राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग द्वारा डॉक्टरों के लिए पर्चे पर जनेरिक दवा लिखना अनिवार्य करने से दवा उद्योग असमंजस में है।
नामचीन दवा उद्योग के लॉबी ग्रुप के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि वे नए दिशानिर्देशों का विस्तार से अध्ययन कर रहे हैं। सूत्र ने नाम गुप्त रखने पर बताया, ‘यदि डॉक्टर केवल जनेरिक मोलेक्यूल का नाम लिखते हैं तो गुणवत्ता का सवाल उठ सकता है। ब्रांडेड जनेरिक लिखने पर गुणवत्ता सुनिश्चित होती है और यह मरीज की सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण भी है।’
उसने कहा, ‘अभी देश में 10,000 से अधिक दवा निर्माता हैं। इनमें सभी एक समान गुणवत्ता के मानदंडों का पालन नहीं करते हैं। ऐसे में यह कदम उठाने से दवा की गुणवत्ता और मरीज की सुरक्षा की जिम्मेदारी कौन लेगा – क्या डॉक्टर जिम्मेदार होगा?’
दवा उद्योग में कई वर्षों से काम कर रहे एक व्यक्ति ने कहा कि इस क्रम में आगे देखा जाए तो डॉक्टर मोलेक्यूल का नाम लिख देता है तो ऐसे में दवा विक्रेता मरीज के लिए ब्रांड का चयन करेगा। उद्योग को डर है, ‘ऐसे में ब्रांड को डॉक्टर की जगह दवा विक्रेता चुनेगा और ब्रांड चुनने की शक्ति दवा विक्रेता को स्थानांतरित होगी। ऐसे में जो भी कंपनी ज्यादा छूट देगी, दवा विक्रेता उस कंपनी को प्राथमिकता देगा।’
दवा के लिए मार्जिन भी तय कर दिया गया है। इस क्रम में थोक विक्रेता के लिए 10 फीसदी और फुटकर (दवा विक्रेता) के लिए 20 फीसदी है। ऐसे में छोटी दवा कंपनियों को फायदा होगा। इसका कारण यह है कि वे अपने कारोबार को बढ़ाने के लिए डॉक्टर के पर्चे की मदद नहीं लेती हैं बल्कि प्रत्यक्ष कारोबार करती हैं। लिहाजा छोटी कंपनियों का मार्जिन बढ़ेगा। लिहाजा दवा क्षेत्र की बड़ी कंपनियां भी इस क्षेत्र में अपनी गतिविधियां बढ़ाएंगी।
एनएमसी ने दिशानिर्देश में कहा कि डॉक्टर को अनिवार्य रूप से जनेरिक दवा लिखनी होगी और ऐसा नहीं करने पर उन्हें दंडित किया जाएगा। ऐसे में कुछ समय के लिए डॉक्टर का लाइसेंस भी निलंबित किया जा सकता है।
एनएमसी ने हाल ही में 2 अगस्त को ‘पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टिशनर के व्यावसायिक आचरण से संबंधित नियम’ जारी किए थे। इसमें यह तक कहा गया है, ‘हरेक आरएमपी (पंजीकृत मेडिकल पैक्टिशनर) को दवा का जनेरिक नाम स्पष्ट लिखना चाहिए। दवा की मात्रा तार्किक होनी चाहिए, बेवजह दवा लिखने से बचना चाहिए।’
उद्योग के अंदरूनी सूत्रों का मानना है कि यह कदम यूनिफॉर्म कोड ऑफ फार्मास्युटिकल मार्केटिंग प्रैक्टिस (यूसीपीएमपी) लागू करने और संहिताबद्ध करने की ओर कदम है। दवा लॉबिइंग समूह के एक सदस्य ने कहा कि कंपनियों अपने को स्वयं विनियमित करेंगी।
इस व्यक्ति ने नाम गुप्त रखने की शर्त पर बताया, ‘हम चाहते हैं कि अनुचित आचरण को रोका जाए।’ डॉक्टरों ने इन दिशानिर्देशों का स्वागत किया है।
दिल्ली में उजाला सिग्नस समूह के संस्थापक व निदेशक डॉ. शुचिन बजाज ने कहा, ‘देश में स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता और उसकी लागत को कम करने की दिशा में एनएमसी के जनेरिक दवाओं पर दिशानिर्देश स्वागत योग्य हैं।’
मुफ्त उपहार पर भी रोक
एनएमसी ने अपने दिशानिर्देश में जनेरिक दवाएं लिखने के अलावा डॉक्टरों के स्वास्थ्य संस्थानों या दवा कंपनियों से मुफ्त उपहार लेने पर भी रोक लगा दी है।
इस क्रम में पहल बार डॉक्टरों को सोशल मीडिया सहित सार्वजनिक मंच पर अपने विशेषज्ञता वाले क्षेत्र के अलावा अन्य पर बोलने से प्रतिबंधित किया गया है।
इसमें यह स्पष्ट किया गया है कि आरएमपी या उनके परिवार के किसी भी सदस्य को किसी भी हालत में दवा कंपनियों के प्रतिनिधियों, वाणिज्यिक स्वास्थ्य संस्थानों, चिकित्सा उपकरण कंपनियों या कॉरपोरेट अस्पतालों से मुफ्त उपहार नहीं लें। हालांकि इसमें स्पष्ट किया गया है, ‘इन संगठनों के कर्मचारी होने की स्थिति में आरएमपी के वेतन और अन्य लाभों को शामिल नहीं किया गया है।’
इसमें कहा गया है कि आरएमपी को दवा कंपनियों और संबंधित स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष प्रायोजित संगोष्ठियों, कार्यशालाओं आदि में हिस्सा नहीं लेना चाहिए।