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टेस्ला और ओपनएआई विवाद: भारत के लिए गवर्नेंस के दो बड़े सबक

टेस्ला और ओपनएआई के हालिया विवाद दिखाते हैं कि तकनीकी कंपनियों में बेहतर गवर्नेंस और पारदर्शिता ज़रूरी है। भारत इनसे सीख लेकर नीति ढांचा मजबूत कर सकता है

Last Updated- November 26, 2025 | 9:51 PM IST
Elon Musk vs Sam Altman

इस महीने की शुरुआत में टेस्ला के शेयरधारकों ने ईलॉन मस्क को 1 लाख करोड़ डॉलर रुपये का सालाना शेयर पैकेज दिए जाने के प्रस्ताव पर मुहर लगा दी। मस्क के लिए टेस्ला की तरफ से प्रस्तावित यह भारी भरकम पैकेज महज सुर्खियां बटोरने वाला कोई घटनाक्रम नहीं हैं। यह कई ऐसे सवाल खड़े करता है जिन पर निदेशक मंडल (बोर्ड) और निवेशकों को ध्यान देने की आवश्यकता है।

यह कोई वेतन नहीं है बल्कि प्रदर्शन से जुड़ा शेयर पैकेज प्रावधान है जो तभी प्रभाव में आएगा जब टेस्ला कई लाख करोड़ डॉलर के बाजार-पूंजीकरण लक्ष्यों से लेकर रोबोटैक्सी, आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) और ह्यूमनॉइड रोबोटिक्स में सफलता सहित अपने विस्तारित लक्ष्यों को पूरा करेगी।

अनुमानों के अनुरूप कंपनी के निवेशक इस पर बंटे हुए हैं। इस प्रस्ताव का समर्थन करने वाले लोग इसे टेस्ला की महत्त्वाकांक्षाओं को मस्क को प्रोत्साहित करने से जुड़ा मानते हैं। उनका तर्क है कि केवल इस तरह का प्रदर्शन संबंधित ढांचा ही उनकी अथक प्रतिबद्धता एवं उनका ध्यान (और दुस्साहस भी) सुनिश्चित कर सकता है। 15 फीसदी स्वामित्व के साथ मस्क टेस्ला के सबसे बड़े शेयरधारक हैं। इसे देखते हुए कंपनी और मस्क के बीच इस मेल का तर्क कमजोर पड़ जाता है।

इस प्रस्ताव का असर कंपनी संचालन पर भी हो सकता है। पहली बात, क्या किसी कंपनी को अपनी कारोबारी वृद्धि के लिए किसी एक व्यक्ति पर इतना बड़ा दांव खेलना चाहिए चाहे वह कितना भी दूरदर्शी क्यों न हो? दूसरी बात, टेस्ला के बोर्ड को मस्क के साथ अपनी स्पष्ट निकटता के लिए आलोचना का सामना करना पड़ता है जिससे निष्पक्ष निरीक्षण को लेकर चिंता बढ़ रही है। यह मुद्दा तब उठाया गया था जब डेलावेयर कोर्ट ऑफ चांसरी ने उनके 55.8 अरब डॉलर के वेतन पैकेज को रद्द कर दिया था। इस वेतन पैकेज को जरूरत से अधिक भारी भरकम करार दिया गया था। तीसरी बात, मिसाल भी मायने रखती है। यह अवॉर्ड मुख्य कार्यकारी अधिकारी के वेतन को लेकर नए मानक स्थापित करता है जिससे पूरे कार्य बल में आनुपातिकता और हिस्सेदारी (इक्विटी) कमजोर होती है।

आखिरकार, यह शेयर पैकेज बोर्ड और निवेशकों को यह पूछने के लिए विवश कर देता है कि ‘प्रदर्शन आधारित वेतन’ अपने आप में संचालन से जुड़े जोखिम पैदा होने की नौबत आने से ठीक पहले किस सीमा तक जा सकता है।

ओपनएआई का मुनाफे की तरफ झुकाव

भारत में टाटा ट्रस्ट्स को लेकर स्थिति साफ होने लगी, लेकिन इसके बाद एक अन्य प्रभावशाली गैर-लाभकारी संस्था ओपनएआई ने स्वयं को ‘लाभ कमाने के मकसद से स्थापित’ उद्यम के रूप में पुनर्गठित किया है। ओपनएआई दुनिया में आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) को रोज नए मुकाम तक पहुंचा रही है।

ओपनएआई की शुरुआत दिसंबर 2015 में एक गैर-लाभकारी अनुसंधान संगठन के रूप में हुई थी। इसका घोषित लक्ष्य ‘डिजिटल इंटेलिजेंस को इस तरह से आगे बढ़ाना था ताकि वित्तीय लाभ कमाने की लालसा के बिना मानवता को समग्र रूप से इसका फायदा पहुंचने की सबसे अधिक संभावना हो’।

इसके संस्थापक कुछ तकनीकी दिग्गजों जैसे गूगल और फेसबुक के एआई तकनीक पर बढ़ते एकाधिकार पर प्रतिक्रिया दे रहे थे। एआई अनुसंधान तेजी से आगे बढ़ रहा था लेकिन यह तय लग रहा था कि इसके लाभ मुख्य रूप से इन कंपनियों को ही मिलेंगे। ये धनाढ्य कंपनियां एआई पर भारी भरकम खर्च वहन करने में सक्षम थीं। ओपनएआई के संस्थापकों ने, जिनमें सैम ऑल्टमैन और मस्क शामिल थे, तकनीकी-उद्यमियों और संस्थानों से हासिल 1 अरब डॉलर की शुरुआती रकम के साथ बड़े वादे किए। हालांकि, शुरुआती दौर में वास्तविक अंशदान कम रहा लेकिन यह इकाई को शुरू करने के लिए पर्याप्त था।

पहले कुछ वर्षों में ओपनएआई का आदर्श उद्देश्य परोपकार था यानी लाभ अर्जित करने के बजाय बल्कि सभी के लिए ‘आर्टिफिशल जनरल इंटेलिजेंस’ (एजीआई) तैयार या इसका ईजाद करना। गैर-लाभकारी ढांचे का अर्थ है बाहरी निवेशकों को सीमित लाभ देकर अधिक खुलापन (सिद्धांत रूप में) और मकसद के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करना।

वर्ष 2019 आते-आते ओपनएआई दो प्रमुख दबावों का सामना कर रहा थी जिनमें एक पूंजीगत और दूसरी प्रतिभावान लोगों को अपने साथ जोड़े रखने का था। तब तक कंपनी को एहसास हो गया था कि बड़े एआई मॉडलों में प्रशिक्षित करने के लिए कहीं अधिक पूंजी की आवश्यकता होगी और निवेशकों को सीमित लाभ देने के वाले किसी गैर-लाभकारी संस्था द्वारा ऐसा नहीं किया जा सकता। उन्होंने लाभ अर्जित करने के लिए एक सहायक कंपनी स्थापित कर पूंजी जुटाने की वास्तविकताओं और अपने परोपकारी मिशन के बीच संतुलन साधने का प्रयास किया।

इस संरचना के तहत माइक्रोसॉफ्ट जैसे निवेशकों (जिसने 1 अरब डॉलर निवेश किया था) के पास इक्विटी का स्वामित्व नहीं था लेकिन उनके पास लाभ के लिए सहायक कंपनी के मुनाफे में हिस्सेदारी लेने का अधिकार था। इस सहायक इकाई में निवेशकों का मुनाफा उनके निवेश का 100 गुना तक तय कर दिया गया। इस सीमा से अधिक कोई भी मुनाफा गैर-लाभकारी संस्था को जाना था। मुनाफे की सीमा ने कंपनी को कर्मचारियों को स्टॉक-ऑप्शन जारी करने में भी सक्षम बनाया। उम्मीद यह की जा रही थी कि गैर-लाभकारी संस्था के हाथ संचालन संबंधी नियंत्रण रहेगा इसलिए सहायक कंपनी को ‘सीमित मुनाफा’ ढांचे के आधार पर स्थापित किया गया था यानी लाभ अर्जित करने के लिए इकाई शुरू करना मगर निवेशकों के लिए रिटर्न की सीमा के साथ।

मगर तब भी इस मिश्रित ढांचे ने ओपनएआई के मिशन पर केंद्रित बोर्ड और सीमित लाभ इकाई के वाणिज्यिक रूप से संचालित नेतृत्व के बीच तनाव बढ़ा दिया। पारदर्शिता, नियंत्रण और सार्वजनिक-लाभ लक्ष्यों और व्यावसायीकरण के बीच संतुलन पर विवादों के कारण धीरे-धीरे मिशन में बदलाव आया और 2023 में ऑल्टमैन कुछ दिनों के लिए कंपनी से बाहर कर दिए गए।

निदेशकों ने शुरू में कहा कि उन्होंने ऑल्टमैन में विश्वास खो दिया है क्योंकि वह अपने संचार में ‘लगातार स्पष्टवादी नहीं थे, लेकिन कर्मचारियों और निवेशकों के दबाव के बाद उन्हें पांच दिन बाद फिर से नियुक्त कर लिया गया। उसके बाद ओपनएआई ने आगे और पुनर्गठन का प्रस्ताव रखा जिसका उद्देश्य सीमित लाभ इकाई को लाभ अर्जित करने वाली इकाई में बदलना था। इसका उद्देश्य बड़े पैमाने पर रकम जुटाना और संभवतः एक संभावित सार्वजनिक सूचीबद्धता की दिशा में आगे बढ़ना है।

पिछले महीने ओपनएआई ने पुनर्गठन का कार्य पूरा किया जिसमें ओपनएआई फाउंडेशन के पास उक्त इकाई में लगभग 26 फीसदी हिस्सेदारी है और इसके बोर्ड में अधिकांश सदस्यों को नियुक्त करने का अधिकार है। माइक्रोसॉफ्ट की अब 27 फीसदी हिस्सेदारी है और शेष 47 फीसदी कर्मचारियों एवं अन्य निवेशकों के पास है। लाभ के लिए बनी शाखा को वाणिज्यिक उद्देश्यों और अपनी मूल कंपनी के सार्वजनिक-लाभ मिशन दोनों को आगे बढ़ाना है।

भारत भी एआई की तरफ कदम बढ़ा रहा है। ऐसे में भारत एआई मिशन, एआई अनुसंधान, स्टार्टअप और सरकारी पहल को उसी सवाल का सामना करना पड़ेगा जिससे ओपनएआई को गुजरना पड़ा था। वह सवाल है बढ़ती वित्तीय और गणना संबंधी मांग के बीच खुले नवाचार को कैसे आगे बढ़ाया जाए। इस संदर्भ में भारत का डिजिटल ढांचा – यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस, डिजीलॉकर और आधार के सार्वजनिक ढांचे पर निर्मित – एक बिल्कुल उलट ढांचा तैयार कर रहा है। यह ढांचा एक ऐसी प्रणाली के रूप में आगे बढ़ रहा है जो खुली, अंतर-परिचालन योग्य व्यवस्था के साथ बिना किसी निगमित झमेले के राष्ट्रीय और यहां तक कि वैश्विक स्तर पर आगे बढ़ रही है।


(लेखक इंस्टीट्यूशनल इन्वेस्टर एडवाइजरी सर्विसेज इंडिया लिमिटेड से जुड़े हैं। ये उनके निजी विचार हैं)

First Published - November 26, 2025 | 9:39 PM IST

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