नीति आयोग के सदस्य राजीव गौबा की अध्यक्षता वाली एक उच्चस्तरीय समिति अगले दौर के सुधार पर काम कर रही है। इस मामले से अवगत लोगों ने यह जानकारी दी। उन्होंने आज कहा कि सरकार अगले दौर के सुधार के तहत व्यापार और कारोबारियों के लिए लाइसेंस व्यवस्था को खत्म करने और सख्त नियमों को आसान बनाने पर ध्यान देगी।
मामले से अवगत एक व्यक्ति ने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘इसमें पीईएसओ (पेट्रोलियम तथा विस्फोटक सुरक्षा संगठन), एफएसएसएआई (भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण), एनपीपीए (राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण), सीडीएससीओ (केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन) जैसे प्रमुख सरकारी संस्थानों में प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने के प्रस्ताव शामिल होंगे।’ उद्योग ने अक्सर कहा है कि इन संस्थानों की नियामकीय जरूरतें काफी लंबी और जटिल होती हैं जिससे व्यापार करना मुश्किल हो जाता है।
अगले दौर के सुधार का मुख्य उद्देश्य मौजूदा वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच कारोबारी सुगमता को बेहतर और निवेशकों की धारणा को मजबूत करना है। ‘गैर-वित्तीय नियामकीय सुधारों पर उच्चस्तरीय समिति’ ने उन कानूनों और नियमों की पहचान करने के लिए विभिन्न सरकारी विभागों और मंत्रालयों से राय मांगी है जिन्हें संशोधित किया जा सकता है। यह रिपोर्ट फिलहाल एक आंतरिक दस्तावेज है और इसे एक महीने के भीतर अंतिम रूप दिया जा सकता है। उसके बाद समिति द्वारा की गई सिफारिशों को सरकारी विभागों और मंत्रालयों द्वारा लागू किए जाने की उम्मीद है।
उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) प्राप्त इनपुट को समेकित करने और यह सुनिश्चित करने के लिए समिति के साथ मिलकर काम कर रहा है कि मौजूदा सरकारी पहलों के साथ कोई ओवरलैप न हो। यह प्रस्ताव फिलहाल मसौदा चरण में है। मगर इसका कार्यान्वयन एक लंबी प्रक्रिया हो सकती है क्योंकि इसके लिए कई कानूनों में संशोधन करना पड़ सकता है।
नीति आयोग ने इस संबंध में जानकारी के लिए बिज़नेस स्टैंडर्ड द्वारा भेजे गए सवालों का खबर लिखे जाने तक कोई जवाब नहीं दिया।
नौ सदस्यों वाली यह समिति गुणवत्ता नियंत्रण आदेश (क्यूसीओ) के साथ-साथ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) जैसे विवादास्पद मुद्दों से संबंधित सुधारों पर पहले ही एक आंतरिक रिपोर्ट लेकर आई है। पिछले महीने इसने 200 से अधिक उत्पादों के लिए क्यूसीओ को रद्द करने, निलंबित करने और स्थगित करने का प्रस्ताव दिया था।
उसमें चिंता जताई गई थी कि इनके कारण अनुपालन बोझ बढ़ गया है और इसने आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित किया है जिससे भारत की विनिर्माण प्रतिस्पर्धात्मकता को नुकसान पहुंचा है। एक अन्य रिपोर्ट में समिति ने सिफारिश की है कि सरकार या तो चीन से आने वाले निवेश पर प्रतिबंधों को वापस ले अथवा पाबंदियों को धीरे-धीरे कम करने पर विचार करे।