उत्तर-पूर्वी भारत के उद्योगों को इस समय इस्पात की जबरदस्त किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। हालत यह है कि सरकार नियंत्रित स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड ने भी इस इलाके को इस्पात की जल्द आपूर्ति कराने में अपनी असमर्थता जतायी है।
आंकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2008-09 के दौरान इस्पात की कुल मांग 34,700 टन के आसपास रहने की संभावना है। जबकि जून महीने तक इस इलाके में केवल 2,000 टन इस्पात सेल ने मुहैया कराया है। इसके बावजूद सेल यह मानने को तैयार नहीं है कि इस इलाके में इस्पात की आपूर्ति में कमी हुई है। कंपनी का दावा है कि इस दौरान पूरे देश में इस्पात की कुल आपूर्ति में 32 फीसदी का इजाफा हुआ है।
असम, मेघालय और त्रिपुरा में सेल से इस्पात खरीदने वाली नोडल इकाई नैशनल स्मॉल इंडस्ट्रीज कॉरपोरेशन (एनएसआईसी) ने मार्च 2008 में सेल के सामने 34,700 टन इस्पात खरीदने का ऑर्डर रखा था। सेल का कहना है कि इस साल के जून तक उसने एनएसआईसी को 4,500 टन इस्पात मुहैया कराया पर दुर्भाग्य से इस एजेंसी ने महज 2,500 टन इस्पात ही उठाया है।
एनएसआईसी के मुख्य प्रबंधक ए. बी. बनर्जी सेल के इस दावे को गलत बताते हैं। बनर्जी के मुताबिक, सेल ने महज 2,521 टन इस्पात ही मुहैया कराए हैं। उन्होंने बताया कि एनएसआईसी ने सेल के सामने जून महीने तक 6,295 टन इस्पात की मांग रखी थी और सेल ने इसका केवल एक तिहाई माल ही उपलब्ध कराया है। जानकार सेल और एनएसआईसी के बीच कई तरह के शुल्क और प्रतिशुल्क को इलाके में इस्पात की किल्लत की मुख्य वजह बता रहे हैं।
देश के उत्तर-पूर्व इलाके की प्रमुख कारोबारी और औद्योगिक संस्था उत्तर-पूर्वी क्षेत्र का उद्योग और वाणिज्य परिसंघ ने सेल को एक पत्र लिखा है। इस पत्र में उसने कहा है कि यदि सेल जैसी महत्वपूर्ण इस्पात कंपनी से कच्चे माल की आपूर्ति में हुई कमी से औद्योगिक उत्पादन रुकता है तो उत्तर-पूर्व औद्योगिक और निवेश प्र्रवत्तन नीति-2007 और विजन-2020 के कई उद्देश्य निरर्थक हो जाएंगे। एफआईएनईआर के अध्यक्ष और इस्पात उद्यमी आर. एस. जोशी का मानना है कि हालात बेहद खराब हैं।
उनके मुताबिक उन्होंने इससे पहले ऐसी बुरी स्थिति कभी नहीं देखी। उनके पास पूंजी की कोई कमी नहीं है पर कच्चा माल ही नहीं है। ऐसी स्थिति उद्योग जगत के लिए वाकई में बड़ी विचित्र है। उन्होंने कहा कि आपूर्ति में किल्लत होने से इकाइयों की उत्पादन प्रक्रिया पर काफी बुरा प्रभाव पड़ा है। इसके चलते कंपनियां अपने ऑर्डर या तो टाल रही हैं या रद्द कर रही हैं। जोशी ने बताया कि इस्पात की कीमतें वैसे भी आसमान छू चुकी है। उस पर आपूर्ति काफी गड़बड़ है। ऐसी परिस्थितियों में इस इलाके में इस्पात की कीमतों में और बढ़ोतरी हो सकती है।
सही समय पर इस्पात न मिलने से कई इकाइयों के ऑर्डर में विलंब हो चुका है। परिणाम यह हुआ कि कई खरीदारों ने वादे न पूरे करने के लिए इन कंपनियों पर जुर्माने का दावा ठोंक दिया है। जोशी के अनुसार, इस्पात की किल्लत लंबे समय तक रही तो छोटे उद्यमों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। इस्पात जैसी महत्वपूर्ण कच्ची सामग्री की किल्लत उत्तर-पूर्व के सभी उद्योगों के अस्तित्व को खतरे में डाल देगी।