फ्लोर मिल ने केंद्र सरकार से गेहूं सत्र की शुरुआत पर मौजूदा मानदंड 75 लाख टन से करीब 140 प्रतिशत अधिक स्टॉक रखने का अनुरोध किया है। यह आग्रह फ्लोर मिल ने गेहूं के नए बोआई सत्र से पहले किया है। इससे गेहूं के दामों में उतार-चढ़ाव पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी।
द रोलर फ्लोर मिलर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष नवनीत चितलांगिया ने बताया, ‘भारत को सार्वजनिक वितरण प्रणाली की जरूरत को पूरा करने के लिए हर साल 184 लाख टन गेहूं की जरूरत होती है। हम यह सुझाव दे रहे हैं कि सरकार स्टॉक बनाए और यह गेहूं सत्र की शुरुआत में एक पूरे साल की जरूरत के अनुरूप हो। इससे दामों में कोई उतार-चढ़ाव नहीं होता है और बाजार में निश्चितता रहती है।’
इस सुझाव से केंद्र सरकार की भंडारण पर सब्सिडी और भंडारण क्षमता की सीमा बढ़ने की उम्मीद है। चितलांगिया के मुताबिक उत्तर भारत के राज्यों में विशेष तौर पर पंजाब में गेहूं की बोआई देरी से होने की आशंका है। इसका कारण यह है कि पंजाब में बाढ़ के कारण खेतों में बाढ़ की गाद पड़ी हुई है और इसे राज्यों के पांच जिलों में खेतों से हटाने में कम से कम कुछ हफ्ते लग जाएंगे।
चितलांगिया ने सरकार से मवेशियों के स्वास्थ्य और दूध की गुणवत्ता पर डीडीजीएस (ड्राइड डिस्टिलर्स ग्रेन्स विद सॉल्यूबल्स) के प्रभाव पर व्यापक अध्ययन कराने का भी आग्रह किया। उन्होंने सार्वजनिक अध्ययनों के हवाले से बताया कि डीडीजीएस की मात्रा तेजी से बढ़ने के कारण मवेशियों के पाचन तंत्र और दीर्घावधि उत्पादकता पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है।
उन्होंने कहा, ‘अतिरिक्त डीडीजीएस ने पारंपरिक पशु आहार बाजार को भी बाधित कर दिया है। इससे गेहूं चोकर की कीमतों में भारी गिरावट आई है। इसका सीधा असर आटा मिलों पर पड़ा है। विडंबना यह है कि उपभोक्ताओं के लिए आटा, मैदा और सूजी की कीमतें बढ़ गई हैं।’ फेडरेशन ने गेहूं नीति विशेष तौर पर ओपन मार्केट सेल स्कीम (ओएमएसएस) के तहत दीर्घावधि स्पष्टता की मांग की।