देश में अनुसंधान पर आधारित वैश्विक दवा कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाला भारतीय औषधि उत्पादक संगठन (ओपीपीआई) ने नई दवाओं के लिए आवेदन करने वाली पहली कंपनी के नियामकीय आंकड़ों को सुरक्षित रखने के लिए बाजार अधिकार के बाद 10 साल की एक्सक्लूसिविटी अवधि की मांग की है।
यह कदम केंद्रीय दवा मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) द्वारा दवा उद्योग के हितधारकों से टिप्पणियां मांगे जाने के बाद उठाया जा रहा है। ये टिप्पणियां उन नियमों के संबंध में थी, जिनके तहत पहले आवेदक को क्लीनिकल परीक्षण और बायोइक्विवेलेंस स्टडी (दवाओं की तुलना करने वाला अध्ययन) करना जरूरी होता है, जबकि बाद में आवेदन करने आवेदक इन परीक्षणों को छोड़ सकते हैं और किसी दवा को पेश करने के लिए मंजूरी पाने का आसान रास्ता अपना सकते हैं।
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देश की नियामकीय एजेंसी के नोट में कहा गया था कि क्लीनिकल परीक्षण और बायोइक्विवेलेंस अध्ययन के आंकड़ों के आधार पर देश में पहली बार नई दवा हासिल करने वाली पहली कंपनी और बायोइक्विवेलेंस अध्ययन के आंकड़ों के आधार पर उसी नई दवा के लिए मंजूरी पाने वाले बाद के आवेदकों के बीच बराबरी के अवसर नहीं हैं।
ओपीपीआई के महानिदेशक अनिल मताई ने कहा कि दवा क्षेत्र में निवेश के लिहाज से भारत पहले से बेहतर स्थिति में है। उद्योग के संगठन के वार्षिक सम्मेलन से इतर उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि कोई वैश्विक कंपनी नया मॉलिक्यूल क्यों लॉन्च करेगी, अगर किसी दूसरे आवेदक से छोटा बायोइक्विवेलेंस या बायोअवेलेबिलिटी अध्ययन के लिए कहा जाता है और फिर उसे मूल सृजनकर्ता के विनियामकीय दस्तावेज का संदर्भ दे दिया जाता है।
उन्होंने कहा कि भारत को दवा क्षेत्र में नए नवाचार के लिए निवेश बढ़ाने की जरूरत है, क्योंकि वह दुनिया के लिए केवल जेनेरिक आपूर्तिकर्ता नहीं बना रह सकता। उन्होंने कहा, ‘हम सरकार से इसी बात की पैरवी कर रहे हैं कि हमें ऐसी नीतियों और मार्गदर्शन की जरूरत है, जो नवाचार को बढ़ावा दें।’