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बैंकों की कमाई बढ़ी, लेकिन चुनौतियां अब भी बरकरार

एक समूह के रूप में, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने निजी बैंकों की तुलना में ऋण (एडवांस) और जमा, दोनों में बेहतर वृद्धि दिखाई है। क्या वे इस रफ्तार को बनाए रख पाएंगे?

Last Updated- November 27, 2025 | 9:54 PM IST
Banks

भारतीय बैंकों के लिए एक और अच्छी तिमाही रही जिसमें ऋण परिसंपत्तियों की गुणवत्ता उत्कृष्ट बनी हुई है। हर बैंक का शुद्ध लाभ भले ही आकर्षक न हो-कुछ बैंकों ने तो शुद्ध लाभ में गिरावट भी दर्ज की है- लेकिन पहली बार सूचीबद्ध निजी और सरकारी बैंकों (पीएसबी) का सामूहिक शुद्ध लाभ 2025-26 की सितंबर तिमाही में 1.5 लाख करोड़ रुपये का आंकड़ा पार कर गया। इसमें सालाना 4.4 फीसदी की वृद्धि हुई। जून तिमाही की तुलना में सितंबर तिमाही में इन बैंकों के समूह का शुद्ध लाभ 3.98 फीसदी बढ़ा।

दो पीएसबी को छोड़कर, जिन बैंकों ने सालाना शुद्ध लाभ में गिरावट दर्ज की है (कुछ मामलों में तिमाही आधार पर भी) वे सभी निजी क्षेत्र के हैं। शुद्ध लाभ में गिरावट की मात्रा और उसके कारण अलग-अलग हैं, संकटग्रस्त क्षेत्रों के लिए ज्यादा प्रावधान से लेकर धीमी वृद्धि या आय में गिरावट तथा ब्याज आय और शुल्क व राजकोषीय लाभ समेत अन्य आय में गिरावट। केवल इंडसइंड बैंक ने इस तिमाही में घाटा दर्ज किया।

भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) 20,160 करोड़ रुपये के शुद्ध लाभ के साथ सूची में शीर्ष पर रहा, उसके बाद एचडीएफसी बैंक (18,641 करोड़ रुपये), आईसीआईसीआई बैंक (12,359 करोड़ रुपये) और ऐक्सिस बैंक (5,090 करोड़ रुपये) का स्थान रहा। इन बैंकों ने सितंबर तिमाही में 5,000 करोड़ रुपये से अधिक का शुद्ध लाभ अर्जित करने वाली चौकड़ी बनाई। चार पीएसबी-पंजाब नैशनल बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा, केनरा बैंक और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया-ने 4,000 करोड़ रुपये से अधिक का शुद्ध लाभ दर्ज किया। एक पीएसबी(इंडियन बैंक) और एक निजी बैंक (कोटक महिंद्रा बैंक) ने 3,000 करोड़ रुपये से अधिक का शुद्ध लाभ अर्जित किया।

उद्योग के लिए शुद्ध लाभ में वृद्धि तो हुई, लेकिन सालाना और तिमाही परिचालन लाभ में गिरावट आई। हालांकि, समूह के रूप में निजी बैंकों ने सितंबर तिमाही में पिछले वर्ष की इसी तिमाही की तुलना में परिचालन लाभ में मामूली वृद्धि दर्ज की, लेकिन जून तिमाही की तुलना में उनके परिचालन लाभ में भी गिरावट आई। समूह के रूप में पीएसबी के परिचालन लाभ में सालाना और तिमाही दोनों ही गिरावट देखी गई। सवाल उठता है कि उनका परिचालन लाभ क्यों गिरा और इसके बावजूद शुद्ध लाभ कैसे बढ़ गया?

उद्योग की शुद्ध ब्याज आय (एनआईआई) में मामूली वृद्धि ही हुई और अन्य आय में भी कोई खास वृद्धि नहीं हुई है। इसीलिए परिचालन लाभ में गिरावट आई है। आय में धीमी वृद्धि के बावजूद कम प्रोविजनिंग यानी प्रावधान के कारण अधिकांश बैंकों का शुद्ध लाभ बढ़ा है।

एनआईआई में सालाना लगभग 2.5 फीसदी और तिमाही 1.5 फीसदी की वृद्धि हुई। कई पीएसबी और निजी बैंकों के एनआईआई में गिरावट दर्ज की गई। बड़े बैंकों में आईसीआईसीआई बैंक ने एनआईआई में 7.39 फीसदी की वृद्धि दर्ज की। एसबीआई, एचडीएफसी बैंक और ऐक्सिस बैंक की एनआईआई वृद्धि दर 5 फीसदी से कम रही।

अन्य आय की बात करें तो उद्योग ने सालाना 4.7 फीसदी की वृद्धि दर्ज की, लेकिन तिमाही आधार पर लगभग 13.5 फीसदी की गिरावट दर्ज की। एसबीआई की अन्य आय पिछले साल की सितंबर तिमाही के स्तर पर ही रही, जबकि 12 में से सात सरकारी बैंकों में गिरावट दर्ज की गई। निजी बैंकों में एचडीएफसी बैंक की अन्य आय में लगभग 25 फीसदी की वृद्धि हुई।

कुल मिलाकर, सालाना प्रावधान में सिर्फ 1.47फीसदी की वृद्धि हुई, तिमाही आधार पर इसमें 31 फीसदी की गिरावट आई। एसबीआई का प्रावधान सबसे ज्यादा 5,400 करोड़ रुपये रहा, उसके बाद ऐक्सिस बैंक (3,547 करोड़ रुपये), एचडीएफसी बैंक (3,501 करोड़ रुपये), इंडसइंड बैंक (2,622 करोड़ रुपये) और केनरा बैंक (2,354 करोड़ रुपये) का स्थान रहा।

उद्योग मामूली प्रावधान कर सकता है क्योंकि फंसे परिसंपत्तियों में कोई वृद्धि नहीं हुई है। उद्योग की सकल गैर-निष्पादित परिसंपत्तियां (एनपीए) 3.99 लाख करोड़ रुपये पर आ गईं, जो एक साल पहले की तिमाही (4.49 लाख करोड़ रुपये) से 11 फीसदी से अधिक कम है। जून तिमाही में सकल एनपीए 4.17 लाख करोड़ रुपये था। शुद्ध एनपीए सालाना 9.9 फीसदी घटकर 87,384 करोड़ रुपये रह गया।

साढ़े सात साल पहले मार्च 2018 में, सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों का सकल एनपीए लगभग 10.36लाख करोड़ रुपये के शिखर पर पहुंच गया था। उस समय, प्रावधान के बाद, उद्योग का शुद्ध एनपीए लगभग 5.2 लाख करोड़ रुपये था।

बैंक ऑफ महाराष्ट्र को छोड़कर, सभी सरकारी बैंकों ने सितंबर तिमाही में सकल एनपीए में सालाना गिरावट दर्ज की। निजी बैंकों ने मिली-जुली तस्वीर पेश की, कुछ बैंकों के सकल और शुद्ध एनपीए दोनों में वृद्धि देखी गई।

प्रतिशत के लिहाज से, ज्यादातर बैंकों ने सितंबर तिमाही में सकल और शुद्ध एनपीए, दोनों में कमी की। सभी 12 सरकारी बैंकों का शुद्ध एनपीए 1 फीसदी से कम रहा। निजी बैंकों में, केवल चार बैंकों का शुद्ध एनपीए 1 फीसदी से अधिक रहा, जिनमें से अधिकतम 1.37 फीसदी रहा। कुल मिलाकर, 31 सूचीबद्ध यूनिवर्सल बैंकों में से 27 का शुद्ध एनपीए 1 फीसदी से कम था। उनमें से 16 बैंकों का शुद्ध एनपीए आधा फीसदी से भी कम था।

एसबीआई, एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक और ऐक्सिस बैंक जैसे बड़े बैंक भी इसी समूह में शामिल थे। सरकारी बैंकों में, इंडियन बैंक का शुद्ध एनपीए सबसे कम 0.16 फीसदी था। निजी बैंकों में आईडीबीआई बैंक का शुद्ध एनपीए सबसे कम 0.21 फीसदी था।

सकल एनपीए के मामले में बंधन बैंक 5.02 फीसदी के साथ सूची में सबसे ऊपर रहा। तीन पीएसबी बैंकों (पंजाब नैशनल बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया) और इतने ही निजी बैंकों (इंडसइंड बैंक, धनलक्ष्मी बैंक और जम्मू ऐंड कश्मीर बैंक) का सकल एनपीए 3 फीसदी से अधिक था। एसबीआई, एचडीएफसी बैंक, आईसीआईसीआई बैंक और ऐक्सिस बैंक कुछ अन्य बैंक थे जिनका सकल एनपीए 2 फीसदी से कम था।

यह परिसंपत्तियों की गुणवत्ता का मामला नहीं है। इस समय, बैंकिंग उद्योग के सामने सबसे बड़ी चुनौती देनदारियों का पक्ष है। उद्योग के कम लागत वाले चालू और बचत खाते (कासा) हर तिमाही में घट रहे हैं और इसके साथ ही, शुद्ध ब्याज मार्जिन (एनआईएम) कम होता जा रहा है। इससे एनआईआई कम हो रहा है।

कुछ अपवादों को छोड़कर, ज्यादातर बैंकों के कासा अनुपात में सितंबर तिमाही में गिरावट दर्ज की गई और उनका एनआईएम भी दबाव में रहा। येस बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र और आईडीएफसी फर्स्ट बैंक इसके अपवाद हैं।

तीन सरकारी बैंकों (इंडियन ओवरसीज बैंक, सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया और बैंक ऑफ महाराष्ट्र) और पांच निजी बैंकों (आईडीबीआई बैंक, कोटक महिंद्रा बैंक लिमिटेड, आईसीआईसीआई बैंक और जम्मू ऐंड कश्मीर बैंक, आईडीएफसी फर्स्ट बैंक) का कासा 40 फीसदी से अधिक था। एसबीआई का कासा सालाना 40.03 फीसदी से घटकर 39.63 फीसदी और एचडीएफसी बैंक का 35.3 फीसदी से घटकर 33.9 फीसदी रह गया। तिमाही आधार पर एचडीएफसी बैंक समान कासा प्रतिशत बनाए रखने में कामयाब रहा, जबकि एसबीआई ने इसमें थोड़ा सुधार किया।

अंत में, एक समूह के रूप में, पीएसबी ने अपने निजी समकक्षों की तुलना में अग्रिम और जमा दोनों में बेहतर वृद्धि दिखाई। क्या वे इस गति को जारी रख पाएंगे और अपनी बाजार हिस्सेदारी बढ़ा पाएंगे, जिसे वे खो रहे हैं? हर किसी की इस पर उत्सुकता से नजर होगी, भले ही वित्त मंत्रालय तेजी से विस्तारित अर्थव्यवस्था की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए पीएसबी को समेकित करने और बड़ा बनाने की बात कर रहा हो।


(लेखक जन स्मॉल फाइनैंस बैंक के वरिष्ठ सलाहकार हैं)

First Published - November 27, 2025 | 9:48 PM IST

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