नोबेल पुरस्कार से सम्मानित ग्रामीण बैंक के संस्थापक मोहम्मद यूनुस ने शुक्रवार को कहा कि वैश्विक महामारी कोरोनावायरस ने दुनिया को चिंतन करने और ऐसी नई व्यवस्था बनाने का ‘प्रबल’ साहसिक फैसला करने का मौका दिया है जहां ग्लोबल वार्मिंग न हो, धन का असमान वितरण न हो और बेरोजगारी न हो।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी से बातचीत में यूनुस ने एक ऐसी व्यवस्था की दिशा में नई शुरुआत करने का आह्वान किया जहां अनौपचारिक तथा ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए और समाज के सभी तबकों के लिए स्थान हो। यह वार्तालाप कोविड-19 का प्रकोप शुरू होने के बाद से गांधी द्वारा शुरू किए गए संवाद का हिस्सा था। इससे पहले गांधी अर्थव्यवस्था एवं महामारी विज्ञान के कई विशेषज्ञों, नर्सों एवं उद्योगपतियों से संवाद कर चुके हैं।
यूनुस ने कहा, ‘कोविड ने हमें यह चिंतन करने का मौका दिया है कि हम कितने बड़े और साहसिक फैसले ले सकते हैं। इसने हमें सोचने की दिशा दी है और हमारे पास विकल्प है कि हम या तो उस भयावह दुनिया में जाएं जो खुद को नष्ट करने जा रही है या फिर हम कहीं और जाएं और नई दुनिया बनाएं जहां ग्लोबल वार्मिंग न हो, अमीरी-गरीबी का अंतर न हो और बेरोजगारी न हो।’
उन्होंने गरीबों, प्रवासियों, महिलाओं तथा समाज के सबसे निचले तबके की पहचान करने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा, ‘वित्तीय प्रणालियां गलत तरीके से बनाई गई हैं। कोविड ने अब उनकी कमजोरियों को उजागर कर दिया है। गरीब हर जगह हैं लेकिन अर्थव्यवस्था में उनकी पहचान नहीं है। अगर हम उन्हें वित्तपोषित करें तो तरक्की के जीने पर ऊपर जाएंगे। हम औपचारिक क्षेत्र में ही व्यस्त हैं।’ यूनुस ने पश्चिमी आर्थिक मॉडल की आलोचना करते हुए कहा कि यह शहरी अर्थव्यवस्था को केंद्र के रूप में मान्यता देता है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को श्रमिकों की आपूर्तिकर्ता मानता है। उन्होंने ग्रामीण बैंक का उदाहरण देते हुए पूछा, ‘हम स्वायत्त अर्थव्यवस्था क्यों नहीं बना सकते?’ उन्होंने कहा कि ग्रामीण बैंक कानूनी औपचारिकताओं नहीं बल्कि विश्वास पर आधारित है और इसने दिखाया है कि गरीबों को भरोसे के दम पर लाखों डॉलर का कर्ज दिया जा सकता है और वे लोग ब्याज समेत मूल लौटाते हैं। महिलाओं को जब छोटे कर्ज दिए गए तो उन्होंने दिखाया कि उनमें उद्यमिता की कितना क्षमता है। उन्होंने कहा कि अब पूरी दुनिया ने सुक्ष्म ऋण (माइक्रो क्रेडिट) को स्वीकार कर लिया है।
