ज्यादातर ब्रोकरेज फर्मों को उम्मीद है कि अगले साल भी बाजारों में तेजी बनी रहेगी। तेजी की वजह आय में बढ़ोतरी और विदेशी निवेश में सुधार रहेगा। गुरुवार को कारोबारी सत्र के दौरान (इंट्राडे) बीएसई सेंसेक्स 86,055.86 के नए सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गया। सबसे आशावादी परिदृश्य मॉर्गन स्टैनली का है। उसके अनुसार अगले वर्ष दिसंबर तक सेंसेक्स 1,07,000 के स्तर पर पहुंच जाएगा जो मौजूदा स्तर से करीब 24 फीसदी की वृद्धि दर्शाता है।
एचएसबीसी के विश्लेषकों ने 2026 के अंत तक सेंसेक्स के लिए 94,000 का लक्ष्य रखा है जो मौजूदा स्तरों से करीब 9.3 फीसदी ज्यादा है। उन्होंने हालिया नोट में कहा है कि चीन की तुलना में भारत में बेहतर मूल्य है।
बर्नस्टीन के एक विश्लेषण के अनुसार भारतीय बाजारों का अमेरिकी और चीन के बाजारों के साथ एक मजबूत वैकल्पिक संबंध है। अमेरिकी बाजारों में पिछले 11 वर्षों में 2-3 वर्षों तक लगातार कमजोर प्रदर्शन और उसके एक वर्ष बाद तेज़ उछाल देखी गई है। उन्होंने कहा कि चीन के सापेक्ष भारतीय बाजार पिछले 11 वर्षों में दो साल तक कमज़ोर प्रदर्शन और उसके बाद तीन वर्ष तक बेहतर प्रदर्शन करते रहे हैं।
बर्नस्टीन के प्रबंध निदेशक वेणुगोपाल गैरे ने लिखा कि दिलचस्प बात यह है कि दोनों संकेत 2025 में खराब प्रदर्शन के दौर की समाप्ति की ओर इशारा करते हैं। निफ्टी सूचकांक ने पिछले 3 वर्षों के दौरान अमेरिकी डॉलर के लिहाज से एसऐंडपी 500 से खराब प्रदर्शन किया है जबकि शांघाई कम्पोजिट की तुलना में दो वर्षों में खराब प्रदर्शन रहा है। यह रुझान आने वाले वर्ष में उलटफेर की ओर इशारा करता है और इससे 2026 में इन सूचकांकों की तुलना में भारतीय बाजारों के बेहतर प्रदर्शन का संकेत मिलता है।
इस बीच, एक्सचेंजों की बात करें तो सेंसेक्स 20.4 फीसदी या 14,601 अंक की बढ़त के साथ 4 अप्रैल 2025 को अपने कैलेंडर वर्ष के निचले स्तर 71,425 से गुरुवार के कारोबारी सत्र के दौरान उच्चतम स्तर पर पहुंच गया।
विश्लेषकों का कहना है कि आगे बाजार की बढ़त इस बात पर निर्भर करेगी कि भारत पर अमेरिकी टैरिफ का क्या असर होता है और घरेलू आय में कितनी बढ़ोतरी होती है। उनका मानना है कि वैश्विक भू-राजनीतिक हालात, केंद्रीय बैंकों का ब्याज दरों के प्रति रुख, कच्चे तेल की कीमतें और विदेशी निवेश ऐसे दूसरे कारक हैं, जो यह तय करेंगे कि 2026 में बाज़ार की चाल कैसी होगी।
एमके के विश्लेषकों ने कहा कि उपभोग में उछाल के कारण वित्त वर्ष 2025-26 की दूसरी छमाही में आय में सुधार की उम्मीद है। फ्रैंकलिन टेम्पलटन ऐसेट मैनेजमेंट के विश्लेषकों का मानना है कि 2026 में बाजारों को मात देने की रणनीति शेयरों के चयन पर निर्भर करेगी।
उन्होंने एक रिपोर्ट में लिखा है, वित्त वर्ष 2027 में 16-17 फीसदी की आय मजबूत दिख रही है जिसकी अगुआई वित्तीय क्षेत्र कर रहा है। फंडामेंटल मज़बूत बने हुए हैं और विभिन्न सेक्टरों के मूल्यांकन ज्यादा होने के बजाय उचित प्रतीत होते हैं। हालांकि बाज़ार सस्ते नहीं हैं, लेकिन आर्थिक फंडामेंटल में सुधार के कारण कई शेयरों का मूल्यांकन उचित हो गया है। सस्ती सौदेबाजी सीमित है, लेकिन व्यापक सुधार की उम्मीदों के बीच चुनिंदा अवसर मौजूद हैं।
एचएसबीसी का भी मानना है कि आने वाले वर्ष में आय में सुधार होगा। एचएसबीसी में इक्विटी रणनीति प्रमुख (एशिया प्रशांत) हेरल्ड वैन डेर लिंडे ने हाल में एक नोट में लिखा है, आने वाली तिमाहियों में बैंकों के मार्जिन में बढ़ोतरी होगी और ऑटोमोबाइल समेत उपभोक्ता कंपनियों को जीएसटी में कटौती और कम ब्याज दरों का लाभ मिलेगा।
एचएसबीसी का मानना है कि 12 महीनों की अनुपस्थिति के बाद बाहरी कारकों के कारण विदेशी फंडों की वापसी के लिए परिस्थितियां अनुकूल हैं। उन्होंने कहा कि कोरिया और ताइवान में फंडों की पोजीशनिंग (जो मुख्यतः भारतीय शेयरों की बिक्री से मिले वित्त की बदौलत है) अब बहुत ज्यादा है और एआई से जुड़ी कोई भी नकारात्मक खबर इस निवेश को उलट सकती है।
एचएसबीसी के एक नोट में कहा गया है, कमजोर डॉलर और अमेरिकी फेड द्वारा ब्याज दरों में कटौती की बहाली के बावजूद उभरते बाजारों में निवेश अभी तक नहीं पहुंचा है। अगर ऐसा होता है तो भारत को इसका बड़ा लाभ होगा। हालांकि अमेरिकी टैरिफ का आय पर सीमित प्रभाव पड़ेगा, लेकिन कोई भी सकारात्मक कारोबारी घटनाक्रम दूर बैठे निवेशकों का निवेश आकर्षित कर सकता है।