सशस्त्र बलों के लिए नए उपकरण और हथियार प्लेटफॉर्म खरीदने को अगले साल के बजट में परिव्यय बढ़ने की संभावना है। रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह ने शुक्रवार को कहा कि रक्षा मंत्रालय रक्षा आधुनिकीकरण मद में सालाना 10 प्रतिशत के मुकाबले आने वाले वित्तीय वर्ष में 20 प्रतिशत वृद्धि की मांग करेगा।
राजधानी दिल्ली में फिक्की की 98वें वार्षिक आम बैठक और वार्षिक सम्मेलन में सिंह ने कहा, ‘हमें अपने आधुनिकीकरण या पूंजीगत व्यय बजट में हर साल आराम से 10 प्रतिशत की वृद्धि मिल रही है। अगले साल हम शायद 20 प्रतिशत के करीब मांगेंगे।’ दुनिया भर में चल रही भू-राजनीतिक उथल-पुथल, यूरोपीय और आसियान देशों में नए सिरे से हथियार जुटाने की कोशिशें तथा भारत के पड़ोस में बदलती स्थिति का जिक्र करते हुए सिंह ने कहा, ‘मुझे वित्त मंत्रालय से उस तरह का आवंटन प्राप्त करने में कोई कठिनाई नहीं दिखती है।’
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जीडीपी के हिस्से के रूप में रक्षा व्यय सिकुड़ कर 2 प्रतिशत से नीचे आ गया है। सचिव ने कहा कि उनकी राय में अगले कुछ वर्षों के लिए रक्षा बजट के आधुनिकीकरण घटक में सालाना आधार पर 20 प्रतिशत की वृद्धि होनी चाहिए। उन्होंने आश्वासन देते हुए कहा, ‘इतना बजट हमारी धरातल पर चल रहीं क्षमता परियोजनाओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त होगा।’ रक्षा मंत्रालय बीते पांच वर्षों में पहली बार सैन्य आधुनिकीकरण बजट में बढ़ाने की मांग करेगा। वित्त वर्ष 26 के लिए इस मद के तहत 1.49 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।
पैनल चर्चा के दौरान एक प्रश्न का उत्तर देते हुए रक्षा सचिव ने कहा कि उन्हें विश्वास है कि रक्षा निर्यात अगले दो से तीन वर्षों के दौरान दोगुना होकर लगभग 50,000 करोड़ रुपये हो जाएगा। इस लक्ष्य तक पहुंचने की समय-सीमा वित्त वर्ष 2030 निर्धारित थी। उन्होंने कहा, ‘हम उस लक्ष्य को बहुत आसानी से पार कर लेंगे।’
रूस के साथ भारत के रक्षा सहयोग को दीर्घकालिक बताते हुए सचिव ने कहा, ‘हम रूस के साथ अपना रक्षा सहयोग बंद नहीं करने जा रहे हैं।’ लेकिन, उन्होंने जोर देते हुए कहा कि भारत रणनीतिक स्वायत्तता की नीति का पालन करता है, जिसके तहत वह आपूर्ति के अपने स्रोतों में विविधता लाने के उद्देश्य से रूस और अमेरिका दोनों से अपनी आवश्यकताओं के अनुसार उपकरण खरीदेगा।
रक्षा क्षेत्र में सरकार की आत्मनिर्भरता पहल के अनुरूप सचिव ने कहा कि विदेशी रक्षा मूल उपकरण निर्माताओं को इस तथ्य की आदत डालनी होगी कि अधिकांश रक्षा व्यय देश में ही खर्च किया जाएगा। इसलिए विदेशी कंपनियों को संयुक्त उद्यम बनाना होगा और यहां सह-उत्पादन करना होगा।’
उनकी राय में अमेरिका के साथ साझेदारी में अभी वक्त लग सकता है लेकिन फ्रांसीसी और रूसी फर्मों के साथ इसकी संभावना बन सकती है। इससे पहले दिन में पहले एक अन्य रक्षा सम्मेलन में सख्त रुख अपनाते हुए रक्षा सचिव ने कहा कि रक्षा उपकरणों और सेवाओं की डिलिवरी में देरी के खिलाफ सख्त रुख अपनाना होगा और नुकसान की भरपाई आपूर्तिकर्ताओं पर डाली जा सकती है।
उन्होंने रेखांकित करते हुए कहा कि सशस्त्र बलों के लिए चल रही 40,000 करोड़ रुपये की आपातकालीन खरीद की छठी किस्त के तहत रक्षा मंत्रालय ने पहले ही फैसला कर लिया है कि समय पर डिलिवरी नहीं होने पर अनुबंध को फोरक्लोज़ कर दिया जाएगा। सचिव ने जोर देकर कहा कि ऐसे निर्णय डिलिवरी के संबंध में जवाबदेही को बढ़ाएंगे।
ईपी प्रावधानों के तहत तीनों सेनाएं बिना किसी और मंजूरी के तत्काल आधार पर 300 करोड़ रुपये तक के रक्षा उपकरण खरीद सकती हैं। डिलिवरी अनुबंध की तारीख से छह महीने के भीतर शुरू होनी चाहिए और एक वर्ष के भीतर समाप्त हो जानी चाहिए। वर्ष 2016 के बाद से उपकरण खरीद (ईपी) मार्ग का उपयोग पांच बार किया गया है, अब इसकी छठी किश्त चल रही है। लेकिन सचिव ने यह भी रेखांकित किया कि सशस्त्र बलों को उनकी जरूरत के उपकरण प्राप्त करने में देरी का कारण केवल घरेलू निर्माता ही नहीं थे, स्थानीय स्तर पर संघर्ष के कारण रूसी और इजरायली फर्मों के साथ अनुबंधों में भी देर हुई थी।