कभी लोगों तक संदेश पहुंचाने का एकमात्र माध्यम डाक विभाग अब पहले की तरह नहीं रह गया है। मुंबई में एक डाकघर में काम करने वाली मयूरी शाह कहती हैं, ‘अब चिट्ठियों की जगह बचत योजनाओं से जुड़ा काम बढ़ गया है। शाह कहती हैं कि डाकघर में पहले जिस तरह चिट्ठियों का अंबार लगा रहता था अब वह मंजर नहीं दिखता है।
मगर कर्मचारियों की कमी के बावजूद ऐसा नहीं लगता कि डाकघर में काम नहीं है। दरअसल कर्मचारी पर काम का बोझ इतना अधिक रहता है कि वे ऐसे ही व्यस्त दिखाई देते हैं।
तेजी से कम हो रहा डाक विभाग का राजस्व
डाक विभाग का राजस्व तेजी से कम हो रहा है, भले ही सरकार इसे बढ़ाने के लिए एक नया विधेयक ला रही है। बिज़नेस स्टैंडर्ड द्वारा विभाग के आय एवं व्यय के जुटाए गए आंकड़ों के अनुसार पिछले एक दशक में डाक विभाग का राजस्व कम हुआ है।
हालांकि, ईमेल और इंटरनेट के इस जमाने में भारत के डाकघरों से अभी भी रोजाना 20 लाख पोस्टकार्ड और 80 लाख पत्र एक जगह से दूसरी जगह भेजे जाते हैं।
संसद में डाकघर विधेयक, 2023 पेश
सरकार ने 10 अगस्त को संसद में डाकघर विधेयक, 2023 पेश किया जो भारतीय डाकघर अधिनियम, 1898 की जगह लेगा। 2023 के विधेयक की खास बात यह है कि इसमें लोगों तक पत्र पहुंचने का कार्य सरकार के हाथ में विशेष रूप से नहीं रह जाएगा।
दिल्ली स्थित पीआरएस लेजिसलेटिव रिसर्च द्वारा जारी एक टिप्पणी में कहा गया है कि पुराने भारतीय डाक अधिनियम के प्रावधान के अनुसार पत्रों को एक जगह से दूसरी जगह पहुंचाने और अन्य संबंधित कार्यों की जिम्मेदारी विशेष रूप से सरकार की है होती है मगर नए विधेयक में ऐसा कोई विशेष प्रावधान नहीं है।
इस समय डाक के माध्यम से जितने पत्र भेजे जाते हैं उनमें ज्यादातर आधिकारिक संवाद ही होते हैं जिन्हें कंपनियां और बैंक भेजते हैं। मयूरी कहती हैं कि न्यायालय द्वारा भेजे जाने वाले कई पत्र भी होते हैं।
पोस्टकार्ड भेजने की संख्या 1.01 अरब से कम होकर 0.7 अरब
पोस्टकार्ड भेजने की संख्या 2012-13 के 1.01 अरब से कम होकर 2021-22 में मात्र 0.7 अरब रह गई। इसी तरह पत्रों की संख्या भी 10 वर्षों की अवधि में 3.5 अरब से कम होकर 2.4 अरब रह गई है।
पहले उम्मीद थी कि ई-कॉमर्स कंपनियां सभी स्थानों पर पहुंचने के लिए डाक विभाग पर निर्भर रहेंगी। शुरुआत में ऐसी स्थिति रही मगर दस साल के भीतर पार्सल और पैकेट भेजने की संख्या में गिरावट आने लगी। साल 2012-13 में 9.4 करोड़ पार्सल भेजे जाते थे जो साल 2021-22 में घटकर 8.9 करोड़ रह गए। इसी अवधि के दौरान पैकेट भेजने की संख्या 83.9 करोड़ से घटकर 55.6 करोड़ रह गई।
तेजी से बढ़ रही लागत
एक ओर जहां डाक विभाग का राजस्व कम हो रहा है, वहीं दूसरी तरफ इसकी लागत तेजी से बढ़ रही है। विभाग के राजस्व और इसकी लागत में अंतर 2021-22 में बढ़कर 18,861 करोड रुपये हो गया। 2012-13 में यह अंतर मात्र 5,426 करोड़ रुपये था।
विभाग का राजस्व 2012-13 में दर्ज 9,366 करोड़ रुपये से बढ़कर 2021-22 में 10, 860 करोड़ रुपये हो गया। राजस्व में 60 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी बचत बैंक एवं बचत पत्र कार्यों की है। इस खंड ने डाक विभाग के कुल राजस्व में 6,114 करोड़ रुपये का योगदान दिया।
केंद्रीय बजट के दस्तावेजों के अनुसार 2021-22 में विभाग ने कर्मचारियों के वेतन एवं भत्तों के मध्य में 17,829 करोड़ रुपये खर्च किए। विभाग ने पेंशन के मद में अतिरिक्त 10,593 करोड़ रुपये का भी प्रावधान किया था। ऐसा लगता है कि पेंशन के मद में अलग रखी गई रकम सबसे अधिक बोझ डाल रही है।
डाकघरों में कर्मचारी उपकरण की कमी से भी जूझते देखे जा सकते हैं। ऐसे ही एक कर्मचारी मकरंद देसाई हैं जो एक पुराने टिकट की तारीख को अपने हाथों से ही दूसरे दिन इस्तेमाल के लिए बदल रहे थे। उन्होंने कहा कि कम झमेले वाला डेट स्टांप देने के लिए आग्रह किया गया है मगर यह अगले साल ही आ पाएगा। देसाई 2024 में ही सेवानिवृत हो रहे हैं।
हालांकि, इन तमाम बातों के बावजूद भारत में डाक विभाग की महत्त्वपूर्ण भूमिका बनी रह सकती है। 2019 से 2021 के बीच सरकार द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार लगभग 43 प्रतिशत पुरुष और 67 प्रतिशत महिलाओं ने इंटरनेट का कभी इस्तेमाल नहीं किया है।
(पहचान छिपाने के लिए कुछ नाम बदल दिए गए हैं)