भारत के फार्मा और हेल्थकेयर बाजार में अगले दो-तीन दशक के भीतर सिल्वर जेनरेशन यानी बुजुर्गों की हिस्सेदारी कम के कम एक चौथाई हो जाएगी। उद्योग विशेषज्ञों को लग रहा है कि देश आबादी के मामले में निर्णायक बदलाव से गुजर रहा है, जिससे अगले कई दशकों के लिए हेल्थकेयर, वित्त, बीमा, आवास और उपभोक्ता सेवा में मांग का ढर्रा भी बदल जाएगा। भारत की कुल आबादी में 60 साल से ज्यादा उम्र वालों की तादाद अभी केवल 10 फीसदी है मगर फार्मा बाजार में उनकी हिस्सेदारी 17 फीसदी हो चुकी है क्योंकि तकरीबन हर बुजुर्ग उच्च रक्तचाप जैसी बीमारियों से जूझ रहा है, जिनका इलाज काफी लंबा चलता है।
फार्मारैक की वाइस प्रेसिडेंट (कमर्शल) शीतल सापले कहती हैं, ‘देश की आबादी में 60 साल से अधिक उम्र वाले जैसे-जैसे बढ़ेंगे वैसे वैसे ही भारतीय फार्मा बाजार में उनकी हिस्सेदारी भी बढ़ती जाएगी। मेरे हिसाब से अगले दो-तीन दशक में इस बाजार में कम से कम एक चौथाई या शायद एक तिहाई हिस्सेदारी बुजुर्गों की होगी।’
बाजार अनुसंधान फर्म फार्मारैक ने भारत की आबादी का 200 साल का नक्शा तैयार किया है, जिसमें सन 1900 से लेकर सन 2100 तक के अनुमान लगाए गए हैं। इसमें दिखता है कि जापान और पश्चिमी यूरोप की तरह कैसे भारत में भी बुजुर्गों की तादाद तेजी से बढ़ती जा रही है।
सापले की राय है कि भारत आबादी के ऐसे ढांचे की तरफ बढ़ रहा है, जो आज के भारत के बजाय जापान से ज्यादा मिलता-जुलता है। इसे देखकर हेल्थकेयर, पेंशन और श्रम के बारे में हमारी सोच पूरी तरह बदल जानी चाहिए। अध्ययन में बताया गया है कि 60 साल से अधिक उम्र वालों की आबादी बेहद तेजी से बढ़ रही है। आज उनकी आबादी करीब 11 फीसदी है, जो 2050 तक बढ़कर 20-21 फीसदी और 2100 तक 31 फीसदी हो जाएगी।
सापले कहती हैं, ‘अगर आप 200 साल के अरसे में भारत पर नजर डालते हैं तो आपको ऐसा बदलाव दिखेगा, जो प्रत्याशित है मगर बेहद नाटकीय है। हमारी आबादी में ऐसे युवाओं की तादाद ज्यादा थी, जो किसी और पर निर्भर थे मगर अब ऐसे बुजुर्ग बढ़ रहे हैं, जो निर्भर हैं। वास्तव में 2100 तक हमारी करीब एक तिहाई आबादी 60 साल से अधिक उम्र की होगी।’
यह बदलाव लंबी होती जिंदगी और घटती जन्मदर की वजह से आया है। बुजुर्गों की हिस्सेदारी 1900 से 1950 के बीच 5-6 फीसदी ही रही क्योंकि 1918 में फ्लू की महामारी ने करीब एक दशक तक आबादी बढ़ने ही नहीं दी। आजादी के बाद जन स्वास्थ्य सुधरने से आबादी तेजी से बढ़ी मगर लोगों की उम्र ज्यादा नहीं होती थी। बुजुर्गों की तादाद 2000 के बाद तेजी से बढ़ने लगी, जब बीमारियों पर अंकुश और शहरी जीवनशैली ने मृत्यु दर और जन्म दर को पूरी तरह बदल दिया।
सापले का मानना है, ‘देश की कुल आबादी में 60 साल से ज्याद उम्र वालों की तादाद 20 से 30 फीसदी होते ही बुजुर्गों के इलाज की मांग बढ़ जाएगी। ऐसे में अगले कई दशक तक बाजार में दिल की बीमारी, मेटाबॉलिक समस्या, तंत्रिका रोग और पेशी तथा हड्डियों से जुड़ी बीमारियों की दवाएं हावी रहेंगी।’ 18 साल से कम और 60 साल से अधिक उम्र की आबादी में से निर्भर या आश्रित लोगों का अनुपात आगे की मुश्किलें बताता है।