अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने भारतीय अर्थव्यवस्था पर अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दिवाला और दिवालियापन संहिता (आईबीसी) संशोधन विधेयक में कई कमियां दूर की गई हैं मगर इसमें परिचालन लेनदारों की भागीदारी या निष्पादन योग्य अनुबंधों से संबंधित प्रावधान नहीं दिए गए हैं। आईएमएफ ने कहा कि भारत में कारोबारी गतिशीलता अपेक्षाकृत कम बनी हुई है,जिसमें प्रवेश और बाहर निकलने की दरें कम हैं और निष्क्रिय या अक्षम कंपनियों की उच्च हिस्सेदारी संरचनात्मक कठोरता और उच्च अनुपालन स्तरों को दर्शाती है।
आईएमएफ ने कहा,‘निष्क्रिय कंपनियों (केवल ब्याज चुकाने एवं परिचालन खर्च चलाने लायक आय अर्जित करने वाली कंपनियां) की लगातार मौजूदगी, ऋण देने में रियायत (फोरबियरेंस लेंडिंग), अक्षम दिवाला समाधान और कारोबार से बाहर निकलने से जुड़ी समस्याओं को प्रतिबिंबित कर सकता है।’
रिपोर्ट में आईबीसी विधेयक पर कहा गया है कि परिचालन लेनदारों के पास अभी भी समाधान योजना या अन्य संचालन अधिकारों पर वोट देने का अधिकार नहीं है। इसमें कहा गया है, ‘निष्पादन योग्य अनुबंधों के लिए कोई नियम प्रदान नहीं किए गए हैं। ऐसे नियमों से कारोबारी परिचालन बेचने के बजाय पुनर्गठित किए जाने की संभावना बढ़ जाएगी।’ सरकार ने मॉनसून सत्र के दौरान लोकसभा में आईबीसी विधेयक पेश किया था जिसमें समूह और सीमा पार दिवाला से लेकर ऋणदाताओं द्वारा शुरू की गई दिवाला समाधान प्रक्रिया तक कई सुधारों के प्रस्ताव दिए गए थे। सरकार ने इस विधेयक को एक प्रवर समिति को भेज दिया है।
भारतीय अधिकारियों ने आईएमएफ को बताया कि उन्हें उम्मीद है कि हालिया आईबीसी संशोधन विधेयक दिवालियापन समाधान प्रक्रिया में काफी तेजी लाएगा। आईएमएफ की की रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि संकटग्रस्त कंपनियों सफल समाधानों में वित्तीय ऋणदाताओं के लिए वसूली दरें मार्च 2019 में 43 प्रतिशत से घटकर जून 2025 में 33 प्रतिशत रह गईं। समाधान प्रक्रिया के लिए आवेदन देने और मामले शुरू होने के बीच का समय (प्री-एडमिशन डिलेज) काफी बदतर हो गया है। रिपोर्ट में कहा है गया है कि परिचालन ऋणदाताओं को वर्ष 2019 में 450 दिनों की तुलना में 2022 में औसतन 650 दिनों का इंतजार करना पड़ रहा है।
बुधवार को जारी रिपोर्ट में कहा गया कि सरकार द्वारा किए जा रहे विधायी सुधारों के साथ समर्पित न्यायाधिकरण पीठों और पर्याप्त धन की भी व्यवस्था की जानी चाहिए ताकि न्यायिक कार्य क्षमता बढ़ सके। इसके साथ ही व्यक्तिगत दिवाला व्यवस्था भी लागू की जानी चाहिए। रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि भारत में कंपनियों के कारोबार में कदम रखने और निकलने की दरें 1 प्रतिशत से भी कम हैं जो अमेरिका, यूरोपीय देशों, कोरिया गणराज्य और चिली जैसी अर्थव्यवस्थाओं में आम तौर पर देखी जाने वाली 8 से 13 प्रतिशत सालाना दरों से बहुत कम है।
आईएमएफ ने कहा कि लगातार काम कर रही कंपनियों में एक बड़ा हिस्सा (15 प्रतिशत) जॉम्बी कंपनियों का है जो अपने ब्याज खर्चों के भुगतान के लिए पर्याप्त आय नहीं अर्जित करती हैं बस किसी तरह परिचालन जारी रखती हैं। इनमें ज्यादातर बहुत कम उत्पादकता के साथ काम करती हैं।
आईएमएफ ने कहा, ‘जॉम्बी कंपनियों की मौजूदगी भारत के कारोबारी माहौल में संरचनात्मक कठोरता दर्शाती है जिसमें कमजोर दिवाला समाधान और बाहर निकलने की व्यवस्था तक सीमित पहुंच शामिल है।’ कम प्रवेश दरें उच्च नियामक अनुपालन बोझ को दर्शा सकती हैं जो औपचारिक क्षेत्र में प्रवेश में खलल डालती हैं। सरकार को अधिक उत्पादक कंपनियों को संसाधनों का दोबारा आवंटन करने में मदद करने के लिए वित्तीय क्षेत्र में ऋण आवंटन में सुधार के उपाय करने चाहिए।