सूक्ष्म, लघु और मध्य आकार वाली दवा कंपनियों को संशोधित अनुसूची ‘एम’ के तहत मानदंडों का पालन न करने पर नियामकीय कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है। केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने राज्यों को दवा विनिर्माण इकाइयों के निरीक्षण की योजना बनाने का निर्देश दिया है। उद्योग के विशेषज्ञों ने यह जानकारी दी है।
यह कदम 250 करोड़ रुपये तक के सालाना कारोबार वाली एमएसएमई दवा इकाइयों को संशोधित अनुसूची एम मानदंडों का पालन करने के लिए दी गई एक वर्ष की छूट की अवधि खत्म होने का संकेत है।
संशोधित अनुसूची एम दवा विनिर्माताओं के लिए गुणवत्ता मानकों और अच्छी विनिर्माण कार्यप्रणाली (जीएमपी) को निर्धारित करती है। इसे केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने दिसंबर 2023 में अधिसूचित किया था और यह 1 जनवरी, 2025 से अमल में आई।
एमएसएमई के लिए अनुपालन की समय सीमा को बाद में 31 दिसंबर, 2025 तक बढ़ा दिया गया था। छोटी कंपनियों द्वारा उन्नत जीएमपी मानकों को पूरा करने में वित्तीय बाधाओं का हवाला देते हुए पेश की गई रिपोर्ट के बाद ऐसा गया था। यह विस्तार इस शर्त पर था कि कंपनियां अपने संयंत्रों के उन्नयन के लिए सुधार और निवारक कार्रवाई (सीएपीए) योजनाओं के साथ केंद्रीय लाइसेंसिंग प्राधिकरण के पास आवेदन करेंगी।
भारत में करीब 10,500 दवा निर्माण इकाइयां हैं। इनमें से लगभग 8,500 एमएसएमई श्रेणी में आती हैं। वर्तमान में इनमें से लगभग 2,000 के पास विश्व स्वास्थ्य संगठन-जीएमपी का प्रमाण-पत्र है।