भारतीय कंपनी जगत द्वारा कर्मचारियों को अपेक्षाकृत कम वेतन दिए जाने की बढ़ती चिंता पर वित्त मंत्रालय के मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने आज कहा कि इसका उपभोक्ता मांग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इसके साथ ही यह कॉरपोरेट क्षेत्र के लिए भी आत्मघाती हो सकता है। विश्लेषकों ने जुलाई-सितंबर तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर सात तिमाही में सबसे कम 5.4 फीसदी रहने के पीछे शहरी क्षेत्रों में कम वेतन वृद्धि को एक प्रमुख कारण बताया था और नागेश्वर ने इसी संदर्भ में यह टिप्पणी की।
एसोचैम के एक कार्यक्रम में नागेश्वरन ने कहा कि वित्त वर्ष 2024 में कारोबारी जगत का मुनाफा 15 साल में सबसे अधिक 4.8 फीसदी रहा था। उन्होंने कहा, ‘सूचीबद्ध निजी कंपनियों की कर्मचारी लागत घट रही है। कंपनियों ने मुनाफे का इस्तेमाल अपना कर्ज घटाने में किया है। लेकिन अब पूंजी निर्माण के साथ रोजगार वृद्धि के सही तालमेल का समय आ गया है। इसके बिना कंपनियों के उत्पादों के लिए अर्थव्यवस्था में पर्याप्त मांग नहीं आएगी। दूसरे शब्दों में कर्मचारियों को पर्याप्त वेतन भुगतान नहीं होने से अंतत: कारोबारी जगत को ही नुकसान होगा।’ उन्होंने कहा कि सरकार अर्थव्यवस्था में रोजगार सृजन करने के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया है।
जीडीपी आंकड़ों पर आईडीएफसी फर्स्ट बैंक के एक विश्लेषक की रिपोर्ट में कहा गया है कि शहरी मांग में तेजी नहीं आने से निजी खपत वृद्धि नरम रही। रिपोर्ट में कहा गया, ‘खपत मांग में कमी कंपनियों की लाभ वृद्धि में गिरावट के साथ ही शहरी वेतन वृद्धि में मंदी को दर्शाता है। वित्त वर्ष 2024 की दूसरी छमाही में शहरी मांग में नरमी आनी शुरू हुई थी और शहरी क्षेत्रों में वेतन वृद्धि भी कम रही थी। यह रुझान वित्त वर्ष 2025 में भी जारी रह सकता क्योंकि कंपनियों की मुनाफा वृद्धि घटी है।’
सितंबर तिमाही में कम जीडीपी वृद्धि के बारे में नागेश्वरन ने कहा कि इन आंकड़ों में मौसमी प्रभाव को शामिल नहीं किया गया था और बाद में वृद्धि दर के आंकड़े को संशोधित कर बढ़ाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि चालू वित्त वर्ष 6.5 से 7 फीसदी वृद्धि दर का अनुमान अभी भी हासिल किया जा सकता है।
नागेश्वरन ने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि इन आंकड़ों पर प्रतिक्रिया देते हुए हमें मूल्यवान तथ्यों को दरकिनार करना चाहिए क्योंकि अंतर्निहित वृद्धि की कहानी अभी भी काफी हद तक बरकरार है। वैश्विक हालात हमारे लिए अनुकूल नहीं है। हमें अनिश्चितताओं के साथ जीना होगा। इसलिए वृद्धि के लिए हमें सभी घरेलू उपायों को बढ़ावा देने की जरूरत है।’
नागेश्वरन ने लघु एवं मझोले उपक्रमों (एसएमई) के लिए मौजूदा प्रोत्साहन ढांचे को बदलने की आवश्यकता पर जोर दिया क्योंकि वह उनके लालच में वे हमेशा छोटे बने रहते हैं। उन्होंने कहा, ‘जब हम एक सीमा के आधार पर उद्यमों को तमाम रियायतें देते हैं तो दुर्भाग्य से कुछ उद्यम उस सीमा के दायरे में रही बने रहे हैं ताकि उन्हें रियायतों का लाभ मिल सके।
इसलिए इस पर गौर करने का एक तरीका यह हो सकता है कि सीमाओं को जीडीपी के साथ संबद्ध किया जाए। अगर आप कहेंगे कि 10 से कम कर्मचारियों वाले एसएमई को ही रियायतों का फायदा मिलेगा तो कई कारोबारी अपने कारोबार को 10 से कम कर्मचारियों वाली इकाइयों में विभाजित करना शुरू कर देंगे।’
नागेश्वरन ने कहा कि आर्थिक समीक्षा नियमन हटाने या खत्म करने पर केंद्रित होगी ताकि रोजगार सृजन और महिला कार्यबल की भागीदारी को बढ़ावा दिया जा सके।