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डिजिटल युग में श्रम सुधार: सरकार की नई श्रम शक्ति नीति में एआई और कौशल पर जोर

भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह बनी हुई है कि वह अपने विशाल और लगातार बढ़ते कार्य बल के लिए लाभकारी रोजगार के अवसर कैसे सृजित करे

Last Updated- October 22, 2025 | 9:30 PM IST
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श्रम एवं रोजगार मंत्रालय की मसौदा राष्ट्रीय श्रम नीति यानी श्रम शक्ति नीति सही इरादों वाली प्रतीत होती है। इसका लक्ष्य एक निष्पक्ष, समावेशी और भविष्य की दृष्टि से तैयार व्यवस्था बनाने की है जहां हर श्रमिक फिर चाहे वह औपचारिक क्षेत्र का हो, असंगठित क्षेत्र का या गिग वर्कर, उसकी गरिमा का ध्यान रखा जा सके और उसे जरूरी संरक्षण और अवसर प्रदान किए जा सकें।

मंत्रालय की भूमिका को ‘रोजगार को बढ़ावा देने वाले’ के रूप में पुनर्परिभाषित किया गया है। इसके तहत डिजिटल साधन और आर्टिफिशल इंटेलिजेंस यानी एआई की मदद से श्रमिकों और नियोक्ताओं से संपर्क करना और संस्थानों को अबाध प्रशिक्षण मुहैया कराना शामिल है। इसमें इस बात को भी स्वीकार किया गया है कि भारत का श्रम बाजार ढांचागत बदलाव से गुजर रहा है और यह बदलाव डिजिटलीकरण, हरित बदलाव और गिग वर्क तथा प्लेटफॉर्म वर्क जैसे नए तरह के कामों की बदौलत आया है।

इतना ही नहीं राष्ट्रीय करियर सेवा (एनसीएस) का विस्तार रोजगार के लिए एक डिजिटल सार्वजनिक अधोसंरचना के रूप में करने की कोशिश भी यह दिखाती है कि एक डेटा आधारित और श्रमिक केंद्रित नीति बनाने का प्रयास है ताकि सूचना की विसंगति की खाई को पाटा जा सके।

श्रम बाजार में बदलावों की बात करें तो विश्व बैंक द्वारा जारी ‘साउथ एशिया डेवलपमेंट अपडेट’(अक्टूबर, 2025) इस बात की एक जटिल तस्वीर पेश करती है कि कैसे एआई देश के श्रम परिदृश्य को बदल रही है। स्वचालन के कारण रोजगारों को क्षति पहुंचने की आशंका जहां सार्वजनिक बहस के केंद्र में है वहीं रिपोर्ट कहती है कि एआई का प्रभाव असमान हो सकता है। इससे उत्पादकता वृद्धि के अवसर भी मिल सकते हैं और समावेशन में चुनौतियां भी सामने आ सकती हैं। दक्षिण एशिया में केवल 7 फीसदी नौकरियां ऐसी हैं जिन्हें स्वचालन के कारण बहुत अधिक जोखिम है।

बहरहाल, 15 फीसदी नौकरियां ऐसी हैं जहां इंसान और तकनीक साथ मिलकर उत्पादकता में सुधार कर सकते हैं। एआई से संबंधित नौकरियों में अन्य दफ्तरी नौकरियों की तुलना में वेतन करीब 30 फीसदी अधिक है। भारतीय कंपनियां अब बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग से नॉलेज प्रोसेस आउटसोर्सिंग की ओर बढ़ रही हैं। इससे उच्च कौशल वाली नौकरियों के अवसर तो बन रहे हैं लेकिन शुरुआती स्तर की नौकरियों की उपलब्धता में कमी आ रही है।

इस बदलाव का लाभ उठाने के लिए श्रम शक्ति नीति का मसौदा कई हस्तक्षेपों का सुझाव देता है ताकि कौशल और अवसरों के बीच की खाई को पाटा जा सके। इसके लिए लक्षित कौशल और पुनर्कौशल कार्यक्रमों की आवश्यकता है। खासतौर पर कस्बाई और ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसा करना जरूरी है। प्रशिक्षण की आपूर्ति को श्रम की मांग से जोड़ा जाना चाहिए।

इसके अतिरिक्त, मसौदा नीति एआई-सक्षम नौकरी मिलान, डिजिटल प्रमाणन, और युवाओं व महिलाओं के लिए उद्यमिता सहयोग को भी बढ़ावा देती है। इस संदर्भ में, जैसा कि इस समाचार पत्र ने हाल में रिपोर्ट किया था, केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) कक्षा तीन से ही स्कूल पाठ्यक्रम में एआई को शामिल करने की योजना बना रहा है। साथ ही, विभिन्न विषयों में स्नातक कार्यक्रमों में एआई और डेटा विज्ञान को एकीकृत करने के प्रयास किए जा रहे हैं ताकि एआई के लिए तैयार कार्यबल का सृजन किया जा सके।

मसौदा रिपोर्ट में सार्वभौमिक और पोर्टेबल सामाजिक सुरक्षा, सूक्ष्म, लघु और मझोले उपक्रमों के लिए सरलीकृत अनुपालन तथा पर्यावरण के अनुकूल तथा तकनीक सक्षम बदलावों का समर्थन आदि शामिल है। कुल मिलाकर ये उपाय एक दूरदर्शी ढांचा पेश करते हैं। बहरहाल, चुनौतियां भी सामने हैं। पहली, अनौपचारिकता का वर्चस्व सामाजिक सुरक्षा के क्रियान्वयन और अनुपालन निगरानी को जटिल बनाता है।

दूसरी, लैंगिक असमानताएं बनी हुई हैं, जहां महिलाओं की श्रम बल में भागीदारी अब भी कम है। तीसरी, केंद्र, राज्य और जिलों के बीच समन्वय यह तय करेगा कि सुधार कितनी तेजी से परिणामों में बदलते हैं। ध्यान रहे यह समन्वय आसान नहीं। यदि इसे सही ढंग से लागू किया जाए, तो श्रम शक्ति नीति श्रम बाजार की स्थिति को बेहतर बनाने में मदद कर सकती है।

फिर भी, भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह बनी हुई है कि वह अपने विशाल और लगातार बढ़ते कार्य बल के लिए लाभकारी रोजगार के अवसर कैसे सृजित करे, साथ ही श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा और व्यवसायों के लिए लचीलापन, इन दोनों के बीच संतुलन कैसे बनाए रखे।

First Published - October 22, 2025 | 9:23 PM IST

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