जब 9 फरवरी को संतृप्त मिश्र ने औपचारिक घोषणा कर दी कि वह बीजू जनता दल (बीजद) के राष्ट्रीय प्रवक्ता के रूप में पार्टी से जुड़ रहे हैं तो अटकलें तेज हो गईं कि आदित्य बिड़ला समूह के इस दिग्गज को राज्यसभा के लिए नामित किया जा सकता है। हालांकि ऐसा नहीं हुआ। लेकिन अब कहा जा रहा है कि पार्टी उन्हें आगामी लोकसभा चुनावों के उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतार सकती है।
वहीं दूसरी ओर पौड़ी गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र में मनीष खंडूड़ी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नए स्थानीय उम्मीदवार के लिए प्रचार कर रहे हैं। हालांकि कुछ ही हफ्ते पहले तक खंडूड़ी उसी निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस का टिकट पाने के लिए पूरी तरह तैयार लग रहे थे, जब तक कि उन्होंने व्यक्तिगत कारणों का हवाला देते हुए पार्टी से इस्तीफा नहीं दे दिया। बाद में उन्होंने भाजपा से जुड़ने का फैसला कर लिया। उन्होंने भाजपा से पार्टी का टिकट नहीं मांगा और न ही इसकी पेशकश उन्हें की गई। लेकिन उन्हें भविष्य में दिल्ली में पार्टी में संगठनात्मक भूमिका देने की चर्चा जरूर हुई।
खंडूड़ी के कांग्रेस से इस्तीफे की खबर से हम पत्रकार समुदाय में गहरी निराशा छाई खासतौर पर हममें से कुछ उन लोगों में जिन्होंने उनके साथ मिलकर काम किया था और1990 के दशक की शुरुआत में इसी अखबार से अपना करियर शुरू करना भी शामिल था।
मिश्र और खंडूड़ी की राजनीतिक यात्रा की तुलना स्पष्ट रूप से नहीं की जा सकती। मिश्र कॉरपोरेट जगत के एक दिग्गज हैं, जिनके खाते में बदलाव का एक उत्कृष्ट ट्रैक रिकॉर्ड है। दूसरी ओर, खंडूड़ी ने एक वित्तीय पत्रकार के रूप में और बाद में केलॉग से एमबीए की डिग्री हासिल करने के बाद, सीएनएन और मेटा जैसी वैश्विक मीडिया कंपनियों में एक वरिष्ठ कारोबारी अधिकारी के रूप में एक सफल करियर बनाने के बाद 2019 में राजनीति में कदम रखा।
आखिर इन बातों का सार क्या है? पार्टी बदलने की घोषणा के कुछ ही समय बाद ही मिश्र से कॉरपोरेट जगत के उनके साथियों ने सवालों की बौछार कर दी। दरअसल वे जानना चाहते थे कि सार्वजनिक जीवन में आने के लिए क्या करना होगा। इन सवालों को लेकर कोई हैरानी नहीं होनी चाहिए, खासतौर पर इस वजह से कि कॉरपोरेट जीवन एक निश्चित बिंदु के बाद बेहद उथला सा और अधूरा मालूम पड़ सकता है।
राजनीति के माध्यम से राष्ट्रीय स्तर पर बड़ा प्रभाव बनाने का भी अपना एक कथित रोमांच है। इसके बावजूद लोगों को क्या चीजें पीछे खींच रही हैं? देश के अधिकांश मध्यम वर्ग का भारतीय राजनीति को लेकर बेहद उत्साहहीन दृष्टिकोण है।
मैं यह बात सुनता रहता हूं कि भारत की राजनीति में ईमानदार और नैतिकता को बढ़ावा देने वाले कॉरपोरेट जगत के उन दिग्गज अगुआई करने वालों की आवश्यकता है ताकि भ्रष्टाचार को दूर करने के साथ ही एक बेहतर भविष्य को बढ़ावा देने का बेहतर मौका मिल सके। यह और बात है कि ज्यादातर लोग यह चाहेंगे कि उनके बजाय कोई और सार्वजनिक जीवन में जाने का बीड़ा ले और जोखिम उठाए। हालांकि कुछ लोगों का इरादा है और वे गंभीर हैं, लेकिन अपनी वास्तविक हैसियत, पोजिशन और पूंजी से दूर होना शायद ही कभी आसान होता है।
खंडूड़ी और मिश्र दोनों की राजनीति में पारिवारिक पृष्ठभूमि थी, खासतौर पर तब जब वे युवा थे। खंडूड़ी ने अपने पिता मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूड़ी के लिए प्रचार किया, जिन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री के रूप में काम किया था। इसके अलावा इस दौरान स्वर्णिम चतुर्भुज परियोजना के निर्माण में उनकी छवि भी साफ-सुथरी थी। उन्होंने उत्तराखंड में भाजपा के मुख्यमंत्री के तौर पर भी काम किया।
मिश्र का परिवार भी सार्वजनिक जीवन से जुड़ा था। उनके पिता के बड़े भाई देश की एक प्रमुख ट्रेड यूनियन से जुड़े हुए थे जो भाकपा से संबद्ध थी। वह खुद भी युवा छात्र के रूप में श्रमिक संगठन का चुनाव लड़े। बीजद में शामिल होने के उनके फैसले में एक दशक से अधिक की देरी हुई क्योंकि कॉरपोरेट जगत से जुड़ी उनकी प्रतिबद्धताओं ने उन्हें एक बार वर्ष 2013 में और फिर 2019 में आगे बढ़ने की अनुमति नहीं दी।
खंडूड़ी को उम्मीद थी कि वह अपना राजनीतिक आधार बनाने के लिए अपने पिता की समाज में बनी प्रतिष्ठा को ही बुनियाद के तौर पर इस्तेमाल करेंगे। लेकिन 2019 में वह कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा चुनाव हार गए। लेकिन इसके बावजूद वह रुके नहीं। उन्होंने अपने जमीनी स्तर के काम को जारी रखा और राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान एक महत्त्वपूर्ण संचारक की भूमिका निभाई और लगभग पूरी यात्रा के दौरान पैदल चले।
जैसे-जैसे 2024 का लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहा था खंडूड़ी को पता चल गया था कि उनके पास सीट जीतने का कोई रास्ता नहीं है। भाजपा वास्तव में अजेय प्रतीत हो रही है जिसके पास शक्तिशाली और अनुशासित काडर का समर्थन है। खास बात यह है कि जब वह ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के लिए प्रचार कर रहे थे, तब राज्य में स्थानीय कांग्रेस नेतृत्व उनका पत्ता काटने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहा था।
उन्होंने दिल्ली में पार्टी प्रबंधन से जुड़े लोगों से एक मध्यम स्तर की भूमिका के लिए कहा ताकि अगर वह दूसरी बार हार भी जाएं तो उनका थोड़ा सम्मान बना रहे। इसके लिए उनसे वादा भी किया गया लेकिन इस मोर्चे पर वास्तव में कोई प्रगति नहीं हुई। वह पूरी तरह से निराश थे और आखिरकार उन्होंने 8 मार्च को पार्टी से अलग होने का फैसला कर लिया। अब उन्हें एक नए माहौल में अपनी प्रतिष्ठा कायम करनी है। अच्छी खबर यह है कि कांग्रेस के विपरीत भाजपा नए चेहरों को लाने और पार्टी में बेहतर प्रदर्शन न करने वाले नेताओं से निपटने के लिए तैयार है।
दूसरी ओर, बीजद कोई बड़ी पार्टी नहीं है। नवीन पटनायक केवल चुनाव जीतने पर ध्यान केंद्रित करने से पहले अपनी विनम्र नेतृत्व शैली के जरिये विकास को प्राथमिकता देने वाली संस्कृति बनाने में सक्षम रहे हैं। अपने शुरुआती कुछ हफ्ते के भीतर ही मिश्र ने पार्टी की डिजिटल पहचान और उसकी वेबसाइट में बड़े सुधार करने के लिए अपने कारोबारी कौशल का इस्तेमाल किया। टीम को दुनिया भर की सर्वश्रेष्ठ राजनीतिक पार्टी वेबसाइटों की समीक्षा करने, बीजद सांसदों और अन्य हितधारकों को इससे जोड़ने और समय पर इस काम को पूरा करने का लक्ष्य दिया गया।
अब जब उनकी भूमिका खुली हुई है तब पार्टी ने बेहद बुद्धिमानी से उनका इस्तेमाल चुनिंदा और उच्च-गुणवत्ता वाले कार्यों के लिए किया है। निश्चित रूप से किसी भी बदलाव के तहत जुड़ने और निकलने की एक प्रक्रिया होती है। मिश्र का कहना है कि उन्हें पता है कि वह अपने कॉरपोरेट कार्यकाल की तुलना में कहीं अधिक विविध हितधारकों के साथ काम करेंगे। इसके अलावा, उन्हें सूची बनाकर नियत समय पर काम करने के अपने जुनून को छोड़ने और अस्पष्टता तथा अनिश्चितता से निपटने के लिए सीखने की जरूरत है। उन्होंने सलाहकारों का एक समूह बनाया है जो उनके पांव जमीन पर ही टिकाए रहने देते हैं और उन्हें किसी तरह कोई गलती करने से रोकते हैं।
(लेखक फाउंडिंग फ्यूल पब्लिशिंग के सह-संस्थापक हैं)