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महंगी वस्तुओं की खरीद में तेजी से जीडीपी को बल

Last Updated- December 11, 2022 | 11:03 PM IST

लोगों ने वर्ष 2021-22 की दूसरी तिमाही के दौरान संभवत: मुद्रास्फीति से बचाव के तौर पर तेज गति से सोना, कीमती रत्न और कलाकृतियों की खरीद की है, जिसने सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि को बढ़ाने में खासी भूमिका निभाई। अर्थशास्त्रियों के एक वर्ग का कहना है कि यह उस दर्द का संकेत देता है, जिससे अनौपचारिक अर्थव्यवस्था को इस तिमाही के दौरान गुजरना पड़ा, हालांकि इसके पीछे 8.4 प्रतिशत दर की जीडीपी रही।
राष्ट्रीय खातों के आंकड़ों में मूल्यवान वस्तु कहे जाने वाले इन मदों ने हाल के इतिहास में पहली बार चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही के दौरान मुद्रास्फीति के समायोजन के बावजूद एक लाख करोड़ रुपये का आंकड़ा पार कर लिया।
सालाना आधार पर 183.28 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ ये वस्तुएं 1.20 लाख करोड़ रुपये के स्तर पर रहीं। वर्ष 2019-20 की कोविड से पहले की इस अवधि की तुलना में मूल्यवान वस्तुओं के स्तर में 170.54 फीसदी का इजाफा हुआ।
वित्त वर्ष 22 की पहली तिमाही के दौरान मूल्यवान वस्तुओं की वृद्धि दर 456.13 प्रतिशत के स्तर पर ज्यादा रही, लेकिन ऐसा मुख्य रूप से वर्ष 2020-21 की पहली तिमाही के दौरान कोविड जनित लॉकडाउन की वजह से काफी कम स्तर वाले आधार के कारण हुआ था। कुल मिलाकर वित्त वर्ष 22 की अप्रैल-जून अवधि के दौरान ये मूल्यवान वस्तुएं केवल 17,012 करोड़ रुपये मूल्य की थीं। कोविड से पहले की वर्ष 2019-20 की इसी अवधि की तुलना में मूल्यवान वस्तुएं वित्त वर्ष 22 की पहली तिमाही के दौरान 61.23 प्रतिशत संकुचित हो गईं।
मुद्रास्फीति से परिवर्तित हुए बिना मूल्यवान वस्तुओं का योगदान वित्त वर्ष 22 की दूसरी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद के 3.1 प्रतिशत स्तर पर था, जबकि पिछले वर्ष की इसी अवधि में यह 1.3 प्रतिशत था। वित्त वर्ष 22 की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद में इसका योगदान 0.5 प्रतिशत था, जबकि पिछले वर्ष की अप्रैल-जून अवधि में इसका योगदान 0.1 प्रतिशत रहा।
येस बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री इंद्रनील पण ने कहा कि वित्त वर्ष 22 की दूसरी तिमाही के दौरान 8.4 प्रतिशत जीडीपी वृद्धि में कोई बड़ी खुशी की बात नहीं है, क्योंकि मूल्यवान वस्तुओं की सहायता के कारण ऐसा हुआ है। उन्होंने कहा ‘अगर ऐसा नहीं हुआ होता, तो जीडीपी में और अधिक मूल्यवान वस्तुएं जैसे कि निजी वित्तीय उपभोग व्यय (पीएफसीई), सरकारी अंतिम उपभोग व्यय (जीएफसीई) और सकल अचल पूंजी निर्माण (जीएफसीएफ) उस आंकड़े को आकर्षित करने में सक्षम नहीं हुए होते।’
फिलहाल यह मानते हुए कि मूल्यवान वस्तुएं वित्त वर्ष 2020-21 की दूसरी तिमाही के 42,253 करोड़ रुपये के स्तर पर बरकरार रहती हैं, चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही के दौरान जीडीपी वृद्धि घटकर केवल छह प्रतिशत रह जाती।
पण ने कहा कि वह कौन व्यक्ति है जो मूल्यवान वस्तुएं खरीद सकता है। कोविड के कारण गैर-जरूरी वस्तुओं पर खर्च न होने की वजह से बचत का एक हिस्सा मूल्यवान वस्तुओं में चला गया है। आम आदमी इन मूल्यवान वस्तुओं को नहीं खरीद रहा है। अर्थव्यवस्था में यह वह विभाजन है, जो नजर आ रहा है।

First Published - December 6, 2021 | 12:35 AM IST

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