मैं कई दशकों से भारतीय बाजारों में निवेश कर रहा हूं। इस दौरान, हमने वैश्विक कंपनियों को भारतीय परिचालन में निरंतर अपनी हिस्सेदारी बढ़ाते देखा है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने लगातार ऐसे अवसरों की तलाश की है जिनकी बदौलत वे अपना आर्थिक स्वामित्व बढ़ा सकें या अपनी भारतीय अनुषंगी कंपनियों को पूरी तरह निजी बना सकें।
इसके लिए वे निजी कंपनियों के साथ विलय, शेयरों की पुनर्खरीद या उनका प्राथमिकता पर आवंटन कराने जैसे कदम उठाती हैं। भारतीय कारोबार पर पूरे मालिकाने के लक्ष्य को लेकर जितना अधिक दांव लगाया जाए उतना ही बेहतर होता है। कई कंपनियों ने उस समय प्रचलित बाजार मूल्य से अधिक प्रीमियम पर अपने दांव बढ़ाए जो स्पष्ट रूप से यह संकेत दे रहा था कि बाजार उनके भारतीय कारोबार की दीर्घकालिक संभावनाओं को कम करके आंक रहे थे।
विगत 12 महीनों में यह रुझान बदला है। अब कई ऐसी बहुराष्ट्रीय कंपनियां हैं जिन्होंने अपनी हिस्सेदारी का मुद्रीकरण किया है और वे अपने भारतीय परिचालन में अपनी आंशिक हिस्सेदारी बेच रहे हैं। व्हर्लपूल, टिमकेन और जेडएफ उन वैश्विक बहुराष्ट्रीय समूहों का उदाहरण हैं जो अपनी हिस्सेदारी बेच रहे हैं और उच्च मूल्यांकन का मुद्रीकरण कर रहे हैं। ह्युंडै मोटर्स मूल्यांकन का लाभ उठाने और अपनी भारतीय अनुषंगी को सूचीबद्ध करने वाली सबसे बड़ी वैश्विक कंपनी के रूप में सामने आई है।
ह्युंडै तीन अरब डॉलर से अधिक राशि जुटा सकती है जो भारतीय इतिहास में सबसे बड़ी प्रारंभिक सार्वजनिक पेशकश होगी। व्हर्लपूल ने करीब 50 करोड़ डॉलर जुटाए। इसके लिए उसने अपनी हिस्सेदारी 75 फीसदी से कम करके 51 फीसदी कर ली। यह पैसा वैश्विक बैलेंस शीट के नकदीकरण के लिए जुटाई जा रही है या शायद इलेक्ट्रिक वाहन जैसे नए क्षेत्रों में निवेश करने के लिए।
बैंकरों के मुताबिक यह रुझान अभी शुरू होता नजर आ रहा है और शायद आने वाले महीनों में और बहुराष्ट्रीय कंपनियां मुद्रीकरण करती नजर आएं। बड़े भारतीय कारोबार वाली कई अन्य बहुराष्ट्रीय कंपनियां ह्युंडै का अनुसरण कर सकती हैं। जब आप अपने मूल देश के पांच गुना के मूल्य आय चर की तुलना में भारत में 20-25 गुना मूल्य आय चर पर सूचीबद्ध हो सकते हैं और आपको इक्विटी पूंजी की आवश्यकता हो तो आकर्षण स्वाभाविक है। आप स्थानीय कारोबार पर नियंत्रण रखते हुए भी भारी पूंजी जुटा सकते हैं।
यह रुझान अच्छा है या चिंतित करने वाला? यह भारत के पूंजी बाजारों की परिपक्वता और उनके आकार का स्पष्ट संकेत है। भारत का बाजार पूंजीकरण 5 लाख करोड़ डॉलर से अधिक का है और हम दुनिया में चौथे स्थान पर हैं। औसत दैनिक कारोबार का आकार अब हॉन्गकॉन्ग से अधिक हो चुका है।
महज पांच साल से भी कम पहले एमएससीआई उभरते बाजार सूचकांक में भारत का भार (वेटिंग)10 फीसदी और चीन का करीब 40 फीसदी था। आज भारत का भार बढ़कर करीब 20 फीसदी है जो दूसरा सबसे अधिक भार है। चीन 24 फीसदी के साथ सबसे आगे है। हमारा पूंजी बाजार उन चुनिंदा बाजारों में शामिल है जो अरबों के इश्यू का समर्थन करते हैं।
हमारा जीडीपी चार लाख करोड़ डॉलर का है और पारिवारिक बचत की दर 20 फीसदी है। यह बचत भारतीय संपत्तियों में है और तेजी से शेयरों में जा रही है। ऐसे में भारत सूचीबद्धता के लिए अनुकूल जगह है। विशुद्ध आधार पर भी यह बहुत आकर्षक और बढ़ती बचत है।
ऐसी दुनिया में जहां निवेशक सीमित आईपीओ बाजार की शिकायत करते हैं और सूचीबद्धता की कमी की बात कहते हैं, वहां भारतीय बाजार नई सूचीबद्धता के प्रति खुलेपन की दृष्टि से अलग दिखते हैं। यहां तमाम क्षेत्रों और उद्योगों की कंपनियां सूचीबद्ध हो सकती हैं। हमें कई आईपीओ और द्वितीयक बाजार देखने को मिल रहे हैं। यह जीवंतता स्टार्टअप के माहौल को भी मजबूत करती है। मिसाल के तौर पर वेंचर कैपिटल की पूंजी बाजार से निकलने की क्षमता पर सवाल नहीं किया जाता है।
भारत दुनिया के उन चुनिंदा बाजारों में से एक है जहां पारंपरिक कार कंपनियां दो अंकों वाले चर में सूचीबद्ध हो सकती हैं और अरबों डॉलर की राशि जुटा सकती हैं। इसी तरह घरेलू उपकरण बनाने वाली किसी कंपनी या वाहन कलपुर्जा कंपनी के लिए पश्चिम में 50 करोड़ डॉलर जुटाने की कोशिश की अपनी मुश्किलें हैं।
पुराने कारोबारी मॉडलों के लिए भारत उन चुनिंदा बाजारों में से एक हो सकता है जहां उचित मूल्यांकन पर सूचीबद्धता हो सकती है। विभिन्न क्षेत्रों में भारतीय परिसंपत्तियां वैश्विक कंपनियों की तुलना में महत्त्वपूर्ण मूल्यांकन प्रीमियम पर कारोबार कर रही हैं। बहुराष्ट्रीय कंपनियां मूल्यांकन के अंतर्विरोध को देखते हुए अलग-अलग वृद्धि और मूल्यांकन अपेक्षाओं का लाभ उठा रही हैं। वे भारत के प्रीमियम का उपयोग अपने लाभ के लिए कर रही हैं।
इक्विटी में बढ़ती आवक के जारी रहने की उम्मीद को देखते हुए आईपीओ पाइपलाइन वास्तव में सकारात्मक है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि इक्विटी की मांग पर्याप्त आपूर्ति के जरिये पूरी हो। मजबूत आईपीओ बाजार यह सुनिश्चित करता है कि इक्विटी में आने वाले पैसे का इस्तेमाल वित्तीय कारोबार के विस्तार में किया जा सके, बजाय कि केवल द्वितीयक कीमतों में इजाफा करने के। नियामक को आपूर्ति की गुणवत्ता तथा वास्तविकता सुनिश्चित करना चाहिए। यदि बुलबुले जैसी स्थिति बनती है तो पूंजी का गलत आवंटन होता है और इससे बहुत बड़े पैमाने पर खुदरा नुकसान होगा।
अब जबकि वैश्विक कंपनियां भारत में प्रीमियम चर का लाभ मुद्रीकरण के लिए कर रही हैं, भारतीय कंपनियां भी रणनीतिक उद्देश्य से ऐसे चरों का लाभ ले सकती हैं। वे विदेशों में द्वितीयक सूचीबद्धता तैयार कर सकती हैं जो स्थानीय कीमतों पर कारोबार कर सकती है और मुद्रा का इस्तेमाल वैश्विक परिसंपत्तियों या प्रतिभाओं को जुटाने के लिए कर सकती हैं।
यद्यपि हमें यह भी स्वीकार करना होगा कि कुछ कारणों से रुकने की भी जरूरत है। अगर सबसे बड़ा शेयरधारक बेच रहा है और अपनी मर्जी से बेच रहा है तो हम क्यों खरीद रहे हैं? क्या यह भेदिया बिकवाली के समान नहीं है? आखिर कंपनी की दीर्घकालिक संभावनाओं के बारे में मुझे क्या पता है जो बहुराष्ट्रीय विक्रेता को नहीं पता है?
सामान्य तौर पर प्रमुख अंशधारक के अतिरिक्त किसी के पास दीर्घकालिक परिदृश्य की बेहतर समझ नहीं होती है। ऐतिहासिक रूप से देखा जाए तो बहुराष्ट्रीय कंपनियां हमेशा हिस्सेदारी बढ़ाने का प्रयास करती हैं। आज बदलाव क्यों? क्या मूल्यांकन पूरी तरह असंगत है? क्या यह मुद्रीकरण पूंजी का उनका सबसे सस्ता जरिया है?
क्या आज भारतीय कारोबारों का आकार ऐसा है कि वैश्विक रूप से प्रासंगिक मुद्रीकरण की घटनाएं भारत में हों? क्या बाजार दीर्घकालिक वृद्धि संभावनाओं को लेकर अधिक आशावादी है? वजह चाहे जो भी हो यह एक और आंकड़ा है जोबताता है कि आज भारत में मूल्यांकन कितना ऊंचा है।
यह तो स्पष्ट है कि हम तेजी के बाजार में हैं। देखना यह होगा कि ये सिलसिला कितना लंबा चलता है। एक बात स्पष्ट है कि जब तक घरेलू निवेशकों का भरोसा डांवाडोल नहीं होता है तब तक हमारे बाजारों में बड़ी गिरावट नहीं आने वाली है। फिलहाल तो ऐसा कोई संकेत नहीं मिल रहा है।
(लेखक अमांसा कैपिटल से संबद्ध हैं)