वैश्विक इंटरनेट की चुनौती: एआई युग में नए शासनिक सहमति की जरूरत
बीते कुछ दशकों में जो सबसे अहम तकनीकी उन्नति नजर आई है वह नई सूचना प्रौद्योगिकी के विकास से संबंधित है। वर्ष 1990 में इंटरनेट का इस्तेमाल करने वालों की कुल संख्या करीब 30 लाख थी। इनमें भी अधिकांश लोग अमेरिका में थे। तब से अब तक इंटरनेट के इस्तेमाल में अभूतपूर्व इजाफा हुआ है […]
जलवायु सहयोग में न्याय: फिर से लागू हों साझा लेकिन अलग-अलग दायित्व
पिछले माह अपने स्तंभ में मैंने जलवायु परिवर्तन की बढ़ती चुनौती और 2015 के पेरिस समझौते के अंतर्गत जताई गई प्रतिबद्धता में गंभीर कमी जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया था। मैंने कहा था कि पेरिस समझौते पर अमल में तेजी लानी होगी। खासतौर पर विकसित देशों को इसमें बड़ी भूमिका निभानी चाहिए। मैं इस […]
वैश्विक जलवायु संकट: COP30 में विकसित देशों को जवाबदेही निभाने के लिए प्रेरित करना आवश्यक
इस वर्ष नवंबर में जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) के कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज (कॉप) की बैठक ब्राजील के एमेजॉन क्षेत्र में मौजूद शहर बेलेम में होगी। संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन अहम है क्योंकि जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न जोखिमों को कम करने का काम कोई एक देश अकेले अपने दम पर […]
अमेरिकी दादागीरी के विरुद्ध विश्व को इच्छुक सहयोगियों की है आवश्यकता
करीब 80 वर्ष पहले अंतरराष्ट्रीय संगठन संयुक्त राष्ट्र की स्थापना की गई। उसके जिस चार्टर पर सहमति बनी उसने राज्यों के बीच संबंधों की वैधता को परिभाषित किया और संयम तथा पारस्परिक सम्मान को बढ़ावा देने वाली कूटनीतिक प्रथाओं की स्थापना की। दुनिया के देशों के व्यवहार का यह वैश्विक मानक कई अन्य अंतरराष्ट्रीय संस्थानों […]
विकसित भारत 2047: तकनीकी प्रगति की राह पर कहां है भारत?
भारत वर्ष2047 तक निम्न मध्य आय वाले देश से उच्च आय वाले देश तक का सफर तय करने की ख्वाहिश रखता है। उस वर्ष तक विकसित भारत के निर्माण का भी लक्ष्य रखा गया है। इसे पाने के लिए और मध्य आय के जाल से बचने के लिए तकनीकी उन्नयन और बेहतर श्रम शक्ति तैयार […]
भारत को चाहिए नई पीढ़ी की उद्यमिता
देश में उद्यमिता के क्षेत्र में दो विशेषताओं का होना आवश्यक है। पहला, उसे इस कदर नवाचारी होना चाहिए कि वह अपनी कारोबारी योजना के अंतर्गत नए उत्पाद सामने लाए और नई प्रक्रियाओं को प्रस्तुत करे। दूसरा, उसकी मार्केटिंग भी वैश्विक होनी चाहिए ताकि वह भारत में विदेशी आपूर्तिकर्ताओं से निपट सके और वैश्विक बाजारों […]
बहुपक्षीयता के लिए शोकगीत या उम्मीद?
अस्सी वर्ष पहले दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका ने बहुपक्षीय संस्थानों की स्थापना में अग्रणी भूमिका निभाई और दूसरे देशों के साथ शक्तियां साझा कीं। आज वही अमेरिका बहुपक्षीयता से दूरी बना रहा है। अमेरिका के वर्तमान राष्ट्रपति अन्य देशों के साथ राजनीतिक और आर्थिक रिश्तों में अपने अति राष्ट्रवादी हितों पर जोर दे […]
विनिर्माण को रफ्तार देने की दरकार
भारत में विनिर्माण क्षेत्र की मौजूदा रफ्तार एवं दिशा क्या देश की अर्थव्यवस्था को 2047 तक विकसित बनाने का लक्ष्य हासिल करने के लिए काफी है? 2023-24 में सकल मूल्य वर्द्धन (जीवीए) में विनिर्माण क्षेत्र का हिस्सा वर्तमान मूल्यों पर 14 प्रतिशत था। अगर हम वर्तमान मूल्यों पर पांच वर्षों के औसत जीवीए पर विचार […]
Budget 2025-26: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के बजट भाषण की प्राथमिकताएं
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण इसी हफ्ते 2025-26 का बजट पेश करेंगी। पुराने रुझान देखें तो उनके भाषण का बड़ा हिस्सा विकास कार्यक्रमों और अन्य मंत्रालयों द्वारा क्रियान्वित की जाने वाली योजनाओं के बारे में होगा। गत वर्ष वित्त मंत्री के बजट भाषण में 165 पैराग्राफ शामिल थे और इनमें से ज्यादातर में व्यय प्रस्तावों की […]
नेहरूवादी मानवतावाद और भारत का विकास
नेहरू के युग (1950-64) में लागू विकास नीति की आलोचना राजनीति में ही नहीं हुई है बल्कि कुछ अर्थशास्त्री भी देश के प्रदर्शन का आकलन करते समय उसकी आलोचना करते हैं। नेहरू के युग की 4 फीसदी वृद्धि दर और 1980 के बाद की 6 फीसदी वृद्धि दर के बीच का बड़ा अंतर अक्सर याद […]









