भारत में कोयला खनन करने वाले राज्यों को ग्रामीण महिलाओं के लिए विशेष सौर कार्यक्रम से बहुत लाभ मिल सकता है। झारखंड और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में ऐसे ही ‘सोलर दीदी कार्यक्रम’ लागू किए जा सकते हैं जिससे नेट जीरो उत्सर्जन वाली अर्थव्यवस्था की दिशा में बदलाव लाना सुनिश्चित हो सकेगा।
इस कार्यक्रम के तहत दो से तीन करोड़ महिलाओं को बिजली ग्रिड से जुड़ने वाले 10 किलोवॉट सौर पैनल खरीदने के लिए ब्याज मुक्त ऋण दिया जा सकेगा। राज्य वितरण कंपनियां (डिस्कॉम) सौर ऊर्जा के माध्यम से उत्पादित होने वाली बिजली के लिए निर्धारित शुल्क का भुगतान करेगी जो बाजार मूल्य से अधिक होता है।
सौर पैनल से प्रत्येक सोलर दीदी को 2,000 रुपये से अधिक की मासिक आमदनी होगी और इसके साथ-साथ उन्हें 100 यूनिट मुफ्त बिजली भी मिलेगी। ग्रामीण क्षेत्रों में लगाए जाने वाले सौर पैनलों के निर्माण, उसे लगाने और उससे जुड़ी सेवाएं देने वाली कंपनियों के साथ-साथ लाखों लोगों को रोजगार देने वाला एक संपूर्ण तंत्र तैयार किया जाएगा।
भारत में कई ऐसे राज्य हैं जो कोयले की अर्थव्यवस्था पर निर्भर हैं। ऐसे में अगर हम शून्य कार्बन उत्सर्जन की व्यवस्था को अपनाने की दिशा में आगे बढ़ते हैं तब इन राज्यों पर गहरा प्रभाव पड़ेगा। इन राज्यों के ग्रामीण परिवार मुश्किल से अपना जीवन-यापन कर पाते हैं और वे सीधे या परोक्ष रूप से कोयला खनन से मिलने वाली आय पर निर्भर हैं। कई किसानों के पास सिंचाई की सुविधा वाले खेत भी नहीं होते हैं और ऐसे में उन्हें अपनी आजीविका के लिए गैर-कृषि आमदनी पर निर्भर होना पड़ता है।
गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले अधिकांश समुदायों के पास अपना कोई खेत नहीं है और वे ग्रामीण क्षेत्र के मजदूरों के रूप में काम करते हैं या पारंपरिक शिल्पों के जरिये अपनी आजीविका जुटाते हैं।
ग्रामीण महिलाओं को अपनी घरेलू खेती से होने वाली आमदनी के अलावा भी बकरी और गाय पालने, देसी शराब बेचने और बांस की टोकरियों जैसे हस्तशिल्प तैयार करने जैसी विभिन्न गतिविधियों में जुटे रहना पड़ता है ताकि आजीविका की भरपाई हो सके। निरंतर श्रम करने के बावजूद, झारखंड जैसे राज्यों में औसत ग्रामीण घरेलू आय लगभग 6,000-7,000 रुपये प्रति माह है।
ग्रामीण क्षेत्रों की गरीबी कम करने के लिए विभिन्न सरकारी योजनाओं के माध्यम से महिलाओं की आमदनी बढ़ाने के प्रयास किए गए हैं। महिलाओं को पारंपरिक कपड़े, आभूषण बनाने, मशरूम या अन्य विदेशी सब्जियों की खेती करने के लिए सहकारी समितियों में नामांकित कराया गया है। दुर्भाग्य से इनका ताल्लुक सीधे बाजार से नहीं हो पाता है, इसलिए ऐसे उत्पाद तैयार करना मुश्किल होता है जिनकी लगातार बिक्री हो सकती है।
नतीजतन, इन कार्यक्रमों के तहत एक स्थिर मासिक आमदनी देना मुश्किल हो जाता है। इसीलिए, राज्य सरकारों ने सीधी नकद सहायता देनी शुरू कर दी है जैसे कि मध्य प्रदेश में ‘लाडली बहना योजना’ के तहत प्रति माह 1,250 रुपये का भुगतान किया जाता है।
सोलर दीदी योजना इन समस्याओं का समाधान करेगी। राशन कार्ड रखने वाला प्रत्येक ग्रामीण परिवार इस योजना का लाभ पाने का पात्र होगा। सौर पैनल का स्वामित्व महिलाओं के पास होगा और इससे होने वाली कुल आमदनी सीधे उनके बैंक खातों में जमा की जाएगी।
आंकड़े कारगर होते हैं। लगभग 5 लाख रुपये की लागत वाले एक 10 किलोवॉट का सोलर पैनल लगाने पर प्रति वर्ष लगभग 12,000 किलोवॉट-घंटे (यूनिट) बिजली पैदा होती है। पूरे भारत में, बिजली वितरण कंपनियां आमतौर पर 4 रुपये प्रति यूनिट ( इसमें कोई पूंजीगत सब्सिडी नहीं है) की दर पर दीर्घकालिक सौर बिजली की खरीद करने के लिए तैयार हैं।
प्रति माह खुद इस्तेमाल की जाने वाली 100 यूनिट बिजली घटाने के बाद, सौर पैनलों से होने वाली वार्षिक आमदनी का आंकड़ा लगभग 43,000 रुपये है। कार्बन क्रेडिट के माध्यम से प्रति वर्ष 5,000 रुपये और मिल सकते हैं जिससे कुल वार्षिक राजस्व लगभग 48,000 रुपये हो जाता है। सौर पैनल की किस्त (25 साल के लिए और शून्य ब्याज दर के लिहाज से) 20,000 रुपये प्रति वर्ष है।
इसके अलावा इसके रखरखाव का खर्च 2,000 रुपये प्रति वर्ष के दायरे में है। बाकी 26,000 रुपये का भुगतान ग्रामीण परिवारों को मासिक आधार पर किया जा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप इन परिवारों को 2,000 रुपये से अधिक की मासिक घरेलू आमदनी होती है। यदि इस कार्यक्रम से 2 करोड़ परिवार जुड़ते हैं तब यह भारत की बिजली जरूरतों के लगभग 10 प्रतिशत की आपूर्ति करेगा।
निःशुल्क बिजली कई सकारात्मक प्रभाव ला सकती है। सबसे पहले, घर में बिजली की व्यवस्था होगी। दूसरा, खाना पकाने के लिए इंडक्शन स्टोव का इस्तेमाल किया जा सकता है गैस सिलिंडर की आवश्यकता खत्म हो सकती है।
ऐसे में हर घर प्रतिमाह 500 रुपये से अधिक की बचत कर सकते हैं। तीसरा, ग्रामीण परिवार, इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहनों को अपना सकते हैं, जिससे उनकी पेट्रोल खपत कम हो जाएगी।
डीजल/पेट्रोल जैसे जीवाश्म ईंधन के कम इस्तेमाल से भारत बड़े पैमाने पर जीवाश्म ईंधन आयात कम कर सकता है। इसके अलावा इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहन, घरों के लिए बैटरी बैकअप की सुविधा दे सकते हैं जिससे 24 घंटे बिजली आपूर्ति संभव होगी।
ब्याज मुक्त ऋण के माध्यम से सोलर दीदी जैसे कार्यक्रमों को प्रोत्साहन मिलेगा। सौर पैनलों के लिए सब्सिडी की तुलना में ये ऋण, कुशल नीतिगत हस्तक्षेप साबित होंगे क्योंकि यह इसकी एक इकाई के लाभ-लागत का बेहतर आकलन होगा।
जैसे-जैसे सौर पैनल के मूलधन का भुगतान किया जाता है, ब्याज भुगतान सब्सिडी कम हो जाती है। यह सब्सिडी विकास वित्तीय संस्थानों, केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की तरफ से मिले-जुले रूप में दी जा सकती है।
निःशुल्क ब्याज वाले ऋण, केंद्र और राज्य की नवीकरणीय विकास एजेंसियों के माध्यम से उपलब्ध कराए जा सकते हैं। बिजली वितरण कंपनियों को पहले से ही वितरित सौर ऊर्जा उत्पादन के लिए बाजार आधारित शुल्क देने और स्मार्ट मीटर देने का आदेश दिया गया है।
इस तरह बिजली वितरण कंपनियां भी पैसा बचाएंगी क्योंकि ग्रामीण परिवार अपनी खुद की बिजली पैदा करेंगे और इसलिए बिजली वितरण कंपनियों को उन्हें मुफ्त यूनिट वाली बिजली की आपूर्ति नहीं करनी पड़ेगी। स्थानीय वितरण नेटवर्क को भी मजबूत करना होगा ताकि वे ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पादित सौर ऊर्जा की खपत कर सकें।
संभव है कि एक बार ब्याज मुक्त ऋण जब स्वतंत्र रूप से उपलब्ध होगा तब उसके बाद, बाजार की ताकतें सामने आएंगी और सोलर दीदी योजना से जुड़ा एक पारिस्थितिकी तंत्र तैयार होगा। सौर पैनल निर्माता किफायती और पैकेज वाले इंस्टॉलेशन मॉड्यूल तैयार करना शुरू कर देंगे क्योंकि उन्हें फिर स्थिर और बढ़ती मांग का आश्वासन मिलेगा।
इसके अलावा वायरिंग और मीटर देने वाले भी अपनी पेशकश को इसके अनुकूल बनाएंगे ताकि सौर पैनल आसानी से ग्रिड में प्लग इन हो सकें। बिजली उत्पादन की निगरानी करने के साथ-साथ सुदूर इलाके में इसके रखरखाव करने के लिए इन क्षेत्रों में दूर से ही प्रबंधन करने के सॉफ्टवेयर तैयार किए जाएंगे।
इस तरह की इंस्टॉलेशन कंपनियां सौर इकाइयों को लगाने की होड़ में होगी ताकि वे सौर पैनल लगाने के शुल्क के जरिये पैसा कमा सकें। घर के लिए लगातार बिजली आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न भंडारण तकनीक तैयार किए जाएंगे। ऐसे में कम कीमत वाली बिजली के चलते जल्द ही दोपहिया, तीन पहिया और चार पहिया वाहनों का विद्युतीकरण होगा।
सोलर दीदी योजना कई तरह के लाभ देती है। इससे भारत के सबसे गरीब परिवारों को एक स्थिर मासिक आमदनी मिलने के साथ ही मुफ्त बिजली भी मिलेगी। साथ ही सौर पैनल निर्माताओं, मीटर उपकरण कंपनियों, सॉफ्टवेयर प्रदाताओं, इंस्टॉल करने वाली कंपनियों और इनकी फंडिंग करने वाली कंपनियों का एक बड़ा तंत्र खड़ा होगा।
भारत के पास अर्थव्यवस्था वृद्धि को ताकत देने के लिए स्वच्छ ऊर्जा वाली पर्याप्त बिजली होगी। पैकेज्ड सौर इकाइयां दक्षिण एशिया के लिए एक बड़ा निर्यात उद्योग बन सकती हैं और भारत अपने सबसे कमजोर नागरिकों के लिए न्यायसंगत बदलाव सुनिश्चित करते हुए तेजी से शून्य उत्सर्जन की दिशा में आगे बढ़ेगा।
(लेखक संसद की वित्त संबंधी स्थायी समिति के अध्यक्ष और हजारीबाग से लोकसभा सदस्य हैं। लेख में उनके व्यक्तिगत विचार हैं)