बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ब्रोकरों और म्युचुअल फंडों को नियंत्रित करने वाले नियमों में पूरी तरह बदलाव करने पर विचार कर रहा है। ये नियम 1990 के दशक में बनाए गए थे। 17 दिसंबर को होने वाली बोर्ड बैठक में यह निर्णय लिया जा सकता है। सेबी म्युचुअल फंडों के लिए ब्रोकरेज फीस की सीमा कम करने की अपनी योजना से भी पीछे हट सकता है क्योंकि इससे स्वतंत्र इक्विटी अनुसंधान पर बुरा असर पड़ने की आशंका है।
बाजार नियामक वायदा एवं विकल्प (एफऐंडओ) श्रेणी में खरीद-फरोख्त में आई हालिया तेजी के बीच नकदी श्रेणी में बाजार गतिविधियों को रफ्तार देने के उपायों पर भी नजर रख रहा है। इसका उद्देश्य नकदी श्रेणी में शॉर्ट सेलिंग गतिविधियों को बढ़ावा देना है। इसके अलावा सार्वजनिक फर्मों के लिए सूचीबद्धता एवं खुलासा प्रावधानों की भी समीक्षा की जा रही है ताकि प्रवर्तकों को परिभाषित करने अथवा उनकी पहचान करने में अस्पष्टताओं को दूर किया जा सके।
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इस मामले से अवगत एक वरिष्ठ अधिकारी ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि ऐसा खास तौर पर नए जमाने की उन कंपनियों के लिए किया जा रहा है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि फर्म का नियंत्रण खोने के बाद भी प्रवर्तक उससे चिपके न रहें।
म्युचुअल फंड द्वारा नकदी बाजार में लेनदेन के लिए दी जाने वाली ब्रोकरेज फीस की सीमा को 12 आधार अंक से घटाकर 2 आधार अंक करने संबंधी सेबी की योजना के बारे में अधिकारी ने कहा कि बाजार नियामक को शुरू में लगा था कि कम लागत से निवेशकों को फायदा होगा।