सरकार 2030 तक हाइड्रोजन से चलने वाले कम से कम 1,000 ट्रक और बस सड़कों पर उतारने का लक्ष्य साध रही है। एक अधिकारी ने इसकी जानकारी देते हुए कहा कि सड़क पर वाहनों से प्रदूषण कम करने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) के बाद हाइड्रोजन कारें ही पेट्रोल व डीजल से चलने वाली गाड़ियों का विकल्प बन रही हैं।
राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के निदेशक अभय बाकरे ने भारतीय वाहन निर्माताओं के संगठन सायम के कार्यक्रम ‘रिवॉल्यूशनाइजिंग मोबिलिटी’ के दौरान आज कहा, ‘करीब 50 ट्रक और बस तो इसी साल हाइड्रोजन से चलने लगेंगी और अगले साल से हम संख्या और भी बढ़ाएंगे। हमें उम्मीद है कि 2030 तक देश में 1,000 से अधिक हाइड्रोजन ट्रक और बसें व्यावसायिक तौर पर चलाई जाएंगी।’
किंतु उन्होंने कहा कि ग्रीन हाइड्रोजन उपलब्ध कराना बड़ी चुनौती होगी। उन्होंने कहा, ‘इसकी वजह यह है कि हम जो हाइड्रोजन बनाने की कोशिश कर रहे हैं, उसमें से ज्यादातर बड़े बाजार के लिए होगा क्योंकि इसमें पूंजी खर्च करनी होगी। इस वजह से उपलब्धता में दिक्कत आएगी।’
रिफाइनरियों को ग्रीन हाइड्रोजन बनाने के लिए भारी मात्रा में अक्षय ऊर्जा, बड़े संयंत्र, ज्यादा जमीन और पानी की जरूरत होगी। सरकार हर 200 किलोमीटर पर ईंधन के पंप लगाने की सोच रही है, जहां बायोगैस से बनी हाइड्रोजन या विकेंद्रीकृत हाइड्रोजन तैयार कर किफायती कीमत में बेची जाएगी। बाकरे ने बताया कि इस योजना को 100-200 किलोमीटर दूरी वाले 10 गलियारों में आजमाया जाएगा मगर इसे दिल्ली-मुंबई मार्ग जैसे लंबे गलियारों में भी देखा जा सकता है।
ईवी के साथ अच्छी बात यह है कि उसकी बैटरी घर में भी चार्ज की जा सकती है मगर ग्रीन हाइड्रोजन में यह सहूलियत नहीं है। बाकरे ने कहा, ‘अभी हाइड्रोजन बनाना और वाहन को घर पर ही चार्ज करना खतरनाक होगा। हो सकता है कि आगे चलकर कभी हम छत पर हाइड्रोजन बनाने लगें और इसका इस्तेमाल रसोई में या गाड़ियों में कर सकें। मगर अभी यह दूर की कौड़ी है। इसलिए हम हाइड्रोजन रीफिलिंग स्टेशनों का नेटवर्क तैयार करने की कोशिश में हैं।’
हाइड्रोजन से चलने वाली कार को हाइड्रोजन फ्यूल सेल व्हीकल भी कहते हैं। इसमें हाइड्रोजन गैस ही पहला ईंधन होती है। भारतीय बाजार में अभी हाइड्रोजन कार नहीं बेची जा रही। मगर कई कार कंपनियों ने यहां के बाजार में ऐसी गाड़ी उतारने की योजना का जिक्र किया है।
सड़क परिवहन के बाद सरकार इसे विमानन तथा जहाजरानी में भी इस्तेमाल करने की योजना बना रही है। इसका जिक्र राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन के दिशानिर्देशों में भी किया गया है। कुल 19,744 करोड़ रुपये के आवंटन वाला यह मिशन जनवरी 2023 में पेश किया गया था। इस मिशन की मियाद 2029-30 तक के लिए रखी गई है और इसका मकसद पेट्रोल-डीजल जैसे जीवाश्म ईंधन के आयात पर निर्भरता कम करना है। मोबिलिटी की प्रायोगिक परियोजनाओं के लिए वित्त वर्ष 2026 में 496 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।
स्टील, मोबिलिटी, जहाजरानी, विकेंद्रीकृत ऊर्जा के इस्तेमाल, बायोमास से हाइड्रोजन उत्पादन, हाइड्रोजन भंडारण आदि के लिए परीक्षण के तौर पर परियोजनाएं चलाना भी इसी मिशन का हिस्सा है।