भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल ही में मुंबई के न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक पर निकासी की पाबंदी सहित कई प्रतिबंध लगाए हैं। इस निर्णय ने एक बार फिर इस बात की ओर ध्यान आकृष्ट किया है कि बैंकों की अक्षमता और कुप्रबंधन के कारण लोगों को किस प्रकार परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। बैंकों में जमा राशि पर ही तमाम लोगों का जीवन निर्भर करता है। इस बात को लेकर भी बहस चल रही है कि क्या भारत को अभी भी सहकारी बैंकों की आवश्यकता है, क्योंकि तकनीक की बदौलत वाणिज्यिक बैंकों की पहुंच का बहुत अधिक विस्तार हो चुका है। एक अन्य संबद्ध क्षेत्र जिस पर बहस करना उपयुक्त होगा वह यह है कि क्या ऐसे मामले में लोगों को ही मुसीबत झेलनी चाहिए जबकि यह अपर्याप्त नियामकीय निगरानी और संबंधित बैंक के कुप्रबंधन का नतीजा होता है। इस मामले में जमाकर्ताओं को बचाने के लिए पांच लाख रुपये तक की जमा राशि जमा बीमा एवं ऋण गारंटी कॉर्पोरेशन द्वारा गारंटीड होती है। बहरहाल, जैसा कि मंगलवार को इस समाचार पत्र में प्रकाशित एक रिपोर्ट में कहा गया, केवल लगभग 43.1 फीसदी पहुंचयोग्य जमा ही बीमित है। खबर है कि सरकार बीमा की सीमा बढ़ाने पर विचार कर रही है।
सरकार जहां इस विषय में जल्दी से जल्दी फैसला करके सही करेगी, वहीं कई ऐसे संबद्ध मुद्दे भी हैं जिन पर विचार किया जाना चाहिए। बैंकों का कारोबार आपसी विश्वास पर निर्भर रहता है क्योंकि बैंकों की बैलेंस शीट में अस्थिरता अंतर्निहित होती है। जमा के मामले में अक्सर बैंकों की देनदारी अल्पकालिक होती है और वे अपेक्षाकृत लंबे समय के लिए ऋण जारी करते हैं। इससे परिसंपत्ति और देनदारी में अंतर पैदा हो जाता है। जहां जमाकर्ता आसानी से अपना पैसा निकाल सकते हैं, वहीं बैंक अपने ऋण को आसानी से वापस नहीं ले सकते। तकनीक को अपनाने के बाद प्रबंधन और अधिक जटिल हो गया है। जमाकर्ता अपनी जमा राशि को तत्काल बिना बैंक शाखा गए एक खाते से दूसरे खाते में डाल सकते हैं। ऐसे में यह महत्त्वपूर्ण है कि बैंकों को हर समय स्वस्थ और स्थिरता वाला माना जाए। यहां तक कि एक अफवाह भी बैंक के पतन का कारण बन सकती है। इससे घबराहट का माहौल बनता है जो अन्य बैंकों को प्रभावित कर सकता है। अमेरिका में 2023 में ऐसा हो चुका है। इसकी शुरुआत सिलिकन वैली बैंक के साथ हुई थी। भरोसे का संकट समूचे बैंकिंग तंत्र को ध्वस्त कर सकता है, इसका असर व्यापक अर्थव्यवस्था पर होगा।
यही वजह है कि बैंकों का सही नियमन किया जाना चाहिए। बहरहाल, गड़बड़ियों की आशंका को पूरी तरह खारिज नहीं किया जा सकता। अंशधारक भी अच्छे प्रदर्शन का दबाव बनाते हैं। ऐसे में तैयार रहना जरूरी है। कहने का अर्थ यह नहीं है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में ऐसे जोखिम हैं बल्कि इसका मकसद स्थिरता प्रदान करना है। ऐसे में यह भी महत्त्वपूर्ण है कि अधिकांश बैंक जमा का बीमा हो। इसकी शुरुआत सभी व्यक्तिगत खातों का बीमा कवर बढ़ाकर की जा सकती है। एक साधारण जमाकर्ता से यह उम्मीद नहीं की जानी चाहिए कि वह निरंतर बैंक की स्थिति का आकलन करेगा। यह नियामक का काम है और इसे नियामक को ही अंजाम देना चाहिए। बैंक खाता नागरिकों की बुनियादी जरूरत है और राज्य को उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए।
यकीनन इसके साथ संबद्ध लागत भी होगी। यह लागत जमाकर्ताओं, बैंकों और सरकार के बीच साझा की जा सकती है क्योंकि बैंकिंग व्यवस्था की स्थिरता अर्थव्यवस्था के सहज काम करने के लिए महत्त्वपूर्ण है। अगर जमाकर्ता को पता होगा कि उसकी राशि सुरक्षित है तो वे पैसे निकालने की हड़बड़ी नहीं दिखाएंगे। अमेरिका में सिलिकन वैली बैंक संकट में बीमा का विस्तार हर जमा तक किया गया जिससे बड़ा बैंकिंग संकट टाला जा सका। भारत में बीमा कवरेज बढ़ाने से सरकारी और निजी बैंकों के बीच समान अवसर बन सकेंगे। बहरहाल, यह कहा जा सकता है कि सुरक्षा की ऐसी गारंटी से बैंक प्रबंधनों में जोखिम की प्रवृत्ति बढ़ेगी। इससे व्यवस्था और संकट में पड़ जाएगी। बहरहाल यह सुनिश्चित करना नियामक का काम है कि जोखिम का भलीभांति प्रबंधन हो। यह ध्यान देना महत्त्वपूर्ण है कि सुरक्षा का दायरा केवल बैंक जमा तक बढ़ाया जाना चाहिए, न कि उन सभी वित्तीय योजनाओं तक जिनका चयन लोग उच्च रिटर्न के लिए करते हैं।