केंद्र ने नीति आयोग से टोल दरों के पुराने मानदंडों को फिर से लागू करने के बजाए नए सिरे से अध्ययन करने के लिए कहा है। वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया कि यह 17 वर्षों के बाद राष्ट्रीय राजमार्ग (एनएच) के टोल मसौदे को संशोधित करने के प्रयास का हिस्सा है। नीति आयोग केंद्रीय नीति का थिंक टैंक है।
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय ने अगस्त में संसद की लोक लेखा समिति (पीएसी) को सूचित किया था कि वह एक मसौदे के संशोधन पर विचार कर रहा है। अधिकारी ने बताया, ‘मंत्रालय ने नीति आयोग से उन सिद्धांतों पर नए सिरे से शोध करने के लिए कहा है जो बेस रेट का आधार बनते हैं। नीति आयोग ने पहले ही भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली को यह अध्ययन सौंपा है और इस संस्थान ने तीन महीने का समय मांगा है। शोध के संदर्भ में एजेंसी को पहले मूल सिद्धांतों को तय करने पर ध्यान देने का अधिकार है।’
पहली टोल सड़कें 1997 में बनीं। उन टोलों के लिए बेस रेट तीन कारकों पर तय किए गए थे – वाहन संचालन लागत, वाहन क्षति कारक और भुगतान करने की इच्छा। अधिकारी ने बताया, ‘वर्ष 2008 के संशोधन में बेस रेट के सिद्धांतों पर कोई नया शोध नहीं किया गया और केवल शुरुआती बेस रेट पर सूत्र के माध्यम से इंडेक्सिंग का प्रयोग किया गया। इसने प्रत्येक वर्ष बेस रेट को संशोधित करने का तरीका दिया।’ वाहन संचालन लागत का आकलन 1997 में 19 90 के दशक की शुरुआत की विश्व बैंक की रिपोर्ट के आधार पर किया गया था। इसी तरह वाहन क्षति कारक का आकलन इंडियन रोड्स कांग्रेस के तकनीकी निर्देशों के आधार पर किया गया था और भुगतान करने की इच्छा के लिए सर्वेक्षण किया गया था।
नीति आयोग हालिया कवायद में इन सभी सिद्धांतों पर नए सिरे से विचार करेगी और एक तीसरा पक्ष टोल का भुगतान करने के लिए लोगों की इच्छा पर नया सर्वेक्षण करेगा। यह इस बात पर भी विचार करेगा कि क्या टोल निर्धारण मसौदे को समायोजित करने के लिए और अधिक सिद्धांतों की आवश्यकता है। मंत्रालय ने समिति को अगस्त में बताया था कि अध्ययन में मुद्रास्फीति इंडेक्सिंग और रियायत संरचनाएं भी शामिल होंगी।
पीएसी ने अगस्त में मंत्रालय को बताया था, ‘समिति सिफारिश करती है कि मंत्रालय प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थानों के सहयोग से नीति आयोग के माध्यम से शुरू किए जा रहे प्रस्तावित अध्ययन को आगे बढ़ाए और यह सुनिश्चित करे कि यह समयबद्ध और परिणामोन्मुखी हो।’विशेषज्ञ ने बताया कि वाहन संचालन लागत और क्षति कारक में कमी आने की संभावना है। हालांकि एक बार अध्ययन सामने आने के बाद मंत्रालय को मौजूदा रियायतदारों के लिए उपयुक्त और अच्छी तरह से परामर्श करके समझौता तैयार करना होगा। दरअसल, वर्ष 2008 की तुलना में निजी ऑपरेटरों द्वारा संचालित प्लाजा की बड़ी संख्या के साथ कई टोल व्यवस्थाएं होंगी।