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विनिर्माण को रफ्तार देने की दरकार

विनिर्माण उद्योग में हमारे विकास लक्ष्य के अनुरूप तेजी सुनिश्चित करनी है तो सरकार को कम उद्यमिता दिखानी होगी और कंपनियों को अधिक उद्यमी बनना होगा। बता रहे हैं नितिन देसाई

Last Updated- February 21, 2025 | 11:31 PM IST
Manufacturing PMI August 2025

भारत में विनिर्माण क्षेत्र की मौजूदा रफ्तार एवं दिशा क्या देश की अर्थव्यवस्था को 2047 तक विकसित बनाने का लक्ष्य हासिल करने के लिए काफी है? 2023-24 में सकल मूल्य वर्द्धन (जीवीए) में विनिर्माण क्षेत्र का हिस्सा वर्तमान मूल्यों पर 14 प्रतिशत था। अगर हम वर्तमान मूल्यों पर पांच वर्षों के औसत जीवीए पर विचार करें तो 2020-21 में दर्ज 16 प्रतिशत हिस्सेदारी केवल 1955-56 के पांच वर्षों के औसत 13 प्रतिशत से ही अधिक है।

यह लगातार बढ़कर 1980-81 तक लगभग 18 प्रतिशत हो गई और 2010-11 तक इसी स्तर पर रही मगर उसके बाद से हिस्सेदारी लगातार घटती रही। 2023-24 के लिए हिस्सेदारी का सालाना औसत कम होकर 14 प्रतिशत रह गया है।

चूंकि विभिन्न क्षेत्रों में मूल्यों में बदलाव की रफ्तार अलग-अलग होती है, इसलिए मात्रात्मक बदलाव का अंदाजा लगाने का एक विकल्प यह है कि किसी निश्चित वर्ष के मूल्यों के साथ क्षेत्र की हिस्सेदारी देखी जाए। 2011-12 की स्थिर मूल्य श्रृंखला के आधार पर पांच वर्षों का औसत दर्शाता है कि जीवीए में जो हिस्सेदारी 1955-56 में 9 प्रतिशत थी वह 1980-81 तक बढ़कर 14 प्रतिशत हो गई और 1990-91 में उदारीकरण के बाद तेज होकर 2020-21 तक 18 प्रतिशत हो गई। मगर 2010-11 के स्थिर मूल्यों के आधार पर यह हिस्सेदारी 2022-23 और 2023-24 में घटकर 17 प्रतिशत रह गई।

विनिर्माण में रोजगार पर उपलब्ध जानकारी बड़ा मसला है। भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा 2024 के लिए जारी क्लेम्स (कैपिटल, लेबर, एम्प्लॉयमेंट, मटीरियल ऐंड सर्विसेस) सूचना भंडार में अर्थव्यवस्था में क्षेत्रवार रोजगार का अनुमान लगाया गया है। इस रिपोर्ट के अनुसार रोजगार में विनिर्माण की हिस्सेदारी 1980-81 में 10.4 प्रतिशत थी, जो 2011-12 तक बढ़कर 11.8 प्रतिशत हो गई मगर तब से इसमें लगातार कमी आई और 2022-23 तक यह कम होकर 10.6 प्रतिशत रह गई। उदारीकरण के बाद रोजगार में सबसे अधिक बदलाव सेवा क्षेत्र में आया है। रोजगार में सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी 2022-23 में बढ़कर 33.8 प्रतिशत हो गई, जो 1990-91 में 20 प्रतिशत थी। याद रहे कि 1980-81 से 2022-23 तक विनिर्माण में कुल सालाना फैक्टर उत्पादकता के क्लेम्स अनुमान चार से अधिक दशक में करीब 10 प्रतिशत गिरावट दर्शाते हैं।

दूसरे देशों की तुलना में भारत में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में विनिर्माण की हिस्सेदारी कहां ठहरती है? तुलना के लिए अगर विश्व बैंक के आंकड़ों का इस्तेमाल करें तो भारत में यह हिस्सेदारी 2023 में 13 प्रतिशत थी, जो बांग्लादेश, श्रीलंका या पाकिस्तान से भी कम थी। इससे भी अधिक विचित्र बात यह है कि दक्षिण-पूर्व और पूर्वी एशिया में दर्ज 23 प्रतिशत की तुलना में भी यह 10 प्रतिशत कम है। पूर्वी एशिया में चीन में जीडीपी में विनिर्माण की हिस्सेदारी 26 प्रतिशत थी। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि विनिर्मित उत्पादों के निर्यात की हिस्सेदारी 2012-13 में 18 प्रतिशत थी जो 2022-23 में घटकर 7 प्रतिशत से भी कम रह गई।

क्या अगले दो दशक से कुछ अधिक समय में विकसित देश बनने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य प्राप्त करने के लिए यह स्वीकार्य स्थिति है? मुझे लगता है कि भारत की अर्थव्यवस्था की गति के साथ विनिर्माण क्षेत्र कदमताल नहीं मिला पा रहा है। यह बात आंकड़ों से लेकर उत्पाद एवं प्रक्रिया से जुड़ी प्रगति से साफ पता चलती है। यह बात इससे भी पता चलती है कि बुनियादी ढांचे एवं कई अन्य उद्योगों में कच्चे माल के लिए विनिर्माता आयात पर ज्यादा निर्भर होते जा रहे हैं। यहां तक कि वृद्धि एवं विदेशी व्यापार में झंडे गाड़ने वाला दवा क्षेत्र भी प्रमुख कच्चे माल की जरूरत आयात से ही पूरी करता है। इसका कारण यह है कि जो कंपनियां दवा सामग्री बनाने के लिए खड़ी की गईं वे भी दूसरे देशों की कंपनियों को टक्कर देने की क्षमता विकसित करने में विफल रही हैं।

विनिर्माण और रोजगार को बढ़ावा देने के लिए हमें क्या करना चाहिए? मुझे लगता है कि इसका जवाब उन उपायों में छुपा है जो विनिर्माण कंपनियों एवं छोटे उद्यमियों को सरकार की निगरानी से निजात दिलाएंगे, उद्यमशीलता को बढ़ावा देंगे, कंपनियों को उनके निवेश के प्रयासों पर ज्यादा ध्यान देने के लिए प्रेरित करेंगे, उत्पाद एवं प्रक्रियाओं में नवाचार की अहमियत को तवज्जो देंगे और वैश्विक अर्थव्यवस्था में भाग लेने के लिए उन्हें अधिक सक्षम बनाएंगे।

भारत में औद्योगिक नीति के साथ विडंबना रही है कि सरकार एवं अफसरशाही अर्थव्यवस्था के अलग-अलग क्षेत्रों की पसंद-नापसंद और यहां तक कि नई तकनीक के इस्तेमाल पर भी अपनी मनमानी करती रही हैं। औद्योगिक क्षेत्र में लाइसेंस राज की शुरुआत के साथ ही यह परंपरा शुरू हो गई थी, जिसमें कुछ सुधार जरूर किए गए थे। 1991 में लाइसेंस राज का खात्मा कर दिया गया। इसे खत्म करते समय दलील दी गई कि कंपनियों एवं उद्यमियों को उनके पसंद के क्षेत्र में कारोबार करने एवं तकनीक का इस्तेमाल करने की छूट दी जानी चाहिए। यह मुक्त बाजार व्यवस्था से जुड़ी बात थी, जिसका राजनीतिक हलकों में स्वागत नहीं हुआ और न ही अधिकारियों को यह बात पसंद आई।

लिहाजा अब सरकार विनिर्माण क्षेत्र में उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के जरिये दखल दे रही है। इस योजना का प्रस्ताव 2021-22 के बजट में दिया गया था। पीएलआई योजना के अंतर्गत सरकार द्वारा चुने गए 14 क्षेत्रों में निश्चित स्तर से अधिक उत्पादन करने पर सब्सिडी दिए जाने का प्रावधान है। मगर हाल यह है कि इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए जारी पीएलआई दिशानिर्देशों से पूरे 49 पृष्ठ भर गए हैं।

सरकार अगर इस योजना में कुछ खास कंपनियों को प्रोत्साहन पाने योग्य इकाइयों के रूप में चुनती है तो उन क्षेत्रों की कंपनियां स्वस्थ तरीके से होड़ नहीं कर सकतीं, जिन्हें ये प्रोत्साहन नहीं मिल रहे हैं। इसके साथ ही उन कंपनियों का विकास भी थम सकता है जो इस योजना में शामिल नहीं की गई हैं। सरकार की नीति मुख्य रूप से बाजार में प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने पर और ऐसा माहौल तैयार करने पर केंद्रित होनी चाहिए, जो शुरुआत कर रही इकाइयों को बढ़ावा देता है। ये इकाइयां अगर होड़ में बनी रहीं तो छोटे या मध्यम उद्यम के साथ शुरुआत कर अपना आकार कई गुना तक बढ़ा सकती हैं।

वर्ष 1991 के बाद जीवीए और रोजगार में सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी में जो भारी बढ़ोतरी दिखी है, उसकी अगुआई प्रथम पीढ़ी के कई उद्यमियों के दौर में हुई है। इन उद्यमियों ने सूचना-प्रौद्योगिकी, सॉफ्टवेयर ट्रेडिंग और डिजिटल लेनदेन के विकास पर जोर दिया। ये सभी ऐसे उद्योग हैं, जो आगे बढ़ने के लिए सरकारी सब्सिडी के मोहताज नहीं होते और वैश्विक बाजार के रुझानों से फायदा उठाने पर ही जिनका ध्यान होता है। हमें विनिर्माण में भी ऐसी ही खूबी की जरूरत है यानी उन उद्यमियों की जरूरत है, जो वैश्विक बाजारों में बड़ी भूमिकाएं निभा सकते हैं।

हमें एक ऐसी वित्तीय प्रणाली की भी दरकार है, जो विनिर्माण में स्टार्टअप इकाइयों – लघु, मझोले और बड़े उद्यमों – को अधिक से अधिक समर्थन दे सके। देश में कारोबारी जज्बा रखने वाले लोगों की संख्या बढ़नी जरूरी है तभी जाकर विनिर्माण उद्योग में मजबूती आएगी। फिलहाल यह क्षेत्र परिवार नियंत्रित कंपनियों पर काफी अधिक निर्भर है जो विभिन्न क्षेत्रों में निवेश करती हैं। निवेश का दायरा अंदरूनी तकनीकी प्रगति पर यदा-कदा ही निर्भर रहता है और आम तौर पर बाजार मे तेजी से उभरती संभावनाओं का फायदा उठाने के लिहाज से किया जाता है। अगर हम केवल अंदरूनी उत्पाद एवं प्रक्रिया विकास पर निर्भर रहते तो खुदरा व्यापार जैसे क्षेत्र में बड़ी कंपनियों का वह विस्तार हमें देखने को नहीं मिलता जो अब हम देख पा रहे हैं। निचोड़ यह है कि बड़ी कंपनियां एक ऐसे भविष्य के लिए अधिक तैयार दिख रही हैं जहां तकनीकी विकास का खास दबदबा होगा।

यह बात अब सभी समझ चुके हैं कि और अमेरिका में ऐसा लग रहा है कि जिन क्षेत्रों में अमेरिकी विनिर्माता सक्रिय थे, 1977 और 2017 के बीच वे घटकर केवल आधे रह गए हैं। यूरोप में भी ऐसे ही बदलाव देखे जा रहे हैं। हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि जिन एशियाई कंपनियों ने आपूर्तिकर्ताओं एवं बड़ी कंपनियों के रूप में अपनी पहचान बनाई हैं उनकी खास उत्पादों से जुड़ी एक अपनी स्पष्ट पहचान रही है। इन कंपनियों में सैमसंग या ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी या ह्वावे जैसी नई चीनी कंपनियों का नाम लिया जा सकता है।

विनिर्मित उत्पादों के लिए देश के भीतर मांग होना जरूरी है मगर जीडीपी वृद्धि से अधिक तेज विनिर्माण वृद्धि दर हासिल करने के लिए विश्व व्यापार में हिस्सेदारी बढ़ाने की जरूरत है। हमारी बड़ी से बड़ी कंपनियां भी वैश्विक बाजारों में बड़ी आपूर्तिकर्ताओं जैसे सैमसंग या ह्वावे की तरह पहचान नहीं बना पाई हैं। वैश्विक अर्थव्यवस्था में बड़ी कंपनी बनने के लिए उन्हें उत्पाद एवं प्रक्रियाओं में नवाचार को बढ़ावा देना होगा। शुल्कों और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले में इस समय जो नीतिगत माहौल बन रहा है वह दुनिया में विनिर्माण के क्षेत्र में संपर्क सघन कर सकता है।

सरल शब्दों में कहें तो विनिर्माण उद्योग में तेजी लाना हमारे विकास लक्ष्य के अनुरूप है मगर इसके लिए सरकार को उद्योग जगत में अपनी सक्रियता कम करनी होगी और कंपनियों को अपने भीतर अधिक उद्यमशीलता विकसित करनी होगी तभी जाकर वे दुनिया की शीर्ष कंपनियों में शुमार हो पाएंगी। इससे न केवल उत्पादन एवं निर्यात में उच्च वृद्धि दर हासिल हो पाएगी बल्कि रोजगार में भी काफी विविधता आएगी।

First Published - February 21, 2025 | 10:47 PM IST

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