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  आज का अखबार  केंद्रीकरण की दिशा में बढ़ता चीन
आज का अखबारलेख

केंद्रीकरण की दिशा में बढ़ता चीन

चीन में पीपुल्स कांग्रेस के दौरान नई सरकार का गठन हुआ है और बदलते हुए हालात में वह एक अलग आर्थिक रणनीति भी पेश कर रहा है। इस विषय में जानकारी प्रदान कर रहे हैं श्याम सरन

श्याम सरन श्याम सरन —March 17, 2023 8:03 PM IST
© इलस्ट्रेशन-बिनय सिन्हा
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हाल ही में संपन्न हुई नैशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) के बाद चीन की नई सरकार सामने आई है और उसने अनिश्चित अंतरराष्ट्रीय आर्थिक माहौल तथा घरेलू वृद्धि के कारकों में धीमेपन को मद्देनजर रखते हुए आर्थिक नीति में बदलाव लाने की बात कही है।

निर्यात और निवेश आधारित अर्थव्यवस्था के लिए वैश्विक आर्थिक वृद्धि में निरंतर धीमापन, मुक्त बाजार से दूरी और सेमीकंडक्टर जैसी उच्च तकनीक में प्रवेश से इनकार अहम नकारात्मक कारक हैं। ढांचागत कारक भी काम कर रहे हैं। उदाहरण के लिए उम्रदराज होती और कम होती आबादी, अर्थव्यवस्था की परिपक्वता के साथ धीमी वृद्धि की संभावना और निवेश और खपत के बीच निरंतर असंतुलन तथा आय और संपत्ति की बढ़ती असमानता।

शी चिनफिंग को उम्मीद के मुताबिक तीसरी बार पांच वर्ष के लिए राष्ट्रपति के रूप में मंजूरी मिल गई है। इनमें से कुछ चुनौतियों से निपटने के लिए अहम नीतिगत बदलावों को भी अंजाम दिया गया। उदाहरण के लिए दोहरे वितरण की नीति के माध्यम से उन्होंने प्रयास किया कि वृद्धि के बाहरी कारकों पर स्थानीय कारकों को वरीयता दी जाए।

साझा समृद्धि के लक्ष्य के साथ सरकारी स्वामित्व वाले उपक्रमों के साथ निजी क्षेत्र के नेतृत्व वाली वृद्धि को बढ़ावा देने के रूप में एक बदलाव नजर आया। नियामकीय व्यवस्था मजबूत की गई और पूंजी की अतिशय वृदि्ध को सीमित किया गया। इसका परिणाम देश की सफल टेक कंपनियों के लिए गहरी बाधा के रूप में सामने आया।

साथ ही संपत्ति क्षेत्र में गिरावट आई जबकि वह बीते सालों में करीब 30 फीसदी वृद्धि के लिए उत्तरदायी रहा है। कोविड शून्य नीति के कारण इन सारी दिक्कतों में इजाफा हुआ। इस नीति के कारण लॉकडाउन लगा और आपूर्ति श्रृंखला बाधित हुई। हालांकि अब उस नीति को त्याग दिया गया है लेकिन हालात सामान्य होने में वक्त लगेगा।

2022 में चीन की अर्थव्यवस्था ने 3 फीसदी के साथ न्यूनतम वृद्धि दर्ज की। एनपीसी ने चालू वर्ष के लिए 5 फीसदी का सहज वृद्धि लक्ष्य रखा है लेकिन मौजूदा हालात में यह भी महत्त्वाकांक्षी प्रतीत होता है। भू राजनीतिक हालात भी चीन के पक्ष में नहीं हैं। अमेरिका के साथ उसका विवाद गहरा होता जा रहा है। ताइवान के मुद्दे ने भी चीन और अमेरिका के रिश्ते को गहरे जोखिम पैदा किए हैं। शी चिनफिंग ने पहली बार अमेरिका का नाम लेते हुए आरोप लगाया कि वह चीन के दमन का एक अभियान चला रहा है जिसकी वजह से उसके सामने असाधारण रूप से गंभीर चुनौतियां उत्पन्न हुई हैं।

चीन का सामरिक साझेदार देश रूस यूक्रेन के साथ युद्ध में उलझा हुआ है और यूरोप के साथ उसके रिश्ते बहुत खराब हो चुके हैं। चीन की महत्त्वाकांक्षी बेल्ट ऐंड रोड पहल कई साझेदार देशों में स्थगित हो चुकी है और उसकी कर्ज देकर फंसाने की कूटनीति को लेकर बहुत अधिक चिंता जताई जा रही है। लेकिन चीन ने सऊदी अरब और ईरान जैसे पुराने शत्रु देशों के बीच शांति कायम करवाकर अनपेक्षित कूटनीतिक काबिलियत दिखाई है। इससे खाड़ी और पश्चिम एशिया के रणनीतिक क्षेत्र में भू राजनीतिक मानचित्र नए सिरे से तैयार हो सकता है।

चीन की नई सरकार ने कुछ अहम निर्णय इसी परिदृश्य को ध्यान में रखते हुए लिए हैं। पहला, शासन पर चीन की कम्युनिस्ट पार्टी का सीधा अधिकार और निगरानी और बढ़ा दिए गए हैं। यह याद किया जाएगा कि स्टेट काउंसिल के अधीन आने वाले कई मंत्रालय और एजेंसियां अब पार्टी और स्टेट के मिश्रित आयोगों के अधीन कर दिए गए हैं जिनकी अध्यक्षता चिनफिंग के पास है।

केंद्रीकरण और पार्टी के प्रत्यक्ष अधिकार को और विस्तार दिया गया है। प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्म निर्भरता बढ़ाने के लिए नया विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी आयोग गठित किया जा रहा है। इसे शोध एवं विकास के लिए और अधिक फंड आवंटित किए जा रहे हैं।

चिनफिंग ने बार-बार कहा कि भविष्य की लड़ाई तकनीक संचालित होगी और वहां चीन को नेतृत्व संभालने का प्रयास करना चाहिए। नैशनल रिसोर्स ऐंड डेवलपमेंट कमीशन में स्थित नया डेटा एडमिनिस्ट्रेशन इसमें मदद करेगा। यह डेटा एडमिनिस्ट्रेशन डिजिटल अर्थव्यवस्था में उत्पादित भारी भरकम आंकड़ों तक पहुंच मुहैया कराने और उनका नियमन आदि करने का काम करेगा ताकि नवाचार को बढ़ावा मिले।

वित्तीय और बैंकिंग क्षेत्र की बढ़ती महत्ता को देखते हुए राज्य वित्तीय नियामक आयोग का गठन किया जा रहा है। यह न केवल वर्तमान बैंकिंग और बीमा नियामक को स्वयं में समाहित कर लेगा बल्कि केंद्रीय बैंक यानी पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना के कुछ निगरानी संबंधी काम भी इसके पास होंगे। एक राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग स्वास्थ्य संबंधी नीतियों और उनके क्रियान्वयन पर नजर रखेगा।

एक स्पष्ट प्रयास निजी क्षेत्र को आश्वस्त करने के लिए किया गया है कि उसे समान कारोबारी परिस्थितियां मुहैया कराई जाएंगी। शी चिनफिंग ने खुद निजी क्षेत्र को आश्वस्त किया। नए प्रधानमंत्री ली छ्यांग के बयानों ने इस बात को नए सिरे से पुष्ट किया। उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र को लेकर चिंताएं अनुचित हैं। उन्होंने याद दिलाया कि कैसे वह खुद चेच्यांग और च्यांगसू प्रांतों में और बाद में शांघाई में अपने सेवा काल में उन्होंने निजी क्षेत्र का भरपूर समर्थन किया। उन्होंने कहा कि वह नीति बदली नहीं है और न ही बदलेगी।

बहरहाल, संकटग्रस्त संपत्ति क्षेत्र का कोई जिक्र नहीं किया गया जो अर्थव्यवस्था पर बोझ बना हुआ है। ली छ्यांग ने सरकार की वह प्रतिबद्धता भी दोहराई जिसके तहत अंतरराष्ट्रीय वित्तीय केंद्र के रूप मे हॉन्गकॉन्ग की भूमिका को मजबूत करना है जबकि इसके साथ ही उसे राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के साथ करीबी से जोड़े रखना है। तीसरी बात, सैन्य बजट में भी इस वर्ष 7.6 फीसदी का इजाफा किया गया है जो 2022 से 0.5 फीसदी अधिक है। यह अमेरिका की ओर से बढ़े खतरे को दिखाता है।

एनपीसी के दौरान संवाददाता सम्मेलन में नए विदेश मंत्री छिन गांग ने चेतावनी दी कि अगर अमेरिका ने अपना रुख नहीं बदला तो दोनों देशों के बीच का विवाद और संघर्ष की स्थिति अपरिहार्य हो जाएगी और इसके परिणाम बहुत भयावह होंगे। ताइवान चिंता का अहम विषय है और छिन गांग ने शी चिनफिंग द्वारा पहले कही बात को दोहराया कि ताइवान वह सीमा है जिसका अतिक्रमण नहीं किया जाना चाहिए।

चीन का सैन्य उन्नयन भारत के हित में नहीं है क्योंकि हमें अपनी सीमाओं पर निरंतर चीन के खतरे का सामना करना है। अगर चीन और अमेरिका के रिश्ते और बिगड़ते हैं तो भारत-अमेरिका सैन्य रिश्तों को लेकर चीन की चिंता बढ़ेगी। चीन अक्सर क्वाड को एशियाई नाटो कहकर संबोधित करता है जो चीन पर केंद्रित है।

शी चिनफिंग ने चीन के निर्विवाद नेता के रूप में अपनी छवि मजबूत की है और अपने वफादारों को पार्टी, स्टेट और सैन्य पदों पर बिठाया है। पार्टी और स्टेट में बदलाव के जरिये नियंत्रण को और केंद्रीकृत किया गया है। विदेश नीति की बात करें तो चीन रूस के साथ अपने रिश्ते को और मजबूत करेगा। साथ ही वह यूरोप के साथ रिश्ते सुधारने तथा विकासशील देशों के साथ जुड़ाव की कोशिश जारी रखेगा।

(लेखक पूर्व विदेश सचिव और सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च के सीनियर फेलो हैं)

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