facebookmetapixel
MCap: रिलायंस और बाजाज फाइनेंस के शेयर चमके, 7 बड़ी कंपनियों की मार्केट वैल्यू में ₹1 लाख करोड़ का इजाफालाल सागर केबल कटने से दुनिया भर में इंटरनेट स्पीड हुई स्लो, माइक्रोसॉफ्ट समेत कई कंपनियों पर असरIPO Alert: PhysicsWallah जल्द लाएगा ₹3,820 करोड़ का आईपीओ, SEBI के पास दाखिल हुआ DRHPShare Market: जीएसटी राहत और चीन से गर्मजोशी ने बढ़ाई निवेशकों की उम्मीदेंWeather Update: बिहार-यूपी में बाढ़ का कहर जारी, दिल्ली को मिली थोड़ी राहत; जानें कैसा रहेगा आज मौसमपांच साल में 479% का रिटर्न देने वाली नवरत्न कंपनी ने 10.50% डिविडेंड देने का किया ऐलान, रिकॉर्ड डेट फिक्सStock Split: 1 शेयर बंट जाएगा 10 टुकड़ों में! इस स्मॉलकैप कंपनी ने किया स्टॉक स्प्लिट का ऐलान, रिकॉर्ड डेट जल्दसीतारमण ने सभी राज्यों के वित्त मंत्रियों को लिखा पत्र, कहा: GST 2.0 से ग्राहकों और व्यापारियों को मिलेगा बड़ा फायदाAdani Group की यह कंपनी करने जा रही है स्टॉक स्प्लिट, अब पांच हिस्सों में बंट जाएगा शेयर; चेक करें डिटेलCorporate Actions Next Week: मार्केट में निवेशकों के लिए बोनस, डिविडेंड और स्प्लिट से मुनाफे का सुनहरा मौका

कौन निभाएगा संरक्षकों की रक्षा का दायित्व? संसद रेगुलेटर्स के लिए स्थापित करे निगरानी तंत्र

आवश्यकता यह है कि संसद नियामकों के लिए निगरानी तंत्र की स्थापना करे जो बिना बाजारों की स्वायत्तता से समझौता किए उन पर नजर रख सके। बता रहे हैं के पी कृष्णन

Last Updated- September 02, 2024 | 10:29 PM IST
Who will fulfill the responsibility of protecting the patrons? Parliament should establish monitoring mechanism for regulators कौन निभाएगा संरक्षकों की रक्षा का दायित्व? संसद रेगुलेटर्स के लिए स्थापित करे निगरानी तंत्र

भारतीय राज्य तीन बराबर शाखाओं में विभाजित है- विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका। जब शक्तियों का यह विभाजन बरकरार रहता है, जब तीनों भूमिकाएं धुंधली नहीं पड़तीं, तब एक सक्षम और जवाबदेह राज्य बनाना आसान होता है। परंतु जीवन इतना सहज नहीं है। ऐसे हालात भी आते हैं जिनके बारे में राजनीतिक विचारकों ने कहा है कि शक्तियों के सख्त विभाजन को थोड़ा शिथिल करना पड़ता है। सांविधिक नियामकीय प्राधिकारों (एसआरए) के मामले में हम ऐसा देख चुके हैं जो आमतौर पर राज्य की दो शाखाओं (विकसित अर्थव्यवस्थाओं में) और तीन शाखाओं (भारत में) को एक साथ मिला देते हैं।

एसआरए के गठन की एक वजह यह सुनिश्चित करना है कि राजनीति से स्वतंत्रता संभव हो सके और नियामकीय निर्णयों को राजनीतिक असर से बचाया जा सके। जब एसआरए जांच और अभियोजन में शामिल हो तो राजनीति से दूर रहना चाहिए। वैसे ही जैसे कि पुलिस और सीबीआई से। जब रिजर्व बैंक अल्पावधि की ब्याज दरें तय करता है तो उसे उस समय के सत्ताधारी दल के चुनावी लक्ष्यों से प्रभावित नहीं होना चाहिए।

यह बात हमें एसआरए में शामिल वरिष्ठ लोगों के संचालन और प्रबंधन के अधिक अहम और जीवंत विषय की ओर ले जाती है। उनकी नियुक्ति, अनुशासन और निष्कासन की प्रक्रियाएं सही ढंग से की जानी चाहिए ताकि स्वायत्तता बरकरार रहे। भारत में एसआरए के शीर्ष अधिकारियों की नियुक्ति कार्यपालिका द्वारा की जाती है और नीचे के स्तर पर होने वाली नियुक्तियां एसआरए द्वारा की जाती हैं। इनमें अलग-अलग स्तरों पर सरकारें शामिल होती हैं।

भारत का संविधान शीर्ष अफसरशाही की नियुक्ति, अनुशासन और पद से हटाए जाने की दिक्कतों को भलीभांति स्पष्ट करता है। सरकारी विभागों से परे विचार करें तो संविधान कई संस्थानों की स्थापना करता है मसलन सर्वोच्च न्यायालय, संघ लोक सेवा आयोग, भारतीय निर्वाचन आयोग, और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक।

उनकी राजनीतिक स्वायत्तता बरकरार रखने के लिए कई उपाय लागू किए गए जबकि नियुक्ति, अनुशासन और निकाले जाने जैसी दिक्कतों को भी हल किया गया। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश, सीएजी और मुख्य निर्वाचन आयुक्त, इन्हें बिना संसदीय मंजूरी के नही हटाया जा सकता है। इन्हें हटाने के लिए पूर्ण बहुमत और सदन में मौजूद सदस्यों के दो तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है। संघ लोक सेवा आयोग के सदस्यों के मामले में निष्कासन का निर्णय लेने के पहले सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जांच जरूरी है।

एसआरए की स्थापना करने वाले कानून न तो किसी विभाग अफसरशाही की श्रेणी में आते हैं और न ही संवैधानिक संस्था के। उदाहरण के लिए रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ऐक्ट में कहा गया है कि रिजर्व बैंक के गवर्नर को सरकार हटा सकती है। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड यानी सेबी के पूर्णाकालिक सदस्यों और चेयरमैन को भी सरकार उस स्थिति में हटा सकती है जब उसे लगे कि उनका पद पर बने रहना जनहित में नहीं है।

सेबी अधिनियम में इकलौती सुरक्षा यह है कि ऐसा बिना सुनवाई के नहीं किया जा सकता है। ऐतिहासिक कारणों और इस तथ्य के कारण कि भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग एक अर्ध न्यायिक संस्था के रूप में उभरा, सीसीआई कानून एसआरए से जुड़ा इकलौता विधान है जहां निष्कासन के लिए सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की जांच आवश्यक है।

राज्य की क्षमता बढ़ाने की दीर्घकालिक यात्रा के क्रम में एसआरए में कई अधिक वरिष्ठ पदों पर नियुक्तियां उद्योग जगत से होनी चाहिए। इससे अनुशासन और निष्कासन के मामले में हालात और जटिल हो जाएंगे। अफसरशाही के उलट यहां नियुक्त होने वाले लोग एसआरए में आने के पहले ही प्रतिष्ठित जगहों पर अच्छे संपर्क वाले होंगे। हमें ऐसे लोग और उनकी विशेषज्ञता की जरूत है लेकिन उन्हें अफसरशाही से अलग किस्म के अनुशासन और ईमानदारी की आवश्यकता होगी जो कतिपय सिद्धांतों पर आधारित होंगे।

एसआरए को सौंपी गई जिम्मेदारियों को देखते हुए यह अनिवार्य ही है कि तमाम तरह के असंतुष्ट लोग मीडिया और बंद लिफाफों के जरिये प्रतिकूल अभियान चलाएंगे। एसआरए के मौजूदा और पूर्व पदाधिकारियों को लेकर अपमानजनक किस्से फैलाएंगे। इससे हालात सुधरने के पहले और बिगड़ेंगे।

अफसरशाह सीबीआई और केंद्रीय सतर्कता आयोग के दायरे में आते हैं। मौजूदा कानूनों के मुताबिक सीबीआई और सतर्कता आयोग केवल अफसरशाही पर ही नहीं बल्कि लोक सेवकों पर भी अधिकार रखते हैं। विभिन्न अदालती फैसलों में यह कहा गया है कि एसआरए के कर्मचारी लोक सेवक हैं।

एसआरए के कर्मचारियों के खिलाफ बड़ी संख्या में शिकायतें सीबीआई और सतर्कता आयोग तक पहुंची हैं जहां उन्हें वैसे ही देखा गया है कि सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों के खिलाफ शिकायतों को। ये दोनों संस्थान केंद्र सरकार के साथ समन्वय में काम करते हैं। इन शक्तियों की बदौलत एसआरए नेतृत्व को किसी भी समय शक्तिहीन किया जा सकता है। मौजूदा प्रक्रियाओं की बात करें तो निष्कासन से इतर इन कानूनों में प्रक्रियाओं को भी सही ढंग से परिभाषित नहीं किया गया है। इससे यह स्पष्ट नहीं है कि एसआरए अधिकारियों के आचरण को लेकर अनुशासनात्मक मामलों में क्या किया जाए?

यह एसआरए के संचालन से जुड़ी बड़ी तस्वीर का एक हिस्सा है। एसआरए जटिल हैं और भारत में ये नए हैं। इन अहम संस्थानों को उच्चस्तरीय क्षमता वाला बनाने के लिए कानून तैयार करने में बहुत अधिक प्रयासों की आवश्यकता होगी। इन सवालों को सबसे अधिक बेहतर ढंग से भारतीय वित्तीय संहिता में दर्ज किया गया है जिसका मसौदा न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण वित्तीय क्षेत्र विधायी सुधार आयोग (एफएसएलआरसी 2011-2015) ने तैयार किया था।

समाधान निकालने में एसआरए का संचालन बोर्ड अहम है। किसी सामान्य जिनी फर्म की तरह स्वतंत्र बोर्ड सदस्यों वाला एक व्यवस्थित बोर्ड एसआरए के प्रबंधकों (मसलन रिजर्व बैंक के गवर्नर और डिप्टी गवर्नर) आदि के लिए जवाबदेही का केंद्र होना चाहिए। इसके चलते बोर्ड सदस्यों की भूमिका और नियुक्ति आदि के लिए एफएसएलआरसी मशीनरी की जरूरत होगी।

एसआरए की मानव संसाधन संबंधी प्रक्रिया जिसमें नियुक्ति निष्कासन, हितों के टकराव और लोकपाल आदि शामिल हैं, के लिए कानून में सावधानी से निर्मित व्यवस्था होनी चाहिए। इसे लेकर भी अब तक का सबसे बेहतर प्रयास एफएसएलआरसी के आईएफसी में है। उसे अपडेट और अधिनियमित करने का वक्त आ गया है।

(लेखक आईसीपीपी में मानद सीनियर फेलो और पूर्व अफसरशाह हैं)

First Published - September 2, 2024 | 10:29 PM IST

संबंधित पोस्ट