नीतिगत ब्याज दर में कटौती को लेकर बाजार की उम्मीदें बढ़ गई हैं। जानकारी के मुताबिक कई संस्थाओं ने इस उम्मीद में अपनी धन जुटाने की योजनाओं को स्थगित कर दिया है। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने इस सप्ताह एक साक्षात्कार में कहा कि मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की अक्टूबर की बैठक में दिए गए संकेत के मुताबिक दरों में कटौती की गुंजाइश बरकरार है।
यद्यपि, उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि समिति आगामी बैठक में कटौती का निर्णय लेती है या नहीं, यह उस समय उसके आकलन पर निर्भर करेगा। एमपीसी की अगली बैठक 3 से 5 दिसंबर को होनी है। मुद्रास्फीति के परिणाम भी बाजार की उम्मीदों को बढ़ावा दे रहे हैं। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति दर अक्टूबर में घटकर 0.25 फीसदी हो गई, जो पिछले महीने में 1.4 फीसदी थी, और यह केंद्रीय बैंक के 4 फीसदी के लक्ष्य से काफी नीचे चल रही है।
एमपीसी ने इस साल नीतिगत रीपो दर में 100 आधार अंकों की कटौती की है, और दिसंबर की बैठक में इसका निर्णय काफी हद तक इस बात पर निर्भर करेगा कि वह आने वाली तिमाहियों में मुद्रास्फीति दर किस दिशा में जाने की उम्मीद करती है। ध्यान देने वाली बात यह है कि मुद्रास्फीति दर में गिरावट मुख्य रूप से खाद्य कीमतों के कारण हुई है। मुख्य मुद्रास्फीति दर (गैर-खाद्य, गैर-तेल) 4 फीसदी के आसपास चल रही है। खाद्य-मूल्य मुद्रास्फीति दर घटकर 5.02 फीसदी ऋणात्मक हो गई और पिछले वर्ष से इसमें लगातार गिरावट आ रही है। पिछले साल अक्टूबर में खाद्य-मूल्य मुद्रास्फीति दर 10 फीसदी से अधिक थी।
इस प्रकार, अनिवार्य रूप से, खाद्य कीमतों की अपेक्षा एमपीसी के निर्णय में एक प्रमुख भूमिका निभाएगी। अनुकूल माॅनसून और जलाशय के स्तर को देखते हुए, यह मानना उचित है कि आने वाले महीनों में खाद्य कीमतें सहायक रहेंगी, हालांकि इससे हेडलाइन यानी समग्र मुद्रास्फीति अनुमान में किस हद तक बदलाव आएगा, यह देखने लायक होगा। अक्टूबर की नीति में, एमपीसी को उम्मीद थी कि इस वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में मुद्रास्फीति दर औसतन 4 फीसदी और अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 4.5 फीसदी रहेगी। एमपीसी को नीतिगत रीपो दर में और कटाैती के लिए सक्षम बनाने के लिए इन अनुमानों को अनुकूल रूप से बदलना होगा, जिसकी संभावना बनी हुई है।
यद्यपि, दर में 25 आधार अंकों की कटौती किस हद तक वृद्धि को बढ़ावा देने में मदद करेगी, यह निर्धारित करना मुश्किल होगा। दूसरी तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़े इस सप्ताह के अंत में आने वाले हैं। पहली तिमाही में 7.8 फीसदी की वृद्धि ने आरबीआई सहित अधिकांश पूर्वानुमानकर्ताओं को आश्चर्यचकित कर दिया। दूसरी तिमाही में इसी तरह का परिणाम संभावित दर में कटौती के सीमांत प्रभाव को कम कर सकता है।
बताया जा रहा है कि माल एवं सेवा कर दरों में कटौती से खपत को खूब बढ़ावा मिला है। हालांकि, यह देखने लायक होगा कि क्या गति उचित अवधि तक बनी रहती है। वृद्धि के दृष्टिकोण से, अमेरिका के साथ व्यापार समझौते का निष्कर्ष नीतिगत दर में कटौती से अधिक महत्त्वपूर्ण होगा। कनाडा के साथ व्यापार वार्ता भी फिर से शुरू कर दी गई है। इसके शीघ्र निष्कर्ष से भी वृद्धि को सहारा मिलेगा।
दर में संभावित कटौती से विदेशी ऋण-पूंजी प्रवाह प्रभावित हो सकता है। रुपये की गिरावट को लेकर चिंताएं हैं। लेकिन मुद्रास्फीति के मोर्चे पर निकट अवधि में राहत को देखते हुए, नीति निर्माताओं को इससे चिंतित नहीं होना चाहिए और रुपये को कमजोर होने देना चाहिए। यद्यपि यह अमेरिकी शुल्क वृद्धि के नुकसान की भरपाई नहीं कर सकता है, लेकिन एक अनुकूल मुद्रा अन्य बाजारों में निर्यातकों की मदद करेगी और कुछ हद तक अमेरिकी बाजार के नुकसान की भरपाई करेगी।
संक्षेप में कहें तो, हाल के मुद्रास्फीति परिणाम एमपीसी को नीतिगत रीपो दर को कम करने के लिए मजबूत कारण प्रदान करेंगे, लेकिन मौद्रिक नीति को दूरदर्शी होने की जरूरत है। इस प्रकार, मुख्य बात यह होगी कि अनुमान कैसे बदलते हैं।