सरकार ने गत शुक्रवार को वित्त वर्ष 2019-20 के दौरान सरकारी राजस्व के प्रारंभिक वास्तविक आंकड़े जारी किए। ये आंकड़े वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा वर्ष 2020-21 का बजट पेश करते समय उद्धृत अनुमान से बहुत ज्यादा अलग हैं।
प्रारंभिक वास्तविक आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2019-20 का राजकोषीय घाटा जीडीपी के 4.6 फीसदी के बराबर रहा। इसे बजट अनुमान में जीडीपी का 3.8 फीसदी बताया गया था।
दरअसल बजट के संशोधित अनुमान में सरकारी कर राजस्व का अनुमान काफी गलत था। वर्ष 2019-20 में सकल कर राजस्व के पिछले साल की तुलना में 4 फीसदी बढऩे का अनुमान लगाया गया था लेकिन इसमें 3.4 फीसदी की गिरावट आई। ऐसे में कर राजस्व संशोधित अनुमान के बावजूद 1.5 लाख करोड़ रुपये कम रहा।
ऐसे तीव्र संशोधन के साथ समझदारी भरा और अच्छा बजट तैयार कर पाना मुश्किल है। बजट आंकड़ों और वास्तविक आंकड़ों में यह अप्रत्याशित अंतर देखते हुए भला इस बात पर कैसे यकीन किया जाए कि 2020-21 में कॉर्पोरेशन कर में 22 फीसदी इजाफे का अनुमान सही साबित होगा? दिक्कत यह है कि आम बजट अब वित्त वर्ष में एकदम आरंभ में तैयार और प्रस्तुत किया जाता है ताकि सुरक्षित अनुमान लगाए जा सकें।
यदि पिछले दो वर्ष का अनुभव कुछ बताता है तो वह यही है कि बजट प्रस्तुत करने की तारीख को 28 फरवरी से 1 फरवरी करना एक भूल थी। इस बदलाव के कारण वित्त मंत्री को पूरे वर्ष के व्यय और राजस्व के आंकड़ों का अनुमान एक महीने पहले लगाना पड़ता है। उस वक्त तक इसके लिए जरूरी आंकड़े पर्याप्त मात्रा में मौजूद नहीं रहते।
बजट की तारीख में बदलाव के कारण बाद वाले वर्ष का राजस्व आकलन और लक्ष्य नए वित्त वर्ष के आरंभ के एक या दो महीने के भीतर अवैध हो जाता है। जब ऐसी गलतियां होती हैं तो न केवल राजकोषीय घाटे की स्थिति लडख़ड़ाती है बल्कि सरकार का ऋण कार्यक्रम भी प्रभावित होता है। राज्य, जिन्हें 2019-20 में 2018-19 की तुलना में 14.5 फीसदी कम राजस्व मिला, वे अपने राजस्व और व्यय की योजनाओं के प्रबंधन के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
अगर केंद्र यूं ही गलत आकलन करता रहा तो उनकी मुश्किल और बढ़ जाएगी। इस वर्ष के बजट अनुमान केवल महामारी के असर के कारण नहीं गलत हुए हैं बल्कि जैसा कि प्रारंभिक वास्तविक आंकड़े बताते हैं उनका शुरुआती आधार अब इतना कम है कि सन 2020-21 के अनुमान भी एक बड़े अंतर से दूर रह जाएंगे। यदि लगातार तीन वर्ष तक अनुमान इस कदर गलत साबित होंगे तो यकीनन बजट प्रक्रिया को बचाए रखने के लिए कुछ न कुछ बदलाव करने होंगे।
बजट की तारीख को आगे बढ़ाने की दलील को आसानी से समझा जा सकता है। सरकारी विभाग अंतिम तिमाही के व्यय का समूहन कर रहे थे और यह मान लिया गया था कि बजट को पहले पेश करने से उन्हें सीधे व्यय करने का अवसर प्राप्त होगा। इसके बावजूद राजस्व में इतनी अधिक कमी के कारण उन्हीं विभागों को अंतिम तिमाही में व्यय में कटौती करनी पड़ी। ऐसे में इसके लाभ कतई स्पष्ट नहीं हैं। इसके अलावा संसद का तयशुदा कार्यक्रम भी उलटपुलट गया है। शीतकालीन सत्र के बाद का अवकाश लंबा नहीं है और बजट सत्र दो हिस्सों में विभाजित है। स्पष्ट है कि यह प्रयोग विफल रहा है और अगले वर्ष से बजट को पुन: 28 फरवरी को प्रस्तुत किया जाना चाहिए।
