मेरा पिछला स्तंभ इंटरनेट के अंतरराष्ट्रीय संचालन पर केंद्रित था। इस बार मैं भविष्य के सूचना प्रौद्योगिकी विकास को लेकर भारत की राष्ट्रीय रणनीति की बात करूंगा। बीते साढ़े तीन दशक से अधिक समय में देश में सबसे महत्त्वपूर्ण प्रगति नवीन सूचना और संचार सेवाओं की उपलब्धता में हुई है। ये दोनों विषय आपस में गहराई से जुड़े हुए हैं। इंटरनेट संबंधी संचार का प्रसार संचार प्रणाली के तीव्र बदलाव से गहराई से संबद्ध है। पहले मोबाइल फोन की सुलभता और उपयोगिता में इजाफे और फिर स्मार्टफोन के आगमन के साथ ऐसा हुआ।
सूचना और संचार सेवाओं में तेज विकास एक ऐसा क्षेत्र है जहां भारत का प्रदर्शन बेहतर रहा है। यह सेल्युलर मोबाइल फोन यूजर्स के विस्तार से नजर आता है जो 2025 के आरंभ तक 1.12 अरब हो गए। इनमें से 70 फीसदी लोग स्मार्टफोन इस्तेमाल कर रहे हैं। जहां तक इंटरनेट की बात है, भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण के मुताबिक जून 2025 में देश में करीब एक अरब इंटरनेट उपभोक्ता थे। देश में सूचना और संचार सेवाओं में व्यापक विस्तार में विदेशी कंपनियां भी भारत में आईं और मोबाइल फोन एवं इंटरनेट सेवाएं देना आरंभ किया। इसमें संचार सेवा अधोसंरचना में सार्वजनिक व्यय भी शामिल था।
देश के सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग में भी उछाल आई। यह क्षेत्र हार्डवेयर निर्माण की तुलना में सूचना सेवाओं की उपलब्धता पर अधिक केंद्रित था। वर्ष 1990 में भारत में सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग का कारोबार करीब 10 अरब डॉलर था जो अब बढ़कर 250 अरब डॉलर तक पहुंच गया है। यह उद्योग लगभग 45 लाख लोगों को रोजगार देता है जो दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा आंकड़ा है। भारत में सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग का वास्तविक विस्तार 20वीं सदी के आखिर में हुआ। उस समय सॉफ्टवेयर प्रोग्राम्स में वर्ष के लिए दो अंकों वाली कमांड का प्रयोग होता था। ऐसे में सदी के अंत में इनमें बदलाव की आवश्यकता थी। यह एक मुश्किल काम था जिसे भारत की सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियां कर सकती थीं। इसके बाद हुई शानदार वृद्धि सूचना प्रौद्योगिकी में प्रशिक्षित विशेषज्ञों की पर्याप्त उपलब्धता का परिणाम है।
सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी और निर्यात में सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग का अहम योगदान मूलत: उन कामगारों की उपलब्धता का परिणाम है जिनके पास आवश्यक ज्ञान और कौशल है। यह बात भी ध्यान देने लायक है कि अधिकांश उद्यमिता नए उद्यमियों से आई न कि स्थापित समूहों से। टाटा समूह की टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज जरूर अपवाद है। इंटरनेट संबद्ध सेवाओं की उपलब्धता और व्यापक पहुंच का उपयोग करने वाले नए उद्यमियों की भी बाढ़ आई है। सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग की वृद्धि और निर्यात में तेजी से हुई बढ़ोतरी से जो संदेश निकलता है वह यह है कि भारत में जीडीपी और निर्यात की तीव्र वृद्धि, जो आपस में गहराई से जुड़ी हुई हैं, हमारे कुशल कार्यबल और नए उद्यमियों की उच्च संभावनाओं पर निर्भर करती है। यही पिछले 35 वर्षों में हमारे विकास के सबसे सफल क्षेत्र से प्राप्त प्रमुख नीतिगत सबक है। सूचना प्रौद्योगिकी और संचार सेवाओं के तेज विकास ने डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ाने में अहम योगदान दिया है।
ई-कॉमर्स का भी तेज विकास हुआ है। वित्त वर्ष 24 में इसका कुल टर्नओवर 10 लाख करोड़ रुपये था और 2030 तक इसके तीन गुना हो जाने की उम्मीद है। इसने छोटे और मझोले उपक्रमों के लिए नई उम्मीद पैदा की है। इसमें डिजिटल भुगतान व्यवस्था, यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस का भी योगदान है जो अब हर महीने 20 अरब लेनदेन संभालता है और करीब 50 करोड़ ग्राहकों को 6.5 करोड़ कारोबारियों से जोड़ता है। इसका बैंकिंग परिचालन की प्रकृति पर गहरा प्रभाव होता है। ई-कॉमर्स को आधार प्रमाणन और जनधन योजना ने भी मदद पहुंचाई है।
जनधन योजना की बदौलत वर्ष2024 में 89 फीसदी वयस्क बैंक खाताधारक हो गए। ई-कॉमर्स का रोजगार पर प्रभाव तथाकथित ‘गिग अर्थव्यवस्था’ में दिखाई देता है, जिसमें अस्थायी कार्य अनुबंध शामिल होते हैं। उदाहरण के लिए डिलीवरी सेवा प्रदाताओं के लिए, या किसी प्रमुख डिजिटल सेवा प्रदाता के अंतर्गत फ्रीलांस कार्य, जैसे उबर या ओला के तहत टैक्सी चालक।
शहरी भारत में व्यापक सूचना सेवाओं की पहुंच के विकास, व्यापक दूरसंचार और रोजमर्रा के कारोबारों को डिजिटल अर्थव्यवस्था आकार दे रही है। यह लोगों के जीवन में सबसे बड़ा बदलाव है। नई सूचना अर्थव्यवस्था के लिए आगे का रास्ता क्या है? वर्तमान में हमारे पास सूचना प्रौद्योगिकी में एक बड़ा विकास आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के रूप में है, जिसमें 19वीं सदी में बिजली शक्ति के आगमन जितना ही परिवर्तनकारी होने की क्षमता है।
खासतौर पर उस रूप में जो केवल डेटा विश्लेषण और सारांश से आगे बढ़कर संभावित कार्य विकल्प उत्पन्न करता है। माना जाता है कि यह उन व्यक्तियों के रोजगार को प्रतिस्थापित करेगा जिनका कार्य उत्पादों और सेवाओं के लिए सूचना को संसाधित करना है। उदाहरण के लिए, रेडियोलॉजी में आर्टिफिशल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल मानव की तुलना में ली गई छवियों में असामान्यताओं का आकलन करने में कहीं अधिक प्रभावी होगा। हालांकि विशिष्ट उद्देश्यों के लिए सूचना के उपयोग पर इसका प्रभाव अपेक्षाकृत कम होगा।
यह संभव है कि आर्टिफिशल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल कुशल श्रमिकों की मांग को कम कर सकता है। बहरहाल, फिलहाल एआई का इस्तेमाल मोटे तौर पर सूचना तक पहुंच के लिए है। यहां तक कि रेडियोलॉजी में भी जहां अनुमान था कि विश्लेषण करने वालों की जरूरत कम होगी, प्रमाण बताते हैं कि वास्तव में उनके प्रदर्शन में सुधार ही नजर आ रहा है। इतना ही नहीं आर्टिफिशल इंटेलिजेंस कई बड़े भाषाई मॉडल और व्यापक डेटा स्रोतों पर निर्भर होता है। इनका प्रभावी इस्तेमाल करने के लिए संगठित डेटा की जरूरत है और देश का आईटी उद्योग वह मुहैया करा सकता है।
सरकार ने आर्टिफिशल इंटेलिजेंस को लेकर जो महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम तैयार किया है वह भी कामगारों की विशेषज्ञता में मदद करेगा। मेरा मानना है कि सूचना प्रौद्योगिकी में दक्ष भारतीय कामगारों की क्षमता इतनी मजबूत है कि इससे अधिक विदेशी कंपनियां यहां अपने क्षमता केंद्र स्थापित करने की ओर अग्रसर होंगी। हाल ही में इसका एक उदाहरण गूगल समूह का भारत में एक प्रमुख एआई केंद्र स्थापित करने का निर्णय है। अमेरिका में तकनीकी कामगारों के प्रवासन के खिलाफ डॉनल्ड ट्रंप की नीतियां वहां की एआई आधारित कंपनियों द्वारा आउटसोर्सिंग को और तेज करेंगी, जिनमें से कई के प्रमुख कार्यकारी अधिकारी भारतीय मूल के हैं।
हमारी लोक नीति में भी यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि इन्फोटेक में हमारी ताकत केवल कुशल कामगारों की उपलब्धता के मामले में नहीं है बल्कि एआई जैसे उभरते क्षेत्रों में मॉडल और प्रोग्राम विकास में भी है। शोध एवं विकास नवाचार कोष की हालिया रूपरेखा में एआई को प्राथमिक क्षेत्र के रूप में शामिल किया गया है। इसका उद्देश्य ‘उच्च जोखिम, उच्च प्रभाव वाले परियोजनाओं’ पर केंद्रित होना है, जिसका अर्थ संभवतः स्टार्टअप्स को सहारा देना होगा।
यह ‘रचनात्मक विनाश’ को प्रोत्साहित करने का एक वांछनीय तरीका है, जो नवाचार के लिए आवश्यक है। यह कुछ स्थापित क्षेत्रों में उथल-पुथल पैदा करेगा, लेकिन नए क्षेत्रों का भी निर्माण होगा और इसके लिए अलग प्रकार के नीतिगत सहयोग की आवश्यकता होगी। इसलिए, हमारी सूचना प्रौद्योगिकी रणनीति का अगला कदम रोजगार और निर्यात वृद्धि से आगे बढ़कर नवाचार की ओर होना चाहिए। तभी हम अमेरिका और चीन का मुकाबला कर पाएंगे।