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मैग्निफिसेंट 7 पर बाजार की निर्भरता दे रही जोखिम के संकेत

अमेरिका के शेयर बाजार में तकनीक क्षेत्र की दिग्गज कंपनियों का दबदबा अभूतपूर्व है। बता रहे हैं आकाश प्रकाश

Last Updated- March 13, 2024 | 9:43 PM IST
मैग्निफिसेंट 7 पर बाजार की निर्भरता दे रही जोखिम के संकेत, Market's dependence on Magnificent 7 is giving signs of risk

वैश्विक इक्विटी बाजारों में सभी जिस नए नाम की चर्चा कर रहे हैं वह नाम ‘द मैग्निफिसेंट सेवन’ (मैग सेवन) है। ये दरअसल अमेरिका की सात सबसे बड़ी कंपनियां हैं, जिनका बाजार पूंजीकरण सबसे अधिक है (माइक्रोसॉफ्ट, ऐपल, एनवीडिया, एमेजॉन, अल्फाबेट, मेटा और टेस्ला) और पिछले कुछ वर्षों में इन कंपनियों का प्रदर्शन शानदार रहा है। ऐसा लगता है कि बाजार में ज्यादातर कारोबार इन्हीं कंपनियों पर निर्भर हो गया है और इनकी कमाई से बाजार धारणा प्रभावित हुई है, जैसा कि आप हाल में एनवीडिया का उदाहरण भी ले सकते हैं। ऐसा कम ही हुआ है जब वैश्विक इक्विटी के लिए इतने चुनिंदा शेयर महत्त्वपूर्ण हो गए हों।

अगर हम इसके प्रदर्शन की तुलना किसी और चीज से करते हैं तब तब यह स्पष्ट हो जाता है कि लोग इसके बारे में इतनी चर्चा क्यों कर रहे हैं। पिछले नौ वर्षों में एसऐंडपी 500 की तीन गुना से कम तेजी की तुलना में मैग सेवन के शेयरों में 18 गुना से अधिक की तेजी हुई। अमेरिका के शेयर बाजार में इन सात शेयरों की प्रासंगिकता तेजी से बढ़ने के साथ ही चुनिंदा तकनीकी कंपनियों का दबदबा बढ़ा है।

आज, अमेरिका में शीर्ष 10 प्रतिशत कंपनियों के शेयरों की कुल बाजार पूंजीकरण में हिस्सेदारी 75 प्रतिशत से अधिक है। हमने इसी तरह के हालात  2000 और 1929 के दौर में देखा था जब कीमतें असमान तेजी से बढ़ीं और यह एक बुलबुले की तरह था। चिंता की बात यह है कि पहले दोनों अवधि के दौरान जब भी शेयर बाजार में कुछ कंपनियों का वर्चस्व बढ़ा तब यह सामान्य स्तर यानी औसतन 60 प्रतिशत के स्तर पर आ गया। वर्ष 1926 से ही अमेरिकी शेयर बाजार में कंपनियों का औसत वर्चस्व 63 प्रतिशत रहा है।

अगर हम एसऐंडपी 500 के शीर्ष पांच शेयरों को देखें जो 25 प्रतिशत की बाजार हिस्सेदारी रखते हैं तब यह अनुपात 1960 के दशक के आखिर के निफ्टी 50 के दौर के शीर्ष स्तर पर वापस आ गया है। यहां तक कि शीर्ष 10 शेयरों की हिस्सेदारी भी एसऐंडपी 500 का 34 प्रतिशत है और आज से पहले  बाजार में इनकी इतनी बड़ी हिस्सेदारी नहीं रही है। आप इसे मैग सेवन शेयरों की प्रेरणा के तौर पर देख सकते हैं लेकिन शेयर बाजार में इस तरह चुनिंदा कंपनियों के बाजार पूंजीकरण का ऐसा दबदबा नहीं रहा है। जब हम इन शेयरों के वास्तविक मूल्यों को देखते हैं तब समझ आने लगता है कि आखिर इनका दबदबा क्यों बना हुआ है।

कुल मिलाकर, मैग सेवन शेयरों का बाजार पूंजीकरण 13 लाख करोड़ डॉलर है जो अपने आप में ही दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा शेयर बाजार होगा जो चीन से बड़ा और तीसरे सबसे बड़े शेयर बाजार जापान के दोगुने से भी अधिक है। सबसे बड़े शेयर माइक्रोसॉफ्ट का बाजार पूंजीकरण ही 3 लाख करोड़ डॉलर से अधिक है और यह अपने आप में दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा शेयर बाजार (भारत के ठीक बाद) होगा। आज, माइक्रोसॉफ्ट और ऐपल दोनों का बाजार पूंजीकरण ही ब्रिटेन के शेयर बाजार से अधिक है।

मेरी समझ से बाजार पूंजीकरण और कीमतों के लिहाज से इस पैमाने का उदाहरण शेयर बाजार में पहले कभी नहीं देखा गया है। मुनाफे के आधार पर भी, हम एक अलग दुनिया में हैं। पिछले 12 महीनों के मुनाफे को देखें, तो मैग सेवन शेयरों का कुल शुद्ध लाभ 361 अरब डॉलर है जो लगभग जापान की सभी कंपनियों के कुल मुनाफे के बराबर है और चीन में सभी सूचीबद्ध कंपनियों के मुनाफे का आधा है।

इनका शुद्ध लाभ भारत में सूचीबद्ध सभी कंपनियों के मुनाफे (151 अरब डॉलर: स्रोत डीबी) के दोगुने से अधिक है। अकेले ऐपल ने पिछले 12 महीनों में 101 अरब डॉलर का शुद्ध लाभ कमाया जो भारत की सभी सूचीबद्ध कंपनियों के मुनाफे का 70 प्रतिशत है। (स्रोत: डीबी)। ऐपल और माइक्रोसॉफ्ट संयुक्त रूप से भारत में सभी सूचीबद्ध कंपनियों की तुलना में 20 फीसदी अधिक मुनाफा कमाते हैं। मुझे नहीं लगता कि हमने पहले कभी ऐसी कंपनियों का प्रदर्शन देखा है जिनका बाजार पूंजीकरण और मुनाफा बड़े देशों के बराबर हो।
हालांकि, क्या बाजार में चुनिंदा कंपनियों पर कारोबार की निर्भरता और इसकी कीमतों में तेजी के पैमाने से यह नहीं लगता है कि हम एक बुलबुले वाले दौर में हैं?

सबसे पहली बात तो यह है कि भले ही अमेरिका के इतिहास में चुनिंदा कंपनियों का दबदबा बढ़ा है और इनकी कीमतें आसमान छू रही हैं लेकिन यह वैश्विक परिप्रेक्ष्य में असामान्य नहीं है। अन्य सभी वैश्विक बाजारों में चुनिंदा कंपनियों का दबदबा कहीं अधिक देखा जाता है। ज्यादातर बाजारों में शीर्ष 10 शेयरों का अनुपात 50 प्रतिशत से अधिक होता है और कई बाजारों में एक ही शेयर का अनुपात 25 प्रतिशत से अधिक होता है जबकि अमेरिका में यह 8 प्रतिशत है।

इन मुख्य कंपनियों का बाजार पूंजीकरण और इनका मुनाफा, इनके नेटवर्क प्रभाव, वैश्विक पहुंच और उन्हें नियंत्रित करने में नियामकों की असमर्थता के कारण भी है। आप हर साल पूंजीगत खर्च और अनुसंधान एवं विकास (आरऐंडडी) दोनों ही मद में 30-30 अरब डॉलर से अधिक खर्च करने वाली कंपनी के साथ प्रतिस्पर्धा कैसे करेंगे जैसा कि सभी वैश्विक स्तर पर प्रमुख शेयर करते हैं? कोई एनवीडिया के साथ प्रतिस्पर्धा कैसे कर सकता है, जो सॉफ्टवेयर/हार्डवेयर एकीकरण से जुड़ा है और जिसे ग्राफिक्स प्रोसेसिंग यूनिट्स (जीपीयू) में बढ़त हासिल है?

आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (एआई) की दुनिया में ऐसी प्रतिस्पर्धा बढ़ती ही जाती है। प्रशिक्षण और निष्कर्ष की लागत गणना और डेटा की आवश्यकता से अंदाजा मिलता है कि केवल दो या तीन वैश्विक कंपनियां ही बड़े भाषा मॉडल के विकास में अपना दबदबा कायम रखेंगी।

इन शेयरों का दबदबा कम होने का एकमात्र तरीका या तो नियामक कार्रवाई हो सकती है या फिर किसी नवाचार कंपनी की एआई के अनुकूल व्यापार मॉडल विकसित करने में असमर्थता हो सकती है। हालांकि, जब हम इन सात कंपनियों के बाजार पूंजीकरण के पैमाने, इनके कारोबार पर बाजार की निर्भरता, इनके तुलनात्मक प्रदर्शन और अमेरिका के मूल्यांकन को देखते हैं तब  बुलबुले वाली स्थिति में पहुंचने की बात करना शायद जल्दबाजी होगी।

अगर हम बाजार धारणा से जुड़े अन्य संकेतकों जैसे आरंभिक सार्वजनिक निर्गम, नए निवेशकों की संख्या और मार्जिन ऋण स्तर को देखें तब हमें यह अंदाजा मिलेगा कि बाजार में तेजी है लेकिन आर्थिक मंदी (बुलबुले वाली स्थिति नहीं) नहीं है। इसी तरह, खुदरा कारोबार गतिविधि और शेयर बाजार में जाने वाला पैसा भी अभी बुलबुले के स्तर पर नहीं है।

अमेरिकी बाजारों को लेकर अब भी चिंता बनी हुई है और मेरे खयाल से हम अभी तक उत्साह वाली स्थिति में नहीं पहुंचे हैं। दीर्घावधि में तेजी वाले बाजार आमतौर पर उत्साह के साथ खत्म होते हैं। ऐसा हो सकता है  क्योंकि हम ब्याज दरों में कमी के दौर में प्रवेश करने वाले हैं और दूसरी तरफ बाजार सर्वोच्च स्तर पर हैं!

एआई की तेजी को लेकर खूब चर्चा हो रही है और आगे भी इसमें तेजी देखी जाएगी। घटती दरें और आसान नकदी से एआई में और भी तेजी आ सकती है। एआई  के चलते असीमित तकनीकी बाधाओं की बात सामने आती है और जब इसके साथ ही नकदी/स्थिति को प्रभावित करने कारकों और  बाजार भावना को जोड़ कर देखा जाता है तब बाजार एक जोखिम भरे बुलबुले की तरफ बढ़ सकता है।

स्पष्ट रूप से कहें तो अमेरिका के लिए अब दीर्घकालिक रिटर्न कम हो सकते हैं। मूल्यांकन अल्पकालिक बाजार के लिए उपयोगी नहीं होते हैं क्योंकि बाजार में कई सालों तक कीमतें ऊंची बनी रह सकती हैं और यह महंगे दिख सकते हैं। हालांकि, मूल्यांकन ही दीर्घकालिक प्रतिफल के बारे में अच्छी तरह अंदाजा लगा सकता है।

अमेरिका में, शुरुआती मूल्यांकन, बाद के 10 साल के रिटर्न के 80 प्रतिशत को अधिक स्पष्ट करते हैं। बीओएफए द्वारा किए गए शोध के आधार पर, वर्तमान मूल्यांकन स्तरों पर, आने वाले दशक में अमेरिकी शेयर बाजार से एक अंक के रिटर्न से अधिक की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। यह ऐसे समय में हो रहा है जब अमेरिका में राजकोष और ऋण की स्थिति कभी इतनी बदतर नहीं रही है और डॉलर दीर्घकालिक अवमूल्यन के चक्र में प्रवेश करने के लिए तैयार है।

अमेरिका वर्तमान में वैश्विक बाजार पूंजीकरण के 62 प्रतिशत का  प्रतिनिधित्व करता है। यह 1960 के दशक के मध्य में इससे अधिक था, जब चीन और उभरते बाजार नहीं थे। यह तुलनात्मक प्रदर्शन का दबदबा किसी न किसी मोड़ पर उलट सकता है। अमेरिका हमेशा बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सकता है। अमेरिकी बाजार में भले ही अल्पावधि में तेजी जारी रह सकती है लेकिन अंततः इसमें गिरावट के लिए परिस्थितियां बन रहीं हैं।

इसके बावजूद, अमेरिका के शेयर बाजार के लिए  दीर्घकालिक नजरिया औसत है। अमेरिकी शेयर बाजार के लिए अल्पकालिक और दीर्घकालिक दृष्टिकोण के बीच का यह परस्पर संबंध इससे जुड़े हिस्सेदारों के नाजुक संतुलन पर निर्भर होगा। कुछ हद तक बाजार के आवंटनकर्ता दीर्घकालिक नजरिये को समझते हुए पूंजी विदेश में ले जाएंगे तब भारत को फायदा होगा।

(लेखक अमांसा कैपिटल से संबद्ध हैं)

First Published - March 13, 2024 | 9:43 PM IST

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