वित्त मंत्रालय ने अन्य विभागों और मंत्रालयों से कहा है कि वे अपने खर्च को चालू वित्त वर्ष के लिए आवंटित राशि के दायरे में रखें। वित्त मंत्रालय अगले वर्ष का बजट तैयार कर रहा है। आगामी बजट एक फरवरी को पेश किया जाएगा और इसे तैयार करने में चालू वर्ष के संशोधित अनुमानों का ध्यान रखा जा रहा है। इस वर्ष सरकार की स्थिति अपेक्षाकृत बेहतर है क्योंकि राजस्व संग्रह अनुमान से बेहतर हुआ है। बहरहाल, महामारी की नई लहर और बीते कुछ सप्ताह में कोविड-19 संक्रमण के मामलों में तेज इजाफे ने इस बात को रेखांकित किया है कि अगले वित्त वर्ष में भी अनिश्चितता बरकरार रह सकती है। सार्वजनिक गतिविधियों पर नए सिरे से लगने वाले प्रतिबंधों ने चले आ रहे सुधार को प्रभावित किया है। हालांकि आधार प्रभाव के कारण वृद्धि के शीर्ष आंकड़े चालू वर्ष में ऊंचे रहेंगे लेकिन अर्थव्यवस्था को निरंतर मदद की जरूरत होगी। इस बारे में अधिकांश अर्थशास्त्रियों की दलील है कि पूंजीगत व्यय को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
सरकार का उच्च पूंजीगत व्यय मांग तैयार करने में मदद करेगा और समय के साथ निजी निवेश जुटाने में सहायक होगा। उच्च वृद्धि दर बरकरार रखने के लिए यह आवश्यक है। बहरहाल, इस नजरिये पर सहमति है और सरकार भी इसे स्वीकार करती है लेकिन यह पहेली अब भी बरकरार है कि चालू वित्त वर्ष में सरकार पूंजीगत व्यय के मामले में इतना धीमा रुख क्यों रख रही है। सरकार ने इस वर्ष में पूंजीगत व्यय में 30 फीसदी इजाफा करने की बात कही थी लेकिन नवंबर 2021 तक उसने बजट अनुमान का 50 फीसदी से भी कम खर्च किया था। इसके अलावा इस समाचार पत्र में प्रकाशित एक हालिया रिपोर्ट ने दिखाया कि सरकार जिन क्षेत्रों पर ध्यान दे रही है, उनमें भी व्यय की राशि धीमी है। उदाहरण के लिए आर्थिक मामलों के विभाग को 56,500 करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई थी, यह राशि मोटे तौर पर नैशनल इन्फ्रास्ट्रक्चर पाइपलाइन के लिए थी। परंतु नवंबर के अंत तक इसमें से बमुश्किल दो फीसदी राशि व्यय की गई। इसी प्रकार पेयजल परियोजना के लिए आवंटित 60,000 करोड़ रुपये की राशि में से इस अवधि में बमुश्किल एक तिहाई राशि खर्च हो सकी। दूरसंचार विभाग द्वारा किए जाने वाले व्यय में भी धीमापन रहा। यह संभव है कि सरकार वर्ष समाप्त होने से पहले इस क्षेत्र में कुछ और प्रगति कर ले लेकिन पूंजीगत व्यय को लेकर इस प्रकार व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए। व्यय को वर्ष के अंत की ओर टालने से क्षमता प्रभावित हो सकती है। इस संदर्भ में यह याद रखना श्रेयस्कर होगा कि ऐसे ही नतीजों से बचने के लिए केंद्रीय बजट की प्रस्तुति को एक माह पहले किया गया। विचार यह था कि बजट को जल्दी पेश करने से सरकार को वित्त वर्ष के आरंभ से ही व्यय करने में मदद मिलेगी। पूंजीगत व्यय के मोर्चे पर धीमी प्रगति को इसलिए भी नहीं समझा जा सकता है क्योंकि वित्त वर्ष 2021 की दूसरी छमाही में कोविड संक्रमण का दबाव अपेक्षाकृत कम था। बल्कि महामारी से जुड़ी तमाम अनिश्चितता के बावजूद गत वित्त वर्ष के दौरान व्यय की गति बेहतर थी। ऐसे में यह स्पष्ट नहीं है कि इस वर्ष सरकार धीमी क्यों है। खासतौर पर राजस्व की स्थिति को देखते हुए।
यह संभव है कि अन्य क्षेत्रों में अनुमान से अधिक व्यय पूंजीगत व्यय के बजट को प्रभावित कर रहा हो। इससे बचा जाना चाहिए। ऐसी स्थिति में जहां सरकार से आशा हो कि वह मोटे तौर पर पूंजीगत व्यय में इजाफा करेगी, बजट में उल्लिखित राशि को खर्च नहीं करना वृद्धि की संभावनाओं को प्रभावित करता है। सरकार को सलाह होगी कि वह वित्त वर्ष समाप्त होने के पहले यथासंभव खर्च करे। अगले वर्ष सरकार को कुल व्यय में जरूरी समायोजन के साथ पूंजीगत व्यय को बढ़ावा देना चाहिए। सरकार विनिवेश को बढ़ावा देकर भी संसाधन बढ़ा सकती है।
