खबर है कि केंद्र सरकार मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) के एक सेट का विस्तार करने पर काम कर रही है। इसे उसने अपनी प्रमुख उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजना के लिए काम करने वाले चीनी विशेषज्ञों और तकनीकी क्षेत्र के श्रमिकों के वीजा को व्यवस्थित करने के लिए विकसित किया था।
इस मामले में गृह मंत्रालय ‘बेहतर और सुव्यवस्थित एसओपी’ बनाने के मामले में अंतिम चरणों में है और इसके बाद 10 दिन के भीतर वीजा प्रक्रिया पूरी हो सकेगी।
उद्योग संवर्द्धन एवं आंतरिक व्यापार विभाग इस प्रक्रिया को सहज बनाने के लिए संबंधित मंत्रालयों और निजी अंशधारकों के साथ काम करता रहा है। इस कदम में एक समान प्रक्रिया शामिल है जिससे समय खपाऊ कैबिनेट की मंजूरी लेने की जरूरत समाप्त हो जाएगी।
इसकी मदद से घरेलू विनिर्माण इकाइयों की एक बड़ी और पुरानी समस्या दूर हो जाएगी और वे जरूरी कौशल जुटाकर विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी बन सकेंगी। यह घरेलू उद्योगों की जरूरतों को लेकर एक वास्तविक प्रतिक्रिया दिखाता है ताकि वह परमिट प्रणाली के चक्र से निकल सके।
भारत के श्रम क्षेत्र के बारे में एक जानी पहचानी विडंबना यह है कि यहां बेरोजगारी की दर अधिक है जबकि रोजगार की संभावना कम है। खासतौर पर उभरते तकनीक आधारित उद्योगों मसलन उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स, सेमीकंडक्टर, इलेक्ट्रिक व्हीकल और उच्चस्तरीय नगरीय अधोसंरचना के क्षेत्र में। इंडियन स्किल्स रिपोर्ट के मुताबिक केवल 40 फीसदी भारतीय युवा ही रोजगार पाने लायक हैं।
इंजीनियरिंग क्षेत्र में रोजगार की संभावनाओं से संबंधित राष्ट्रीय रिपोर्ट दिखाती है कि 80 फीसदी भारतीय इंजीनियरों के पास जरूरी कौशल नहीं है। ऐसे में दूरसंचार, बिजली, हवाई अड्डों का निर्माण आदि क्षेत्रों में काम करने वाली भारतीय कंपनियां वर्षों से चीन के कुशल कर्मियों के काम के भरोसे हैं। ऐसे चीनी तकनीकी कर्मचारियों को आर्थिक दृष्टि से उपयुक्त माना जाता है, उन्हें अपने समकक्षों मसलन जापान और ताइवान की तुलना में बेहद कुशल और किफायती माना जाता है।
तथ्य यह है कि देश में नए जमाने के उद्योगों को इस तरह के सीमा पार सहयोग से बहुत अधिक लाभ हुआ है। यह देश के आर्थिक विकास की अनकही कहानी का एक हिस्सा है। बहरहाल, 2020 से भारत और चीन के रिश्तों में बहुत तेज गिरावट आई और कर्मचारियों के इस आदान-प्रदान पर भी असर पड़ा।
लद्दाख में चीनी सैनिकों द्वारा भारत की सरहद में घुसपैठ करने के बाद भारत सरकार ने आर्थिक सहयोग को कम करना शुरू किया। भारत ने अपने साथ जमीनी संपर्क वाले देशों की कंपनियों के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की कड़ी पड़ताल की बात कही। इसके परिणामस्वरूप ऐसे निवेश की मंजूरियों में कमी आई और उन्हें खारिज करने के मामले बढ़े। इसके साथ ही चीन के कर्मियों को वीजा मिलना कम हो गया। उद्योग जगत के मुताबिक चीन के विशेषज्ञों के 4,000 से 5,000 वीजा आवेदन सरकार की मंजूरी के लिए लंबित हैं।
पीएलआई योजना जिसमें दूरसंचार, वाहन, विशिष्ट इस्पात, सोलर पीवी मॉड्यूल, उन्नत केमिस्ट्री सेल बैटरी, ड्रोन और फार्मा समेत विभिन्न क्षेत्र शामिल हैं, वह इस धीमेपन की पहली शिकार हुई और सरकार ने इस समस्या को जल्दी दूर करने की ठानी। परंतु पीएलआई के बाहर के निर्माताओं पर बुरा असर पड़ा। खासतौर से उन क्षेत्रों पर जो चीन प्लस वन रणनीति का हिस्सा हैं।
कुछ रिपोर्ट के अनुसार भारत-चीन तनाव बढ़ने के कारण बीते चार वर्षों में भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माताओं को 15 अरब डॉलर मूल्य का उत्पादन नुकसान हुआ है और करीब एक लाख रोजगारों की क्षति हुई है।
इलेक्ट्रॉनिक्स के अलावा कपड़ा और चमड़ा उद्योग के निवेशकों की शिकायत है कि संयंत्रों को चलाने के लिए विशेषज्ञ न मिलने के कारण संयंत्र और मशीनें महीनों तक बंद रहे।
भारतीय श्रमिकों के कमजोर कौशल स्तर को देखते हुए तथा ऐसे वीजा की प्रक्रिया को सहज बनाने का, जिसमें आमतौर पर चार से छह महीने का समय लगता है, दीर्घकालिक लाभ है क्योंकि स्थानीय कर्मचारियों को विशेषज्ञता हासिल होती है। इससे प्रशिक्षण की ऐसी श्रृंखला आरंभ होती है जो लंबी अवधि में लाभदायक साबित होती है।