंग में सुधार का एक प्रमुख कारण रहा है। इसलिए, यह संभावना बहुत कम है कि वित्त मंत्री 2025-26 के लिए निर्धारित जीडीपी के 4.4 फीसदी घाटे के लक्ष्य को पार होने देंगी। इस लक्ष्य को प्राप्त करने में एकमात्र अनिश्चित तत्व यह है कि जीएसटी पुनर्गठन के बाद वर्ष की दूसरी छमाही में सरकार की शुद्ध कर आय कैसी रहती है।
पिछले दो वर्षों में वास्तविक शुद्ध कर राजस्व बजट अनुमान से कम रहा है। इस अवधि में राजकोषीय घाटा कम करने में सीतारमण की सफलता का श्रेय राजस्व व्यय में कटौती और उच्च नाॅमिनल आर्थिक वृद्धि को जाता है। वर्तमान वर्ष में वास्तविक नाॅमिनल वृद्धि निराशाजनक हो सकती है, और यह अनुमानित 10.1 फीसदी से कम रह सकती है। ऐसे में राजस्व व्यय में और कटौती ही एकमात्र विकल्प बचता है। लेकिन यह कार्य कितना कठिन होगा, यह इस बात पर निर्भर करेगा कि आठवें केंद्रीय वेतन आयोग की सिफारिशों का सरकारी कर्मचारियों के वेतन पर वास्तविक प्रभाव क्या होता है। संक्षेप में कहें तो, इस वर्ष राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को हासिल करना एक कठिन चुनौती होगी।
वर्ष 2026-27 में चुनौती और बड़ी तथा जटिल होगी। राज्यों के साथ संसाधनों के बंटवारे को लेकर सोलहवें वित्त आयोग की सिफारिशों को लागू करना अनिवार्य होगा। वैश्विक अर्थव्यवस्था में अनिश्चितताएं और उसके परिणामस्वरूप भारत की आर्थिक चुनौतियां और भी गंभीर होती जाएंगी। ऐसे समय में सरकार के लिए सबसे उपयुक्त रास्ता यह होगा कि वह अपने वित्तीय अनुशासन को और सख्ती से लागू करे, लेकिन साथ ही बेहतर अधोसंरचना निर्माण में निवेश और निजीकरण को बढ़ावा देने से समझौता न करे। दूसरे शब्दों में कहें तो, राजकोषीय अनुशासन की योजना पर कड़ी निगरानी बनाए रखना, जबकि पूंजीगत व्यय से कोई समझौता न किया जाए, इन अनिश्चित परिस्थितियों में देश को आगे ले जाने के लिए और भी अधिक आवश्यक होगा।
जब हम उस तारीख की ओर लौटते हैं जिस दिन निर्मला सीतारमण अपना आठवां बजट पेश कर सकती हैं, तो यह याद रखना उपयोगी होगा कि यदि वह 31 जनवरी को बजट पेश करने का निर्णय लेती हैं, तो अपने नाम एक और रिकॉर्ड दर्ज करा सकती हैं। भारत में अब तक किसी भी वित्त मंत्री ने जनवरी महीने में पूर्ण बजट पेश नहीं किया है।