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लेखक : के पी कृष्णन

आज का अखबार, लेख

भारत के वित्तीय बाजार के शिल्पकार मनमोहन

दिवंगत डॉ. मनमोहन सिंह को भारत में बुनियादी बदलाव करने वाले योगदान के लिए सराहा जाता है। उन्होंने संसाधनों को असली अर्थव्यस्था में लाने में आधुनिक प्रतिभूति बाजार अहम भूमिका समझ ली थी, जिसके बाद उन्होंने इस बाजार का खाका तैयार किया और इसकी नींव डाली। बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) का […]

आज का अखबार, लेख

आरबीआई की कामयाबी के लिए सरकार का एजेंडा

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के नए गवर्नर को मुझ जैसे तमाम स्तंभकार उन अहम सवालों के बारे में सलाह दे रहे हैं, जो उनके सामने हैं। मगर इस समय की खास बात यह है कि गवर्नर की सफलता की जिम्मेदारी सरकार पर है। अधिकतर केंद्रीय बैंकों का काम मौद्रिक नीति पर ध्यान देना ही होता […]

आज का अखबार, लेख

केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच बढ़ता असंतुलन

सांविधिक नियामकीय प्राधिकारों द्वारा विधायी शक्तियों का इस्तेमाल संघवाद को सीमित करता है और इसमें सुधार करने की आवश्यकता है। बता रहे हैं के पी कृष्णन भारतीय संविधान राज्य के काम को चार हिस्सों में विभाजित करता है: (क) केंद्रीय सूची, (ख) राज्य सूची, (ग) समवर्ती सूची जो केंद्र और राज्यों की साझा जिम्मेदारी है […]

आज का अखबार, लेख

Opinion: मुद्रा विनिमय दर में अनिश्चितता का अर्थव्यवस्था से ताल्लुक, क्या स्थिरता का जिक्र RBI के लिए वाकई उपलब्धि?

भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने हाल में सार्वजनिक तौर पर सीना चौड़ा कर पिछले कुछ वर्षों में मुद्रा विनिमय दरों में स्थिरता का जिक्र किया। क्या यह वाकई ऐसी उपलब्धि है जिस पर आरबीआई इतरा सकता है? कंप्यूटर क्रांति की भाषा में पूछें तो यह खूबी है या खामी? आइए, पहले तथ्यों पर विचार करते […]

आज का अखबार, लेख

कौन निभाएगा संरक्षकों की रक्षा का दायित्व? संसद रेगुलेटर्स के लिए स्थापित करे निगरानी तंत्र

भारतीय राज्य तीन बराबर शाखाओं में विभाजित है- विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका। जब शक्तियों का यह विभाजन बरकरार रहता है, जब तीनों भूमिकाएं धुंधली नहीं पड़तीं, तब एक सक्षम और जवाबदेह राज्य बनाना आसान होता है। परंतु जीवन इतना सहज नहीं है। ऐसे हालात भी आते हैं जिनके बारे में राजनीतिक विचारकों ने कहा है […]

आज का अखबार, लेख

नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य हासिल करने के लिए बिजली क्षेत्र में सधी रणनीति की जरूरत

कार्बन (जीवाश्म ईंधन) का युग समाप्त होने को है। अब हम इस बात पर चर्चा कर सकते हैं कि भारत में जीवाश्म ईंधन का इस्तेमाल कब बंद होगा। परंतु वर्ष 2070 तक विशुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य प्राप्त करना है तो वर्ष 2050 तक कार्बन रहित ऊर्जा तंत्र मजबूती से खड़ा करना होगा। एक […]

आज का अखबार, लेख

डेरिवेटिव कारोबार पर नियंत्रण और अर्थव्यवस्था पर असर

आधुनिक एवं सक्षम बाजार अर्थव्यवस्था में मूल्य में होने वाले बदलाव की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। कीमतों में उतार-चढ़ाव के बीच मिलने वाले संकेतों से मांग एवं आपूर्ति के मोर्चों पर हरकत होने लगती है। ये उतार-चढ़ाव दीर्घ अवधि में असहज एवं नुकसानदेह हो सकते हैं। मगर वित्तीय डेरिवेटिव बाजार ऐसे माध्यम तैयार करते हैं […]

आज का अखबार, लेख

भारत में नियामकीय सुधार का एजेंडा

सर्वशक्तिमान नियामक देश की अर्थव्यवस्था और नागरिकों के जीवन पर बहुत प्रभावकारी स्थिति में हैं। उनके संचालन में सुधार करना नई सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। बता रहे हैं के पी कृष्णन नियमन हमारे जीवन को हमारे सोच से अधिक प्रभावित करते हैं। हम नाश्ते पर जो कॉफी पीते हैं, बाहर जाने के लिए […]

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नियामकीय शुल्क या अनुचित आर्थिक संवर्धन ?

Regulatory fee: बंबई स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) ने स्टॉक एक्सचेंजों को जानकारी दी कि भारतीय प्रतिभूति एवं विनियामक बोर्ड (सेबी) ने उसे सालाना कारोबार पर नियामकीय शुल्क का भुगतान करने का निर्देश दिया है। बीएसई ने कहा कि विकल्प अनुबंध (ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट) में सांकेतिक मूल्य पर विचार करने के बाद सेबी ने यह आदेश दिया है। […]

आज का अखबार, लेख

वृद्धि में बाधक श्रम नियमों पर पुनर्विचार जरूरी

देश की आईटी राजधानी जल संकट जैसी वजहों से अखबारों की सुर्खियों में रही है। आईटी/आईटीईएस से जुड़े क्षेत्र के कर्मचारियों के बीच भी असंतोष पनपने के संकेत मिल रहे हैं। बता रहे हैं के पी कृष्णन कर्नाटक राज्य आईटी /आईटीईएस कर्मचारी संघ (केआईटीयू) नाम के एक नए श्रमिक संघ ने मांग की है कि […]

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