दिल्ली और दूसरे बड़े शहरों में रहने वालों के लिए AQI 50 एक सपना जैसा लगता है। ये वही साफ और ताजा हवा है जो पहाड़ों या जंगलों के पास हर रोज लोग सांस में लेते हैं। हल्की, साफ और ताजा हवा, न कि वो भूरी-ग्रे धुंध जो आंखों में जलन और गले में खराश करती है।
लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि इस हवा में आपकी फेफडों को पूरी तरह आराम मिल जाता है। मारेंगो एशिया हॉस्पिटल्स, फरीदाबाद के पल्मोनोलॉजिस्ट डॉ. पंकज छाबड़ा बताते हैं, “AQI 50 पर भी हवा पूरी तरह सुरक्षित नहीं होती। फिर भी, यह महानगरों की गंदी हवा से कई गुना बेहतर है।”
छाबड़ा बताते हैं कि हर सांस में छोटे-छोटे कण होते हैं, जिन्हें पार्टिकुलेट मैटर (PM2.5) कहते हैं। ये कण इंसानी बाल से करीब 30 गुना पतले होते हैं। बड़े कण नाक के बाल पकड लेते हैं, लेकिन PM2.5 फेफडों में जाकर खून में भी पहुंच सकते हैं। साफ हवा में ओजोन और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसे दूसरे प्रदूषक भी मौजूद रहते हैं, मगर AQI 50 पर ये सुरक्षित स्तर में रहते हैं।
यानी AQI 50 पर भी आपके फेफड़े लगातार इन सूक्ष्म कणों को छानते रहते हैं। दिल्ली में 50 ‘अच्छा’ माना जा सकता है, लेकिन ग्रामीण या समुद्री क्षेत्रों की साफ हवा से यह पांच गुना खराब है। संदर्भ के लिए, CPCB की सालाना औसत सीमा PM2.5 के लिए 40 μg/m³, PM10 के लिए 60 μg/m³ और NO2 के लिए 40 μg/m³ है, जबकि WHO की सुरक्षित सीमा क्रमशः 5 μg/m³, 15 μg/m³ और 10 μg/m³ है।
डॉ. छाबड़ा के मुताबिक, ज्यादातर स्वस्थ लोगों के लिए:
लेकिन अस्थमा या COPD वाले लोगों के लिए थोड़ा अलग है। AQI 50 पर भी उनकी नलियां संवेदनशील रह सकती हैं। छोटे कण या गैसें हल्की सूजन या खांसी पैदा कर सकती हैं।
फिर भी, AQI 50 भारतीय शहरों में सबसे स्वस्थ हवा है। डॉ. छाबडा कहते हैं, “ये आपके सांस सिस्टम के लिए रिकवरी जोन है। बाहर व्यायाम करें, घर में हवा आने दें, और शरीर को राहत महसूस करने दें।”
Air Quality Index (AQI) यह बताता है कि हवा कितनी साफ या गंदी है। इसे PM2.5, PM10, ओजोन, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड के आधार पर निकाला जाता है।