कोविड-19 महामारी से बचाव के टीके का भारत सहित पूरी दुनिया में बेसब्री से इंतजार हो रहा है। इस महामारी से बचाव के टीके का ईजाद एक अति महत्त्वपूर्ण सफलता होगी, लेकिन इससे आगे भी दूसरी कई अहम बातें होंगी, जिन्हें लेकर गंभीर प्रयास करने की जरूरत है। एक बार टीका बन गया तो इसे प्रयोगशाला से लोगों तक पहुंचाने तक इसके सुरक्षित रखरखाव का इंतजाम भी करना होगा। इस टीके के रखरखाव के लिए कम तापमान की जरूरत होगी और यह सुनिश्चित करना कोई मामूली चुनौती नहीं है। सरकार और निजी क्षेत्र की कंपनियां दोनों ही शीत भंडारण क्षमताएं बढ़ाने के लिए काम शुरू कर चुकी हैं।
टीका उद्योग और इस पर नजर रखऩे वाले विशेषज्ञों की राय भारत की शीत भंडारण (कोल्ड स्टोरेज) क्षमताओं को लेकर एक नहीं है। कुछ लोगों का मानना है कि सार्वजनिक टीकाकरण कार्यक्रम का तजुर्बा होने से देश में शीत भंडारण की पुख्ता व्यवस्था मौजूद है तो दूसरे लोगों का कहना है कि दवाएं रखने के लिए पर्याप्त शीत भंडारण क्षमता का अभाव हो सकता है। देश के सुदूर क्षेत्रों में बिजली की समस्या भी एक बड़ी चुनौती है। मोटे अनुमानों के अनुसार दुनिया भर में विकासशील देशों के करीब 3 अरब लोग कोविड-19 टीके से वंचित रह जाएंगे। ये उन जगहों में रहने वाले लोग होंगे जहां बड़े पैमाने पर टीकाकरण कार्यक्रम के लिए तापमान नियंत्रित भंडारण क्षमता अपर्याप्त है।
भारत कहां है खड़ा
सीबीआरई साउथ एशिया के अनुसार वर्ष 2019 में भारत में कुल शीत भंडारण क्षमता करीब 3.7 से 3.9 करोड़ टन थी। दूसरे शब्दों में कहें तो दुनिया के अन्य देशों की तुलना में यहां शीत भंडारण सुविधा कहीं अधिक है। हालांकि समस्या दूसरी है। देश में शीत भंडारण की सुविधा देने वाली इकाइयों में काफी कम संख्या के पास करीब 5,000 टन जितनी भंडारण क्षमता है। उनमें भी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के दिशानिर्देशों के अनुरूप दवा का भंडारण करने की आवश्यकता क्षमता काफी कम इकाइयों के पास है। इनमें भी देश में उपलब्ध ज्यादातर शीत भंडारकों का इस्तेमाल कृषि उत्पाद रखने के लिए होता है। ऐसे में कृषि एवं दवा शीत भंडारण क्षमताओं दोनों का इस्तेमाल करने पर विचार हो रहा है। इसकी वजह यह है कि ज्यादातर टीके 2 से 8 डिग्री तापामन में रखे जाते हैं और कृषि शीत भंडारण सुविधाएं यह तापमान बरकरार रख सकती हैं। हालांकि टीका बनाने वाली कंपनियों का कहना है कि यह सोचना जितना आसान है करना उतना ही मुश्किल है। कंपनियों के अनुसार कृषि एवं दवा शीत भंडारण सुविधाओं का संयुक्त रूप से इस्तेमाल करने से टीका के लिए स्वच्छ एवं साफ वातावरण सुनिश्चित करना आसान नहीं रह जाएगा।
सरकार ने देश की शीत भंडारण क्षमता टटोलने का बड़ा कार्य शुरू कर दिया है। इस बारे में एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘हमें देश में मौजूद ज्यादातर शीत भंडारण सुविधाओं की जानकारी है। सरकार समय समय पर टीके खरीदकर राज्यों को सार्वजनिक टीका कार्यक्रम के लिए भेजती रहती है। फिलहाल हम उपकरणों की मौजूदा हालत की समीक्षा कर रहे हैं और यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि इन्हें दुरुस्त करने या बदलने की जरूरत तो नहीं है। इसके साथ ही इस पूरी कवायद में आने वाले खर्च का भी आकलन किया जा रहा है।’ टीका वितरण योजनाओं पर नजर रखने वाले एक विशेषज्ञ समूह ने जिला स्तर पर शीत भंडारण सुविधाओं की पहचान और जरूरतमंदों तक टीका पहुंचाने के लिए निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों साहित खान-पान पहुंचाने वाली स्विगी और जोमैटो से भी बात कर रहा है। मौजूदा यूआईपी ढांचे के साथ 27,000 से अधिक चालू शीत भंडारण सुविधा केंद्र जुड़े हैं। इनमें करीब 3 प्रतिशत जिला स्तर पर हैं। भारत में शीत भंडारण प्रबंधन के साथ करीब 55,000 लोग जुड़े हैं।
कैसी है तैयारी?
फार्मा कोल्ड चेन उत्पाद की देश की सबसे बड़ी कंपनी ब्लू स्टार लिमिटेड की बाजार में 70 फीसदी हिस्सेदारी है और उसका कहना है कि मांग में तेजी है। ब्लू स्टार के प्रबंध निदेशक बी त्यागराजन कहते हैं, ‘ब्लू स्टार ने मार्च से मेडिकल रेफ्रिजरेशन सिस्टम की मांग में 30 फीसदी उछाल देखी है क्योंकि केंद्र, राज्य और निजी कंपनियों ने क्षमता बढ़ाना शुरू कर दिया है।’ उन्होंने कहा कि यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि इन रेफ्रिजरेशन प्रणालियों की आपूर्ति में कोई कमी न हो और वे जरूरी कच्चे माल का भंडार तैयार कर रहे हैं।
त्यागराजन को लगता है कि भारत में पहले से ही एक मजबूत टीका वितरण प्रणाली है। वह बताते हैं कि विनिर्माण इकाइयों में डिफॉल्ट तरीके से पर्याप्त शीत भंडारण क्षमता है। यहां से टीके सरकारी वितरण शृंखला में जा सकते हैं जिसमें केंद्र सरकार के चिकित्सा केंद्र, राज्य स्तरीय चिकित्सा केंद्र, क्षेत्रीय या जिला स्तरीय केंद्र और अंत में पूरे देश भर के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र शामिल हैं। वह कहते हैं, ‘सरकारी वितरण शृंखला कोल्ड रूम या फ्रीजर रूम, डीप फ्रीजर, आइस लाइन्ड रेफ्रिजरेटर (आईएलआर) से लैस है और सुदूर इलाकों तक टीका पहुंचाने वाले परिवहनकर्ता टीका से 48 घंटे पहले तक उचित तापमान पर रखने में सक्षम हैं।’
ब्लू डार्ट जैसे लॉजिस्टिक्स खिलाड़ी भी अपनी क्षमता का दायरा बढ़ाने की रफ्तार में हैं। ब्लू डार्ट के मुख्य परिचालन अधिकारी और प्रमुख (कारोबार विकास) अतुल कुलकर्णी ने कहा कि उनकी कंपनी महामारी का मुकाबला करने के लिए अपने पहले से मौजूद विशेष तापमान नियंत्रित लॉजिस्टिक्स (टीसीएल) के साथ बुनियादी ढांचे को बढ़ा रही है। कुलकर्णी कहते हैं कि उन्होंने पहले ही क्षमता की जरूरतों के लिए कई तैयारी शुरू कर दी है जिनमें पैकेजिंग सामग्री, डेटा लॉगर्स की उपलब्धता, इंसुलेटेड शिपर्स, कोल्ड रूम में चलना, कूलेंट, नेटवर्क तक पहुंच, लोगों को जुटाना और तकनीकी निवेश भी शामिल है ताकि वृद्धि की
जा सके। ब्लू डार्ट में मुंबई, चेन्नई, हैदराबाद, अहमदाबाद, पुणे, कोलकाता, दिल्ली और बेंगलूरु में फार्मा ग्रेड कंडीशनिंग रूम हैं। कंपनी का कहना है कि ये ब्लू डार्ट हवाईअड्डे के स्टेशनों के करीब हैं जिससे तेजी से वितरण के साथ ही बदलाव का समय कम लगता है। टीके की सोर्सिंग का अधिकांश हिस्सा तीन शहरों, हैदराबाद, पुणे और अहमदाबाद से होने की संभावना है।
थर्मो फिशर जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों की कोल्ड चेन 5 डिग्री सेल्सियस से लेकर-196 डिग्री तक है। थर्मो फिशर साइंटिफिक के भारत और पश्चिम एशिया के प्रबंध निदेशक अमित चोपड़ा कहते हैं, ‘हम नियंत्रित दर पर फ्रीजिंग, रिमोट मॉनिटरिंग और डेटा-लॉगिंग समाधानों के माध्यम से नमूने को सुरक्षा देते हैं जो भंडारण की स्थिति के बारे में वास्तविक जानकारी भी प्रदान करते हैं। इसको लेकर यहां चर्चाएं शुरू हुई हैं।’ चोपड़ा कहते हैं, ‘भारत में हमने अपने उत्पादों और सेवाओं के माध्यम से समर्थन देने के लिए कई राज्य चिकित्सा परिषदों के साथ विचार-विमर्श भी शुरू किया है।’ केंद्र ने तैयारी शुरू कर दी है और राज्यों को टीके से लेकर कोल्ड चेन का प्रबंधन करने वालों, टीका और कोल्ड चेन प्रबंधक, प्रोग्राम प्रबंधक, कोल्ड चेन तकनीक प्रबंधक सहित सभी स्टाफ को प्रशिक्षित करने के लिए कहा गया है।
विशेषज्ञों के बोल
पीडब्ल्यूसी इंडिया के लीडर (खाद्य एवं कृषि) अजय काकरा ने कहा कि टीकाकरण अभियान की योजना को बारीकी से तैयार करना होगा। वह कहते हैं, ‘गाड़ी और ड्राइवरों की उपलब्धता सुनिश्चित करना जरूरी होगा। टीके की मात्रा, गुणवत्ता की जांच और तापमान की निगरानी करने जा रहे लोगों के बारे में भी स्पष्ट होना जरूरी है।’ काकरा कहते हैं कि सरकार को कम से कम 50 फीसदी टीके के प्रबंधन की अपनी क्षमता को तैयार करने के बारे में सोचना चाहिए।
बिजली की उपलब्धता भी चिंता का विषय है। सीबीआरई के अध्यक्ष एवं सीईओ (भारत, दक्षिण पूर्व एशिया, पश्चिम एशिया और अफ्रीका) का मानना है कि बड़ी चुनौती दूरदराज के शहरों में मदद मिलना और बुनियादी ढांचे की कमी है।