देश के वित्तीय क्षेत्र में विदेशी कंपनियों की अभिरुचि महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ रही है। उदाहरण के लिए गत सप्ताह संयुक्त अरब अमीरात की कंपनी एनबीडी पीजेएससी ने मझोले आकार के निजी बैंक आरबीएल बैंक में 26,850 करोड़ रुपये यानी करीब 3 अरब डॉलर के निवेश का समझौता किया। इसके जरिये वह बैंक में 60 फीसदी की हिस्सेदारी खरीदने जा रही है।
अगर इस सौदे को नियामकीय मंजूरी मिल जाती है तो यह भारत के किसी भी निजी बैंक में सबसे बड़ा विदेशी निवेश होगा। प्रबंधन के मुताबिक यह निवेश आरबीएल बैंक को बड़े भारतीय बैंकों की लीग में शामिल होने में मदद करेगा। यह बैंक को कॉरपोरेट बैंकिंग में मजबूत बनाएगा। एमिरेट्स एनबीडी पहले ही भारत की थोक बैंकिंग में मजबूती से मौजूद है।
एक बार यह सौदा हो जाने के बाद आरबीएल बैंक एक विदेशी बैंक का सूचीबद्ध अनुषंगी बन जाएगा। हालांकि अनिवार्य खुली पेशकश और सार्वजनिक हिस्सेदारी से जुड़े मुद्दों पर ध्यान देना होगा लेकिन यह निवेश समझौता देश के बैंकिंग इतिहास में एक मील का पत्थर साबित होने वाला है।
इससे पहले इसी वर्ष जापान के सुमितोमो मित्सुई बैकिंग कॉरपोरेशन (एसएमबीसी) ने येस बैंक में 24.2 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी थी। हाल ही में खबर आई थी कि एसएमबीसी येस बैंक में अपनी हिस्सेदारी को 24.99 फीसदी से अधिक बढ़ाने के लिए तैयार नहीं है। अगर वह 25 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी लेता है तो खुली पेशकश करना अनिवार्य हो जाएगा। बहरहाल, येस बैंक में एसएमबीसी की हिस्सेदारी भी भारतीय बैंकिंग के क्षेत्र में विदेशी निवेश का एक और उदाहरण है।
पांच साल पहले डीबीएस बैंक इंडिया ने लक्ष्मी विलास बैंक का अधिग्रहण किया था। यह सौदा उस समय हुआ था जब लक्ष्मी विलास बैंक की वित्तीय हालत ठीक नहीं थी। विदेशी कंपनियों द्वारा निवेश को देश में बढ़ते नियामकीय खुलेपन से मदद मिली है। विदेशी कंपनियां नियामकीय मंजूरी के साथ किसी बैंक में 74 फीसदी तक हिस्सेदारी रख सकती हैं। हालांकि, वोटिंग के अधिकार 26 फीसदी तक सीमित हैं। इसके पीछे इरादा यह है कि बोर्ड स्तर पर पर्याप्त विविधता और स्वतंत्रता सुनिश्चित की जाए। यह बात भी दिलचस्प है कि बीते वर्षों के दौरान कई अमेरिकी और यूरोपीय बैंक भारत के खुदरा बैंकिंग क्षेत्र से बाहर हो गए।
आंशिक तौर पर ऐसा इसलिए भी हुआ क्योंकि उनकी मूल कंपनी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पुनर्गठन किया। इस बीच गैर अमेरिकी और गैर यूरोपीय बैंक भारत के वित्तीय परिदृश्य में प्रवेश कर रहे हैं। अभी हाल ही में गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनी (एनबीएफसी) क्षेत्र में अबू धाबी की इंटरनैशनल होल्डिंग कंपनी पीजेएससी ने सम्मान कैपिटल में 42 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी। उसने इसके लिए एक अरब डॉलर की राशि खर्च की।
भारतीय वित्तीय क्षेत्र में इस रुचि की वजह वृद्धि की संभावना है। भारत न केवल दुनिया की सबसे तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्था है, बल्कि यहां संगठित वित्त के क्षेत्र में भी अपार संभावनाएं हैं। जैसा कि इसी जगह पर पहले भी लिखा जा चुका है, ऋण क्षेत्र में एक बड़ा बाजार है जिसका लाभ अभी उठाया जाना है। अभी यह क्षेत्र कर्ज के लिए असंगठित क्षेत्र पर निर्भर है।
शोध दिखाते हैं कि डिजिटल माध्यमों को अपना कर बहुत बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। इससे वंचित वर्गों को ऋण उपलब्ध कराने में मदद मिली है, वह भी देनदारी में ज्यादा चूक के बिना। फिनटेक और वित्तीय कंपनियां यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) डेटा का उपयोग करके इन वंचित वर्गों को ऋण प्रदान कर सकती हैं। इस क्षेत्र में आवश्यक नियामकीय स्पष्टता एक विशाल बाजार को खोल सकती है। कॉरपोरेट स्तर पर, जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था बढ़ेगी, अवसर भी उभरते मिलेंगे।
उदाहरण के लिए, भारतीय रिजर्व बैंक ने प्रस्ताव दिया है कि बैंक भारतीय कंपनियों द्वारा किए जाने वाले अधिग्रहणों को वित्तपोषित कर सकें। व्यापक स्तर पर, निजी बैंकों और एनबीएफसी में विदेशी निवेश की उपलब्धता बढ़ने से वित्तीय क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, जिससे कॉरपोरेट और व्यक्तिगत ग्राहकों, दोनों को बेहतर सेवाएं कम लागत पर मिल सकेंगी।
(डिस्क्लोजर: कोटक परिवार द्वारा नियंत्रित संस्थानों की बिज़नेस स्टैंडर्ड प्राइवेट लिमिटेड में महत्त्वपूर्ण हिस्सेदारी है।)