facebookmetapixel
Stock Market: सेंसेक्स 61 अंक टूटा, निफ्टी भी कमजोरGMP क्या है? जानिए आसान भाषा मेंदिल्ली से भाजपा का रिश्ता भावनाओं और विश्वास पर आधारित: पीएम मोदी‘मुस्कुराइए…’? लखनऊ की टैगलाइन को फीका करती सार्वजनिक परिवहन की मुश्किलेंट्रंप का बड़ा ऐलान: विदेशों में बनी फिल्मों पर 100% टैरिफ, फर्नीचर इंडस्ट्री का भी जिक्रZoho का IPO अभी नहीं आएगा; फाउंडर श्रीधर वेम्बू ने बताई वजहMoody’s ने भारत की रेटिंग बरकरार रखी, आउटलुक स्टेबल रखा; अर्थव्यवस्था के लिए क्या हैं इसके मायने?स्टॉक्स और MF से आगे: Reits, AIFs, क्रिप्टो, कलेक्टिबल्स में निवेश के नए मौकेNFO: मोतीलाल ओसवाल एमएफ ने उतारा कंजम्पशन फंड, ₹500 से निवेश शुरू; किसे लगाना चाहिए पैसाबिजली वितरण कंपनियों का FY26 घाटा एक-तिहाई घटकर ₹8,000-10,000 करोड़ पर आने का अनुमान

थर्ड पार्टी दवा उत्पादन को मिलेगा दम, नए बाजारों में विस्तार को बढ़ावा मिलने की उम्मीद

विश्लेषकों का कहना है कि यह शुल्क वृद्धि मोटे तौर पर सन फार्मा के लिए प्रतिकूल है लेकिन वास्तविक आय पर प्रभाव कई कारकों पर निर्भर करता है।

Last Updated- September 28, 2025 | 11:12 PM IST
Pharma

अमेरिकी शुल्क नीतियों को लेकर बढ़ती अनिश्चितता के कारण फार्मा क्षेत्र में मध्यम अवधि में थर्ड-पार्टी विनिर्माण और नए बाजारों में विस्तार को बढ़ावा मिल सकता है। विश्लेषकों और फार्मा उद्योग के अंदरूनी सूत्रों ने यह राय जाहिर की है। पिछले सप्ताह अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने अमेरिका में ब्रांडेड या पेटेंट दवाओं के आयात पर 100 फीसदी शुल्क लगाने की घोषणा की थी। साथ ही उन्होंने कहा था कि जिन फार्मा कंपनियों ने अमेरिका में विनिर्माण कारखाना लगाने का काम शुरू दिया है या जो निर्माण चरण में हैं, उन्हें छूट दी जा सकती है।

भारतीय कंपनियों में सन फार्मा अमेरिकी बाजार में पेटेंट उत्पादों की अच्छी खासी बिक्री करती है। वित्त वर्ष 2025 में सन फार्मा ने वै​श्विक बाजार में 121.7 करोड़ डॉलर मूल्य की पेटेंट दवाओं की बिक्री की जिनमें से अमेरिकी बाजार का हिस्सा 1.1 अरब डॉलर या वैश्विक बिक्री का लगभग 85-90 फीसदी था। यह कंपनी की कुल आय का लगभग 17 फीसदी है।

एचएसबीसी ग्लोबल इन्वेस्टमेंट रिसर्च ने कहा कि सन फार्मा के पेटेंट उत्पाद ज्यादातर वैश्विक सीडीएमओ (ठेके पर दवा बनाने वाली कंपनियों) भागीदारों द्वारा बनाए जाते हैं। उदाहरण के लिए कंपनी के पेटेंट पोर्टफोलियो में सबसे बड़े उत्पाद इलुम्या की दवा सामग्री द​क्षिण कोरिया में ठेके पर सीडीएमओ भागीदार द्वारा किया जाता है जबकि तैयार खुराक एक यूरोपीय सीडीएमओ द्वारा बनाई जाती है। वित्त वर्ष 2025 में कुल पेटेंट उत्पाद की बिक्री में इस दवा का योगदान 56 फीसदी था।

विश्लेषकों का कहना है कि यह शुल्क वृद्धि मोटे तौर पर सन फार्मा के लिए प्रतिकूल है लेकिन वास्तविक आय पर प्रभाव कई कारकों पर निर्भर करता है। इसमें आपूर्ति श्रृंखला का प्रसार, ब्रांड का बौद्धिक संपदा स्थान, थर्ड-पार्टी विनिर्माण आदि शामिल हैं।

एचएसबीसी के विश्लेषकों ने कहा, ‘सबसे खराब स्थिति में सन फार्मा को अपना विनिर्माण अमेरिका में किसी थर्ड पार्टी भागीदारों को स्थानांतरित करना होगा। सन फार्मा पेटेंट उत्पादों का विनिर्माण अमेरिका में अपने तीन संयंत्रों में भी स्थानांतरित कर सकता है। इसके लिए कंपनी पूंजीगत निवेश की घोषणा कर सकती है या अमेरिका में विनिर्माण कारखाना खरीद सकती है। जून 2025 तिमाही तक कंपनी के पास 3 अरब डॉलर की नकद या समतुल्य रा​शि थी। शुल्क व्यवस्था की जटिलताओं और अनिश्चितताओं से निपटने के लिए फार्मा कंपनियों के बीच थर्ड पार्टी विनिर्माण एक उभरता रुझान बन सकता है।

अमेरिकी दवा निर्यात करने वाली एक कंपनी के मुख्य कार्या​धिकारी ने कहा कि उन्होंने जरूरत पड़ने पर उत्पादन से जुड़े कुछ काम अमेरिकी सीडीएमओ में कराने पर विचार किया है। उन्होंने कहा, ‘अभी तक जेनेरिक दवाएं अप्रभावित रही हैं लेकिन तलवार लटकी हुई है। हमने अमेरिका में सीडीएमओ के साथ बातचीत शुरू कर दी है और यदि आवश्यक हुआ तो हम कुछ विनिर्माण वहां स्थानांतरित कर सकते हैं। ऐसा करने से लागत का लाभ खत्म हो जाएगा। इसलिए यह हमारे और अमेरिकी प्रशासन दोनों के लिए एक कठिन निर्णय होगा।’

बीसीजी-आईपीएसओ श्वेतपत्र ‘अनलीशिंग द टाइगर’ के अनुसार भारत में सीडीएमओ की पश्चिम की तुलना में श्रमबल लागत 70 से 80 फीसदी कम होती है और बुनियादी ढांचे पर पश्चिम की तुलना में 85 फीसदी का लाभ है। इसलिए भारत में स्थानीय विनिर्माण का स्पष्ट लाभ है।

बायोकॉन, अरबिंदो, डॉ. रेड्डीज लेबोरेटरीज (डीआरएल), ग्लेनमार्क, ल्यूपिन और सन फार्मा जैसी कई भारतीय फार्मा कंपनियों के पहले ही अमेरिका में विनिर्माण संयंत्र हैं। इसके अलावा पीरामल, सिंजिन, साई लाइफसाइंसेज की ठेके पर विनिर्माण करने की इकाइयां हैं। पीरामल फार्मा ने अमेरिका में अपनी एक इंजेक्शन उत्पाद के उत्पादन के विस्तार पर काम शुरू कर दिया है।

कंपनी ने जुलाई में कहा था, ‘इससे मध्यम से लंबी अवधि में हमारे एकीकृत ऐंटीबॉडी दवा कंजुगेट (एडीसी) के विकास और विनिर्माण कार्यक्रम को बढ़ावा मिलेगा।’ एडीसी एक प्रकार की कैंसर थेरेपी है जिसे कीमोथेरेपी को सीधे कोशिकाओं तक पहुंचाने के लिए डिजाइन किया गया है।

पीरामल फार्मा की चेयरपर्सन नंदिनी पीरामल ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘अमेरिका में फिल-एंड-फिनिश उत्पादों की बहुत मांग है और हमारे कुछ ग्राहक थे जिनकी उत्पादन इकाई कहीं और चले गए क्योंकि हमारे पास ऐसा करने के लिए जगह या क्षमता नहीं थी। हम अब लगभग 24,000 वर्ग फुट के साथ-साथ नई प्रयोगशाला भी जोड़ रहे हैं और विस्तार 2027 तक पूरा हो जाएगा।’ उद्योग के सूत्रों का मानना है कि उच्च मार्जिन और उच्च मूल्य वाले उत्पादों की सुरक्षा भारतीय दवा कंपनियों की प्रमुख प्राथमिकता होगी।

First Published - September 28, 2025 | 11:12 PM IST

संबंधित पोस्ट