facebookmetapixel
Bomb Blast in Delhi: लाल किला के पास खड़ी कार में धमाका, तीन गाड़ियां जलकर खाक; पुलिस हाई अलर्ट परVodafone Idea Q2 results: घाटा कम होकर ₹5,524 करोड़ पर आया, रेवेन्यू 2.4% बढ़ाअमेरिका में ट्रंप के टैरिफ पर सुप्रीम कोर्ट का केस बढ़ा सकता है भारत की चिंता, व्यापार समझौते पर बड़ा खतराबजट-पूर्व बैठक में एक्सपर्ट्स ने कृषि सेक्टर में R&D के लिए ज्यादा धनराशि पर जोर दियाअगर बैंक ने ज्यादा पैसे काट लिए या शिकायत पर जवाब नहीं दिया, ऐसे घर बैठे करें फ्री में कंप्लेंटBihar Election 2025: दूसरे चरण में 3.7 करोड़ मतदाता 122 सीटों पर करेंगे 1,302 उम्मीदवारों की किस्मत का फैसलाBandhan MF ने उतारा नया हेल्थकेयर फंड, ₹100 की SIP से निवेश शुरू; किसे लगाना चाहिए पैसा?Explained: AQI 50 पर सांस लेने से आपके फेफड़ों और शरीर को कैसा महसूस होता है?अगर इंश्योरेंस क्लेम हो गया रिजेक्ट तो घबराएं नहीं! अब IRDAI का ‘बीमा भरोसा पोर्टल’ दिलाएगा समाधानइन 11 IPOs में Mutual Funds ने झोंके ₹8,752 करोड़; स्मॉल-कैप की ग्रोथ पोटेंशियल पर भरोसा बरकरार

गुणवत्ता सुधार: नीति आयोग समिति ने क्यूसीओ व्यवस्था पर खींची लगाम

एक उच्चस्तरीय समिति ने कथित तौर पर सुझाव दिया है कि बीआईएस अधिनियम के अंतर्गत जारी 200 गुणवत्ता नियंत्रण आदेशों (क्यूसीओ) को खत्म कर दिया जाए या उन्हें स्थगित कर दिया जाए

Last Updated- November 09, 2025 | 10:54 PM IST
Quality check

नीति आयोग के सदस्य राजीव गौबा की अध्यक्षता वाली एक उच्चस्तरीय समिति ने कथित तौर पर सुझाव दिया है कि भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) अधिनियम के अंतर्गत जारी 200 गुणवत्ता नियंत्रण आदेशों (क्यूसीओ) को खत्म कर दिया जाए या उन्हें स्थगित कर दिया जाए। ये आदेश कम गुणवत्ता वाले आयात को रोकने से संबंधित हैं और उपभोक्ता सुरक्षा सुनिश्चित करना चाहते हैं किंतु ये अपने मूल उद्देश्य से बहुत आगे निकल आए थे।

इनके दायरे में आने वाले उत्पादों की संख्या एक दशक पहले के 100 से बढ़कर आज करीब 800 हो चुकी है और तैयार वस्तुओं से लेकर अब इसमें कच्चा माल और मध्यवर्ती वस्तुएं तक शामिल हो चुकी हैं। इस विस्तार की कीमत भी चुकानी पड़ी है। प्रमाणन में देरी, बढ़ता अनुपालन बोझ और आपूर्ति श्रृंखला संबंधी गतिरोधों के कारण उत्पादन में धीमापन आया है।

खासतौर पर सूक्ष्म, लघु और मझोले उपक्रमों के साथ ऐसा हुआ है। जो पहल गुणवत्ता में सुधार के लिए शुरू हुई थी, कई मामलों में वह अफसरशाही की अनाधिकार चेष्टा में तब्दील हो गई है। इससे आयात को लेकर कई गतिरोध उत्पन्न हुए हैं। बीआईएस के अंतर्गत प्रमाणन की प्रक्रिया में अक्सर महीनों का समय लगता है। ऐसे में छोटी कंपनियां जो पहले ही कम मार्जिन पर काम कर रही हों वहां ऐसे कदम वृद्धि और नवाचार को प्रभावित करते हैं।

प्रमाण बताते हैं कि इसकी लागत लाभ पर भारी पड़ती है। सेंटर फॉर सोशल ऐंड इकनॉमिक प्रोग्रेस (सीएसईपी) द्वारा 2000 से 2023 तक के व्यापारिक आंकड़ों का इस्तेमाल करके जारी की गई एक रिपोर्ट में पाया गया कि समय के साथ क्यूसीओ संबद्ध वस्तुओं का आयात करीब 24 फीसदी कम हो गया जबकि निर्यात में कोई खास बदलाव नहीं आया। यह व्यवस्था संरक्षणवादी दीवार की तरह अधिक काम करती है। इसने कुछ कम गुणवत्ता वाले निर्यात को भले रोका हो लेकिन इसने अहम मध्यवर्ती वस्तुओं और पूंजीगत वस्तुओं तक पहुंच को भी रोका है।

इसका विभिन्न क्षेत्रों पर काफी असर पड़ा। धातु, रसायन और कपड़ा जैसे क्षेत्र जो आयातित कच्चे माल पर बहुत अधिक निर्भर करते हैं और श्रम की अधिकता वाले हैं, उन्हें विसंगतिपूर्ण ढंग से उथलपुथल का सामना करना पड़ा। इससे यह भी स्पष्ट हुआ कि एक ही तरीका सबके लिए कारगर नहीं रहता है। समिति का प्रस्ताव सही समय पर आया है। भारत को अधिक संतुलित ढांचे की आवश्यकता है जो उपभोक्ता संरक्षण और औद्योगिक वृद्धि में भेद करता हो।

सुधार का ध्यान इस बात पर भी होना चाहिए कि मानकों को लागू कैसे किया जाता है। भारत में अब भी प्रमाणित परीक्षण और प्रमाणन के लिए पर्याप्त स्वीकृत ढांचा नहीं है। कई क्यूसीओ ऐसे समय में लागू किए गए जब प्रयोगशालाओं की क्षमता पर्याप्त नहीं थी, जिससे लंबे इंतजार और अतिरिक्त लागत जैसी समस्याएं उत्पन्न हुईं। यदि परीक्षण सुविधाओं का विस्तार, बीआईएस अनुमोदनों का विकेंद्रीकरण, और विश्वसनीय तृतीय-पक्ष प्रमाणन की मान्यता दी जाए, तो यह प्रणाली अधिक कुशल और पारदर्शी बन सकती है।

हितधारकों की सीमित भागीदारी एक और समस्या है। क्यूसीओ कार्यान्वयन पर चेज एडवाइजर्स (एक सार्वजनिक नीति परामर्श फर्म) द्वारा किए गए हालिया सर्वेक्षण में पाया गया कि हालांकि अधिकांश कंपनियों से प्रारंभिक अधिसूचना से पहले परामर्श किया गया था, लेकिन प्रारूप के बाद के चरणों में उनकी सार्थक भागीदारी बहुत कम रही। कई कंपनियों को परिवर्तन के लिए पर्याप्त समय भी नहीं मिला।

इसलिए बीआईएस, उद्योग संघों और निर्यातकों के बीच नियमित और संरचित परामर्श अनिवार्य है। एक केंद्रीकृत डिजिटल प्लेटफॉर्म जो अधिसूचनाओं, कोड मैपिंग, और विभिन्न मंत्रालयों की अनुपालन प्रक्रियाओं को एक जगह समाहित करे, भ्रम को कम करेगा और पारदर्शिता को बढ़ावा देगा।

घरेलू मानकों को अंतरराष्ट्रीय मानकों जैसे अंतरराष्ट्रीय मानकीकरण संगठन (आईएसओ) और अंतरराष्ट्रीय इलेक्ट्रो- टेक्निकल आयोग (आईईसी) द्वारा निर्धारित मानकों के अनुरूप बनाना उतना ही आवश्यक है। अंतरराष्ट्रीय मानदंडों से विचलन भारत की निर्यात प्रतिस्पर्धा को सीमित करता है और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में भागीदारी को कमजोर करता है।

क्यूसीओ ढांचे के पुनर्गठन का अर्थ मानकों को कम करना नहीं है, बल्कि उन्हें वहीं लागू करना है जहां वास्तव में आवश्यकता हो, आयात को रोकने के उद्देश्य से नहीं। अगर मानकों को सरल और व्यवस्थित किया जाए और उनका विश्वसनीय क्रियान्वयन सुनिश्चित हो, तो भारत की गुणवत्ता प्रणाली को प्रतिस्पर्धात्मकता और अंतरराष्ट्रीय विनिर्माण विश्वसनीयता का एक सशक्त वाहक बनाया जा सकता है।

First Published - November 9, 2025 | 10:12 PM IST

संबंधित पोस्ट