विश्व की पहली पंक्ति के देशों में शुमार होने के लिए भारत ने दो और शानदार प्रतीकों को अपने साथ जोड़ लिया है। ये प्रतीक हैं विश्व स्तर के अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डे।
एक का निर्माण हैदराबाद में किया गया है तो दूसरे का चकाचौंध से भरपूर बेंगलुरु शहर में। लेकिन भारत के इस सुनहरे विकास के मुखौटे के पीछे आप एक अन्य विकास को पाएंगे। और वह विकास इस विकास के मुकाबले काफी कम उम्दा होगा। हम इस बात को स्वीकार करने से हमेशा इनकार करते हैं कि हमारे देश में अमीर व गरीब दोनों प्रकार के लोग हैं और उन्हें ध्यान में रखते हुए ही हमें अपनी बुनियादी सुविधाओं को विकसित करना चाहिए।
हम जिन विश्वस्तरीय बुनियादी सुविधाओं को विकसित करने के सपने पाल रहे हैं, वे भी इन्हीं हकीकत पर आधारित होने चाहिए।अगर हम अपने भीड़भाड़ वाले व सुविधाओं के अभाव से लैस एयरपोर्ट की बात करें तो एक ही हल समझ में आएगा कि इनकी सूरत को बदलने के लिए काफी अधिक निवेश की जरूरत है या फिर नए निर्माण के लिए निजी लोगों की सहायता ली जाए। ऐसा करना कही से गलत नहीं है।
लेकिन हम इस बात पर कभी विचार नहीं करते हैं कि इस भवन की लागत क्या होगी और यहां मुहैया कराई गईं सुविधाओं को जारी कैसे रखा जाएगा और इसके लिए खर्च कहां से आएगा। नए एयरपोर्ट की बात करें तो यहां आने वाले यात्रियों को सुविधा फीस के नाम पर मोटी रकम चुकानी पड़ेगी, क्योंकि यह इसकी जरूरत होगी। सुविधा फीस के नाम पर हर यात्री से एक हजार रुपये तक लिए जा सकते हैं।
साथ ही एयरलाइंस को भी इन उच्चस्तरीय सुविधाओं को कायम रखने के लिए भुगतान करना चाहिए। क्योंकि इस प्रकार की सुविधाओं की हमें जरूरत है। और निश्चित रूप से हम सब को यहां मिलने वाली बहुमंजिली कार सुविधा के लिए भुगतान करना चाहिए। इन सभी खर्चों को जोड़ दें तो हवाई यात्रा का विकल्प कम आकर्षक लगने लगेगा। फिर विकल्प क्या है?
इस मामले में सरकार कोई जोखिम नहीं ले सकती, क्योंकि एक तरफ तो हवाई यात्रा करने वाले यात्रियों का गठजोड़ है तो दूसरी तरफ शक्तिशाली कंपनियां हैं। ऐसे में दूसरे छोटे रास्ते से इसका हल सोचा जा सकता है। एयरपोर्ट विकसित करने वालों को कहा जाए कि वे यात्रियों से विकास फीस चार्ज नहीं करे। दूसरे शब्दों में कहें तो यात्रियों को रियायत दी जाए। लेकिन इसके बदले उन्हें और ज्यादा पैसा कमाने का अवसर दिया जाए। इस वास्ते उन्हें एयरपोर्ट इलाके में मॉल व भवन बनाने की इजाजत देनी होगी।
इन सभी बातों के बीच सच्चाई यह है कि हम इन जरूरी चीजों को भूल जाते हैं कि निजी निवेश से होने वाले कामों के लिए सार्वजनिक निवेश की जरूरत है। हमें यह भी पूछना चाहिए कि इस नए शानदार एयरपोर्ट के लिए हवाई यातायात नियंत्रण (एयर ट्रैफिक कंट्रोल) पर कहां तक ध्यान दिया गया है। जरूरत के हिसाब से बेंगलुरु एयरपोर्ट के लिए 80 हवाई यातायात नियंत्रक की आवश्यकता है। लेकिन वहां सिर्फ 25 कर्मचारी है।
हम सभी इस बात से वाकिफ हैं कि हमारे देश के हर क्षेत्र में यहां तक कि हवाई यात्रा में भी काफी बढ़ोतरी हुई है, लेकिन उस बढ़ोतरी की पूर्ति के लिए और उसे कायम रखने के लिए न तो लोगों को प्रशिक्षित किया गया और न ही उस स्तर पर नियुक्ति की गई। कर्मचारी की भारी कमी है और मौजूदा कर्मचारियों पर बोझ काफी अधिक है।
विमानन विशेषज्ञों का कहना हैं कि रेडार के क्षेत्र को बढ़ाने के साथ कुशल हवाई यातायात नियंत्रक की बहाली करने पर हम अपनी उड़ानों की संख्या में बढ़ोतरी कर सकते हैं। लेकिन हम ऐसा नहीं करके शानदार व भव्य हवाईअड्डे का निर्माण कर रहे हैं। जिसके लिए हम कोई भुगतान नहीं कर सकते हैं। इसके बाद हमें रियायत दी जाती है और हम विकास की उन चीजों पर कम खर्च करते हैं जहां हमें अधिक खर्चने की जरूरत है।
उसी तरह हम यह भी चाहते हैं कि हवाई यात्रा इतनी सस्ती हो जाए कि हमें उसकी लागत का भी भुगतान नहीं करना पड़े। इस मामले में शक्तिशाली लोगों की लामबंदी के कारण पहले ही आंध्र प्रदेश, केरल और अब महाराष्ट्र में इस यात्रा पर लगने वाले 12.5 फीसदी वैट को कम कर 4 फीसदी कर दिया गया है। दूसरे शब्दों में कहे तो यह हवा में डीजल कार चलाने जैसी बात हुई।
क्योंकि एक तरफ तो हम कार चलाने के लिए उच्चस्तरीय संसाधन चाहते हैं लेकिन हम अपनी महंगी कार को सस्ते ईंधन से चलाना चाहते हैं। प्रदूषण व जाम पर ध्यान देने की बात तो छोड़िए हम पार्किंग के लिए भी भुगतान करना नहीं चाहते है।हवाई यात्रा के मार्ग पर भीड़ बढ़ने लगी है। यह समस्या हमारे समक्ष तेजी से बढ़ रही है। इस कारण से अधिक ईंधन का खर्च होता है और बदले में अधिक प्रदूषण भी फैल रहा है।
लेकिन हम इस समस्या को सड़कों पर होने वाले जाम व प्रदूषण की समस्या जैसी ही मान रहे हैं। हम मानते हैं कि इस प्रकार की समस्याओं से निजात पाने के लिए हम अपना कोई अलग रास्ता खोज निकालेंगे। लेकिन हम इस बात को कभी सीखना नहीं चाहते कि अगर हम अलग तरीके से योजना नहीं बनाते हैं तो बुनियादी सुविधाओं की विकात गति किसी भी कीमत पर विकास दर के साथ तालमेल नहीं बिठा सकती।
यहां हम दिल्ली-गुड़गांव मार्ग पर बनने वाले हाईवे का उदाहरण पेश कर सकते है। योजना के तहत माना गया था कि 2016 में इस हाईवे से 160,000 वाहन गुजरेंगे। लेकिन इसकी शुरुआत के पहले दिन से ही इस हाईवे पर 130,000 वाहनों का आगमन हुआ। नतीजा यह हुआ कि पहले दिन से ही कई गेट वाले इस हाईवे पर जाम ही जाम नजर आया।
इसके जवाब में कार रखने वाले लोग कहेंगे कि अगर यह सड़क पर्याप्त नहीं हैं तो इससे भी बड़ी व चौड़ी सड़क का निर्माण किया जाना चाहिए। और यह भी काफी नहीं हो तो दोमंजिल वाले फ्लाईओवर का निर्माण होना चाहिए। लेकिन असलियत यह है कि गुड़गांव व दिल्ली के बीच की रेल सेवा व बस सेवा को मजबूत बनाने के लिए कोई भी सार्थक कदम नहीं उठाना चाहता है। क्योंकि इसके लिए अलग तरीके से योजना बनाने की जरूरत होती है।
वह योजना वैसी होनी चाहिए जो हमारी जरूरत व हमारे खर्च करने की हैसियत के मुताबिक हो। लेकिन नहीं, ऐसा नहीं होगा। क्या यह उपहास का विषय बनाना नहीं होगा। यहां तक कि हम हवा में या सड़कों पर शानदार सवारी में यात्रा करते हैं और उस यात्रा खर्च की लागत का भी भुगतान नहीं करते। इससे और अधिक अच्छा क्या हो सकता है।