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पारिवारिक वसीयत में सही हिस्सा नहीं मिला? जानें इसको लेकर क्या है कानून और कोर्ट में क्या माना जाता है सबूत

Inheritance Law: समझें कब चुनौती देना सही होता है, कौन से सबूत जरूरी होते हैं और वसीयत विवादों में आपके पार क्या विकल्प होते हैं

Last Updated- November 28, 2025 | 6:38 PM IST
Inheritance Law
प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो

परिवार में वसीयत को लेकर झगड़े अक्सर रिश्तों को बिखेर देते हैं। अगर वसीयत में हिस्से बराबर न हों या लगे कि कोई बाहर से दखल दे रहा था, तो मामला और उलझ जाता है। लेकिन कानून के मुताबिक, सिर्फ असमानता देखकर वसीयत को चुनौती नहीं दी जा सकती। यहां बहुत मजबूत सबूत चाहिए। अगर परिवार पहले से ही सही कदम उठाएं, तो लंबी अदालती लड़ाई और पैसे की बर्बादी से बच सकते हैं। खैतान एंड कंपनी की पार्टनर ज्योति सिन्हा बताती हैं कि ऐसे मामलों में सही जानकारी होना जरूरी है, वरना छोटी-छोटी बातें नजरअंदाज हो जाती हैं।

छिपे हुए संकेत जो नजर नहीं आते

परिवार वाले अक्सर उन छोटे-छोटे इशारों को मिस कर देते हैं, जो वसीयत में गड़बड़ी की ओर इशारा करते हैं। सिन्हा कहती हैं कि अगर कोई फायदा उठाने वाला शख्स लंबे समय से टेस्टेटर (वसीयत बनाने वाला) के करीब रहा हो और फैसले प्रभावित करने की कोशिश करता दिखे, तो ये दबाव या अनुचित प्रभाव का संकेत हो सकता है। इसके अलावा, वसीयत में हस्ताक्षर में कुछ असामान्य हो, जैसे डॉक्टर का सर्टिफिकेट न होना जो दिमागी हालत की पुष्टि करे, या जहां काट-पीट हुई हो वहां इनिशियल्स न हों, तो ये चेतावनी के घंटे हैं। ये चीजें खुद-ब-खुद वसीयत को अमान्य नहीं बनातीं, लेकिन जांच की जरूरत बताती हैं। सिन्हा की सलाह है कि इन पर गौर करके जल्दी कदम उठाएं, क्योंकि वक्त बीतने पर सबूत गुम हो सकते हैं।

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सबूत जुटाने की जल्दबाजी क्यों?

समय बहुत कीमती है ऐसे मामलों में। सिन्हा कहती हैं कि वसीयत बनाने के वक्त की घटनाओं का टाइमलाइन बनाएं, टेस्टेटर की शारीरिक और मानसिक स्थिति के बारे में जानकारी इकट्ठा करें। असली हस्ताक्षर के नमूने, फोटो, चिट्ठियां या ईमेल जैसे दस्तावेज रखें, जो ये साबित करें कि वसीयत प्राकृतिक है या संदिग्ध। परिवार अक्सर सोचते हैं कि उनके पास जो कागज हैं, वो बेकार हैं, लेकिन सिन्हा की राय है कि सब कुछ वकील को दिखाएं। वो तय करेंगे कि क्या काम आएगा। अगर देर की, तो महत्वपूर्ण चीजें खो सकती हैं।

अदालतें कैसे काम करती हैं?

जज लोग वसीयत पर दस्तखत करते वक्त की परिस्थितियों को गौर से जांचते हैं। सिन्हा बताती हैं कि क्या टेस्टेटर आजाद था, उसे सब समझ आ रहा था? बीमारी, नशा या कोई ऐसी चीज जो फैसले पर असर डाले, उसकी जांच होती है। अनुचित प्रभाव साबित करना काफी मुश्किल है, क्योंकि कानूनी स्तर ऊंचा है।

अगर वसीयत से बाहर कर दिया गया तो

वसीयत से नाम कटना अकेले चुनौती का आधार नहीं होता। सिन्हा कहती हैं कि पहले देखें कि बिना वसीयत के संपत्ति कैसे बंटती। अगर कोई कानूनी वारिस ‘अप्राकृतिक बहिष्कार’ का दावा करता है, तो वो सेल्फ-अक्वायर्ड संपत्ति के लिए मुश्किल से मान्य होता है, लेकिन पैतृक संपत्ति के लिए काम कर सकता है। ऐसे में कोई कदम उठाने से पहले वकील से बात जरूर करें, क्योंकि मामला जटिल है।

First Published - November 28, 2025 | 6:38 PM IST

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